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________________ ८३८ असंसारसमावण्ण-असुरकुमार १३ असंसारसमावण्ण (असंसारसमापन्न) प १११० से असाढय (अषाढक) प ११४२११ असात (असात) प ३५।१।२; ३५।८,६ असंसारसमावण्णग (असंसारसमापन्नक) असातवेदग (असातवेदक) प३।१७४ प१११३६; २२८ असातावेयणिज्ज (असातवेदनीय) प २३।२६,१८० असकण्णी (अश्वकर्णी) प ११४८।१ असामण्णक (असामान्यक) सू १३१५,६,१२,१३,१७ असककारिय (असत्कारित) उ ११११७ से ११६ असाय (असात) १२२१५ असच्चामोसभासग (असत्यमृषाभाषक) प ११।१०। असायावेदणिज्ज (असातवेदनीय) प २३।१६ असच्चामोसमण (असत्यमृषामनस्) प १६।१,७ असायावेयणिज्ज (असातवेदनीय) प २३।१६,६४, असच्चामोसमणजोग (असत्यमृषामनोयोग) १३६ प३६।८६ असासय (अशाश्वत) ज ७।२०८,२०६ असच्चामोसवइ (असत्यमृषावाक्) प १६।३,६,१३ असाहुदसण (असाधुदर्शन) उ ३।४७,७६ असच्चामोसवइजोग (असत्यमृषावाग्योग) असि (असि) प २१४१,१५।१।२,१५१५० प३६।१० ज २।२३,३१,१७८; ३।१७८; उ १११३८ असच्चामोसा (असत्यमृषा) प १११२,३,३५,३७, असिय (असित) प २।३१ ४२ से ४६,८३ से ८५,८८,८६ असिरयण (असि रत्न) ज ३।१०६;१७८, २२० असण (अशन) प ११३५।३ उ ३१५०,५५,१०१, असिरयणत्त (असिरत्नत्व) प २०१६० ११०,१३४,१४६ असिलेस (अश्लेष) ज ७/१२६।१,१६२ असणि (अशनि) प ११२६ सू २०११ असीइ (अशीति) प २।५६।३ असणिमेह (अशनिमेघ) ज २११३१ असीइमंगुलमूसिय (अशीत्य ङ्गुलोच्छित) ज ३।१०६ असण्णि (असंज्ञिन्) प १८४,३।११२,१७२२०; असीति (अशीति) प० २०५१ सू ११२२; १२।५,१२ १८।१२०; २०१६१,६३, २३।१६७,१७१; असुइ (अशुचि) प २।२० से २७ ज २।१३३,५१५ २८११७ से ११६३१।१ से ३,५,६,६।१ उ ११६३;३।१२६,१३० ३५२० असुइजायकम्मकरण (अशुचिजातकर्मकरण) असण्णिआउय (असंज्ञयायुष्क) प २०६२ उ० ११६३ ; ३।१२६ असण्णिभूत (असंज्ञिभूत) प ३५।२० असुइय (अशुचिक) प ११८४ असण्णिभूय (असंज्ञिभूत) प १५।४८,१७१९ असुभ (अशुभ) प २।२० से २७, २२६४ ३५१८ असुभणाम (अशुभनामन्) प २३।३८,१२३ असण्णिहि (असन्निधि) ज २०१६ असुभत्त (अशुभत्व) प २८।२४ उ ११२७,१४० असण्णिभूय (असंज्ञिभूत) प १७।२० असुर (असुर) प० २।३०।१,२।४०।१,५,१०; असत्थ (अशस्त्र) ज ३।६२, ११६ उ ३।३८,४० ५।३; ३६१४६ ज २१६४; ३।२४।१,२, असमोहत (असमवहत) प ३।१७४ १३१११,२,३।१८५,२०६५५२; चं ११२ असमोहय (असमवहत) प३११७४; ३६।३५ से ४१,४८ से ५१ असुरकुमार (असुरकुमार) प १११३१, २०३१ से असम्माणिय (असम्मानित) उ० १।११७ से ११६ . ३३,४०८४।३७ से ३६; २६ से ८,४८ से असरीर (अशरीर) प २०६४।१२,३६।६३,६४ ५०,१२१, ६।१७,५२,६१,८१,८५,६३,१०१, असरीरि (अशरीरिन्) प २८।१४१ १०६,१११,११२,११४, ७।२८।३, ६।३, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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