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________________ तालु-तित्थगरत्त ६३५ तालु (तालु) प २।३१ ज २११५, ३।३५,१०६, ४४,४६,५८ उ १।१६,२१,३।१०३,११३; ७.१७८ ४।१३,१६ ताक (तावत् ) प २४७ उ ११५१ तिग (त्रिक) ज २१६५३।१८५,२१२,२१३; ताव (ताप) ज ७।३२ उ ३.५० ५७२,७३,७।१३१।१ उ १६८ तावइय (तावत् ) ज १।१६,३।८।४।१२१,१४०।२, तिगिछद्दह (तिगिच्छद्रह) ज ४।८८ से ११ तिगिच्छकूड (तिगिच्छकूट) ज ४।२७५ तावक्खेत (तापक्षेत्र) सू २१३, ४।५।६।१; तिगिच्छायण (चिकित्सायन) सू १०।११६ १६।२२।१४,१६।२३,२६ तिगुण (त्रिगुण) ज २१६,७७,६६,६०,११८,१२१, तावक्खेत्तसंठिति (तापक्षेत्रसंस्थिति) ज ७।३१,३५, सू १०।६०,६१,१८।६ से १३ सू ४।१,३,४,६ तिगुणित (त्रिगुणित) सू १६।२२।२३,२५ तावखेत्त (तापक्षेत्र) ज ७।३२,५५,५८,१६८,२१२, तिजमलपय (त्रियमलपद) प १२॥३२ तिट्ठाणवडित (त्रिस्थानपतित) प ५।१२,१४,१६, तावखेत्तपह (तापक्षेत्रपथ) सू १६।२२।५ २०,२६,५३,५७,५६,६३,६८,७२,७४,७८,८३, तावण्णत्त (तद्वर्णत्व) प १६१४६; १७।११५, ६४,६७,१०१,११२,११५,११६,१२२ ११६,११८,१४८,१४६ लिठाणवडिय (त्रिस्थानपतित) प ५।१८ तावतिय (तावत् ) प १५५१,५२,६२ ज ४।१० तिणिस (तिनिश) ज ३।३५,१७८ तावत्तीस (त्राय त्रिंश) ज ५१५० तिण्ण (तीर्ण) ज ५।२१ तावत्तीसग (बायस्त्रिंशक) प २॥३२,३३,३५,४६ अतितिक्ख (तितिक्ष्) तितिक्खइ ज २१६७ से ५१ ज ५११६ तित्त (तृप्त) प २१६४।१६ तावत्तीसय (त्रायस्त्रिंशक) ज २०१० तित्त (तिक्त) प ११४ से ६,५५,७,२०५:११।५८, तावत्तीसा (त्रायस्त्रिंशक) प २।३० से ३२ १३।२८;२३१४६२८१२०,३२,६६ ज २।१४५ तावस (तापस) प २०१६१ उ ३१५०,५५ तित्तिर (तित्तिरि) प १७६ सू १०।१२० तावसत्त (तापसत्व) उ ३।५०,५५ तित्तीस (त्रयस्त्रिंशत् ) ज ४।१८ ताहि (तत्र) प २४।६।। तित्थ (तीर्थ) ज ३।१४,१५,१८,२०,२२,३०,३१; ताहे (तदा) ज ७।५६ उ ११५२, ३।१२३ ४।३,२५,५१५५,६।६,१२ से १४ ति (त्रि) प १११३ ज १७ च ३।३ सू १७ तित्थकर (तीर्थकर) ज २६३,१२५ उ१।१४ तित्थगर (तीर्थकर) प २०११।१ ज २१६०,६५, तिउड (दे०) ज ४।२०२ १०१ से १०३,११३.११४,११६,१५३; तिदु (तिन्दु) प ११३६।१ ५७,२२,७०,७३ तिदुय (तिन्दुक) प १६१५५ तित्थगरचियगा (तीर्थकरचितका) ज २।१०५ से तिदूय (तिन्दुक) प ११४८।४८ शिक्ख (तीक्ष्ण) ज २११३३,७१७८ तित्थगरणाम (तीर्थकरनामन्) प २३।३८,५६, तिक्खग्ग (तीक्ष्णाग्र) ज ७।१७८ १२६,१४६,१७४,१८६ तिक्खधार (तीक्ष्णधार) ज २।१३१; ३।१०६ दित्थगरणामगोय (तीर्थकरनामगोत्र) प २०१३९ तिक्खुतो (त्रिस्) ज ११६; २१६०; ३५,८८,८६, तित्यगरत्त (तीर्थक रत्व) प २०१३८ से ४०,४५, ६८,१३१,१३५,१५५,१५६,५५,२१ से २४, ४६,५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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