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________________ पढमं पण्णवणापदं ११६. से किं तं सयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ? सयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयसयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य अपढमसमयसयंबुद्धछ उमत्थखीणकसायवीतरागचरितारिया य, अहवा चरिमसमयसयंबुद्धछ उमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अचरिमसमयसयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य। से तं सयंबुद्धछउमत्थखीणकसाय वीतरागचरित्तारिया ॥ १२०. से किं तं बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ? बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य अपढमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयबुद्धबोहियछ उमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य अचरिमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य। से तं बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया। से तं छउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ॥ १२१. से किं तं केवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ? केवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य॥ १२२. से किं तं सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया ? सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पढमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अपढमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य अचरिमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य। से तं सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया ॥ १२३. से किं तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया ? अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया दुविहा पण्णता, तं जहा ---पढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अपढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य. अहवा चरिमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अचरिमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य। से तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया। से तं केवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया। से तं खीणकसायवीतरागचरित्तारिया। से तं वीयरागचरित्तारिया। १२४. अहवा चरित्तारिया' पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-सामाइयचरित्तारिया छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया परिहारविसुद्धियचरित्तारिया सुहुमसंपरायचरित्तारिया अहक्खायचरित्तारिया ॥ १२५. से किं तं सामाइयचरित्तारिया ? सामाइयचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-इत्तरियसामाइयचरित्तारिया य आवकहियसामाइयचरित्तारिया य। से तं सामाइयचरित्तारिया ।। १. चारित्तारिया (ख,घ)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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