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________________ ६. वनस्पति सप्ततिका अथवा वनस्पति विचार ७. अवचूरी ८. बालावबोध ६. बालावबोध १०. स्तबक ११. पण्णवणानी जोड़ ७१ ३१ वृ० प० ५१७ - 'प्रज्ञापनायाश्चूणौं । वृ० प० ६०० - तत्रैवं वृद्धव्याख्या । मुनिचन्द्र पद्मसूरि धनविमल अनुमानित १७ वीं शताब्दी जीव विजय १७८४ १८७६ ५५० १८७८ इनके अतिरिक्त प्रज्ञापना से संबद्ध कुछ लघुकाय ग्रन्थों का विवरण मिलता है। मुनि पुण्यविजयजी ने हर्षकुलगणी द्वारा विरचित "बीजक" का उल्लेख किया है। मुनिपुण्यविजयजी द्वारा लिखित प्रज्ञापना की प्रस्तावना तथा "जिनरत्न कोश" में "पर्याय" का भी उल्लेख मिलता है । "जिनरत्न कोश" में प्रज्ञापना सूत्र सारोद्धार' का भी उल्लेख मिलता है । १. पण्णवणा सुत्तं, भाग २, प्रस्तावना पृ० १५८ २. वृत्ति प० २६६ - आह च चूर्णिकृत् । वृ० प० २७१ - आह च चूर्णिकृतोऽपि । वृ० प० २७२ यत आह चूर्णिकृत् । वृ० प० २७७ - आह च चूर्णिकृत् । परमानन्द जयाचार्य आचार्य मलयगिरि ने अपनी विवृति में चूर्णि और 'वृद्धव्याख्या' का उल्लेख किया है। चूर्णि अभी अनुपलब्ध है । उपलब्ध व्याख्याओं में सबसे बड़ी व्याख्या आचार्य मलयगिरि की है । मौलिक और आधारभूत व्याख्या आचार्य हरिभद्रसूरि की है । जंबुद्दीपण्णत्ती Jain Education International नाम-बोध प्रस्तुत आगम का नाम जंबुद्दीवपण्णत्ती ( जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ) है । प्रज्ञप्ति का अर्थ है व्याकरण, उत्तर या निरूपण । इसमें जम्बूद्वीप का व्याकरण है इसलिए इसका नाम जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति है । स्थानांग में चार अंगबाह्य प्रज्ञप्तियों का उल्लेख है, १. चन्द्र प्रज्ञप्ति २. सूरप्रज्ञप्ति, ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ४. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति । 'कसायपाहुड' में प्रज्ञप्तियों को 'दृष्टिवाद' के प्रथम भेद 'परिकर्म' के पांच अधिकार माना गया है- १. चन्द्रप्रज्ञप्ति, २. सूरप्रज्ञप्ति, ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ४ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति । नंदी में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को कालिक आगम के वर्गीकरण में रखा गया है ।" १२ वीं शताब्दी ३. ठाणं, ४११८६ ४. कसा पाहुड़, प्रथम अधिकार – पेज्जदोसविहत्ती, पृ० १३७ - "परियमे पंच अत्याहियारा - चंदपण्णत्ती सूरपण्णत्ती जंबुद्दीवपण्णत्ती दीवसायरपण्णत्ती विमाहपण्णत्ती चेदि ।" ५. नन्वी, ७८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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