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________________ समकिरिय-समय १०६५ समकिरिय (समक्रिय) प १७।१।१,१७।१०,११,२१ १३८,१४०,१४६,१५४,१५६,१६०,१६३; समक्खेत्त (समक्षेत्र) सू१०१४,५ ५।५८,७।१०१,१०२,१२६,२१४ च १० समग (समक) प १६१५२ ज ११२३,२५,३२; सू ११५;८।१,२०१७ उ ११२,४ से ८,१६, ३७८,७।११२।२ सू १०।१२६।१,२ १७,१६ से २६,१४२,१४३, २११ से ३,१०, समग्ग (समग्र) ज ३।२२१:४।३५,३७,४२,७१, १२,१४,१५,२१,३।१ से ३,७,८,१२,१९,२०, ७७,६०,६४,१७४,१८३,२६२,६।१६ से २२, २२,२३,२६,३८,४०,४४,८७,८८,६१,६३, सू २०१७ १५३,१५४,१६६ १६७,१७०,४।१ से ३,२७, समचउक्कोणसंठित (समचतुष्कोणसंस्थित) ५१ से ३,३७,४४ सू ११२५;४२ समणी (श्रमणी) ज ७।२१४ उ ३३१०२,११५, समचउरंस (समचतुरस्र) प २।३०।१५।१६,३५; ११७,११८,४।२२ २११२६,३१,३२,३६,६१,७३,२३।४६ समणुगम्ममाण (समनुगम्यमान) ज २१६४ ज ११५, २११६,४७,८६, ७।१६७ उ ११३ समणोवासग (श्रमणोपासक) ज २१७६ उ ३८३ समणोवासय (श्रमणोपासक) उ ११२०,५॥३४ समचउरंससंठाणसंठिय (समचतुरस्रसंस्थानसंस्थित) समणोवासिया (श्रमणोपासिका)ज २१७७ उ १२२०; सू ११५,२५ ३।१०५,१०६,१४४ समचउरंससंठित (समचतुरस्रसंस्थित) सू ४।२; समण्णागय (समन्वागत) ज ५१५ उ १६३ १०७४ समतल (समतल) ज ३।६५,१५६ समचक्कवालसंठित (समचक्रवालसंस्थित) समतिक्कंत (समतिक्रान्त) प २०६७ सू ११२५,४।२।१६।३,१३,१७,१६,२३ समत्त (समस्त) प २१६४।१५ ज ३।१७५ उ ३६१ समजस (समयशस्) प २१६० समत्त (समाप्त) ज ३।१६७,४१२००,५१५८%; समजोगि (समयोगिन् ) ज ५१५८ ७।१०१,१०२ सू १३।१०,१३,१४ से १६ समजुतीय (समद्युतिक) प २६० उ ११४८,३।११ समठ्ठ (समर्थ) प१११११ से २०१५॥४४; समत्थ (समर्थ) ज ३।१०६५ सू २०१७ १७।१,३,५,८,१०,१२,१४,१५,२४,१२३ से समपज्जवसिय (समपर्यवसित) सू १२।१० से १२ १२८,१३० से १३२,१३४,१३५;२०१२,३,१४ । -समप्प (सं+अर्पय) समप्पेइ ज ३११३८:४।३५, से १७,१६ से २५,२७ से ३०,३३,३४,४० ३७,४२,७१,७७,६०,१७४,१८३,१८६,२६२; से ४८,५२,५३,५६,६०,२२।७६,८०,८२,६२, ६।२१ से २४ समप्पति ज ३।६७,१६१; ६४,६५,३०।२५,३६।८०,८१,८३,८८,६२ ६।१६,२५,२६,४।६४ सू १०१५ समप्पेति ज २।१७,१८,२१ से २३,२५,२८,३० से ३३, सू १०॥५ ३८ से ४०,४२,४३,४।१०७,७११८४ समबल (समबल) प २।६०,६३ सू १८।२२ समभिरूढ (समभिरूढ) प १६१४६ ज ३३१०६ समण (श्रमण) प २॥३,६,६,१२,१५,२० से २७,६० समभिलोएमाण (समभिलोकमान) प १७१०६ से से ६३,३३३६,१५।४३,४५,३६७६,८१ ज ११५,६;२।१६,१६ से २१,२३,२५,२६, सिमभिलोय (सं-+-अभि+लोक् ) २८,३० से ३३,३६,३६ से ४३,४८,४६,५१, समभिलोएज्जा प १७४१०७.१०६,१११ ५४,५६,६८,७२,७४,८२,१२१,१२६,१३०, समय (समय) प १११३,१०३,१०६,१०७,१०६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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