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________________ पण्णवणासुत्तं कसायवीतरागदसणारिया य अपढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागदसणारिया य, अहवा चरिमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागदंसणारिया य अचरिमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागदंसणारिया य। से तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागदंसणारिया। से तं केवलिखीणकसायवीतरागदसणारिया। से तं खीणकसायवीतरागदसणारिया। से तं वीयरागदसणारिया। से तं दसणारिया ॥ चरित्तारिय-पदं १११. से किं तं चरित्तारिया ? चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सरागचरित्तारिया य वीयरागचरित्तारिया य ।। ११२. से किं तं सरागचरित्तारिया ? सरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहासुहमसंपरायसरागचरित्तारिया य वायरसंपरायसरागचरित्तारिया य ।। ११३. से किं तं सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया ? सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयसुहमसंपरायसरागचरित्तारिया य अपढमसमयसुहमसंपरायसरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयसुहमसंपरायसरागचरित्तारिया य अचरिमसमयसुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया य, अहवा सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संकिलिस्समाणा य विसुज्झमाणा य। से तं सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया ॥ ११४. से कि तं बादरसंपरायसरागचरित्तारिया ? बादरसंपरायसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–पढमसमयवादरसंपरायसरागचरित्तारिया य अपढमसमयबादरसंपरायसरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयवादरसंपरायसरागचरित्तारिया य अचरिमसमयबादरसंपरायसरागचरित्तारिया य, अहवा बादरसंपरायसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पडिवाती य अपडिवाती य । से तं बादरसंपरायस रागचरित्तारिया। से त्तं सरागचरित्तारिया ॥ ११५. से किं तं वीयरागचरित्तारिया ? वीयरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-उवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया य खीणकसायवीतरागचरित्तारिया य ॥ ११६. से किं तं उवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया ? उवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयउवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया य अपढमसमयउवसंतकसायवीय रागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयउवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया य अचरिमसमय उवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया य। से तं उवसंतकसायवीयरागचरित्तारिया ॥ ११७. से कि तं खीणकसायवीयरागचरित्तारिया ? खीणकसायवीयरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-छउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य केवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य॥ ११८. से किं तं छउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ? छउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सयंबुद्धछ उमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीय रागचरित्तारिया य॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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