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________________ परियण-परिवुद्धि परियण (रिजन) ज ३।१८५ सू १६।२२।१८ रिवड्डिजति प ५११६१ पिरियर (परि ! चर) परिवरइ च ३३१ परिवड्ढमाण (परिवधान) १११७२ ज ४।३६, सू १७१ ४३,७२,७८,६५,१०३,१७८ उ ३।४६ परियाइत्ता (पर्यादाय) प १६।२० । परिवढि (परिवद्धि) ज २११३८,१४०,१४६, परियाइयणया (पदिान) प ३४।१ से ३ १५४,१६०,१६३ परियाग (पर्याय) उ २।१२; ३।१४,८३,१२०, परिवड्ढेमाण (परिवर्धमान) ज २।१३८,१४०, १५०,१६१; ४।२४।५।२८,३६,४१,४३ १४६,१५४,१६०,१६३ परियागय (पर्यागत) प १६॥५५ परिवय (परि- वृत) पग्वियंति ज ५।५७ परियाण (गरि- ज्ञा) परिणइ उ ३।१०८ परिवस (प!ि कम्) परिवसइ प २।३८ परियादि (गरि आदा) परियादियंति ज ११४५.४७:३।१२१,४१५१,५४,६०,६१,' ज ३१६२ ६४८०.८६,६७,१०२१०७,१६१,१६६, परियादित्ता (पदाय) ज ३।१६२ १८६.१६३.१६६,१६६.२०३,२०८,२१०, परियाय (पर्याय) ज २।८३,८४,४१२७२ उ २।२२; २६१,२६४,२६६,२६७,२७०,२७२,२७३, ३।१६६ परियायतकरभूमि (पर्यायान्त कर भूमि) ज १८४ २७६, ७।२१३ उ ३।२८ परिवसई उ ३।१५८; ४७ परिवति ११२० से २७,३० से ३६, परियायसंगइय (पर्या साङ्गतिक) उ ३।५५ ४१ से ४३,४८,४६,५१ से६४ ज ११२४,२६, परियारणया (परिचारण) प ३४।१ से ३ परियारणा (परिचारणा) प ३४।२; ३४।१ से ३, ३१,३।१०३,४११०२ परिवसति प २१३२,३३, ३५,३६.३६,४४,५१,५३ से ५५,५७ से ५६ १७,१८ परियारणिढि (परिचारद्धि) सू १८१२३ परिवसह ज ३।१२७ परिवसामो ज ३।१२६।४ परियारिड्ढि (परिचारद्धि) ज ७।१८५ परिवसण (परिवसन) ज २११६ परियारिय (परिवारित) प २।३१ 1 परिवह (रि-। वह ) परिवहइ उ १५० परियारेमाण (परिचारयत्) सू २०१२ परिवहंति ज ७।१७८ १८.१४ परिवहति परियाल (रिवार) ज २।१३३,५।२२,२६ गू १८।१६ परि हामि उ ११७५ उ १११६,६३,९७,६८,१०५ से १०७ परिवाडी (परिपाटी) ५१५१५५,२३।१०८ पिरियाव (परि+तापय्) परिवेति प ३६।६२ परिवायणी (-रिवादनी) ज ३।३१ परियावण्ण (पर्यापन्न) ५ १७।१३३ परिवार (परिव 'र) ज २।६३,९४,५५६ परियावण्णग (पर्यापन्नक) प २३,६,६,१२,१५ ७।१६८११.१७०,१८३ सू १८१४,२१,२३; परिरय (परिरय) ज ४।१४२।२,१५६।१,२३४, १६।२२।३१,३२ उ १।१६ ; ४१५,१३ २४०,७।१६,१६,७५,७८ सू ११२७,१८१६ से परिवारणा (रिवारणा) ज ४११४०।१ १३,१६।८।१,११११,१५१,२१।२ परिवारिय (परिवारित) २१३०,४१ परिलित (परिलीयमान) ज २०१२ परिविद्धंस (रि-- वि + ध्वंस्) परिविद्धसेज्जा परिली (दे०) ५ १।३७।५ परिवंदिय (परिवन्दित) चं १२ परिविद्धंसइत्ता (परिविध्वस्य) प२८।२०,३२ परिवज्जिय (परिवजित) उ ४६ परिवुड (परिवत) ज ५।४४ उ ४१११,१३ परिवड्ढ (परि+वृध्) परिवड्डति परिवुड्ढि (परिवृद्धि) ६ ५।१३२,१६१,१७६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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