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________________ १०४० वा-वाणमंतरी वा (वा) प १११८७ ज २।३६ सू १११४ उ १।२७, वाउभक्खि (वायुभक्षिन्) उ ३.५० ३।१०१ वाउल (व्याकुल) ज २।१३१ वा (वा) वाहिति ज २११३१ वाकरेमाण (व्यागृणत्) ज २१७८ वागरा (वि+ आ--कृ) वागरेहिति उ ३।२६ वाइ (वादिन्) ज २८० वाइंगण (दे० वातिकुण) प ११३७।१ बैंगन का गाछ बागरेहिती उ ३।२६ वागरण (व्याकरण) ज ७।२१४ सू ६।३ उ १।१७ वाइंगणिकुसुम ('वाइंगणि'कुसुम) प १७।१२५ ३।२६ वाइत (वादित) प २।३०,३१,४६ वागल (वाल्कल) उ ३।५१,५३,५५,६३,६६,७०, वाइय (वादित) प २१४१ वाइय (वाद्य) ज ११४५,२।६५,३।८२,१८५, वागली (दे०) प ११४०२ बागुची, एक औषधि १८६,१८७,२०४,२०६,२१८,५।१,१६,७१५५, वाघाइय (व्याघातिक) ज ७।१८२ ५८,१८४ सू १८।२३;१६।२३,२६ वाघात (व्याघात) प ११७४, २११९५ वाइय (वातिक) उ३।११२,१२८ वाघातिम ('व्याघातिम,व्याघातिन् ) सू १८१२० वाउ (वायु) प ६१८६,१०४,११५, ६।४; १३।१६; वाघाय (व्याघात) प २१७, २८।३१ उ ११६५,६६ १७।४०,६६; २०१८,२३,२८,५७,२११८५ वाण (वाण) प ११३७।४ २२।२४ ज २।१६,३११७८,४।४६,५।४३,५२; वाणपत्थ (दानप्रस्थ) उ ३१५० ७।१२२।१,१३०,१८६।४ सू १०८४।१ वाणमंतर (वानव्यन्तर) प १११३०,१३१:२४१, वाउकाइय (वायुकायिक) १११५,२।१० से १२; ४३, ३।२७,१३५,१८३,४।१६५ से १६७; ३।५,५० से ५२,५७,६० से ६३,६८,७१ से ५।३,२५,१२१,६।२५,५६,६५,८५,६३,१०६, ७४,७६,८४ से ८७,६२,६५,१६५ से १६७, १११,११७;७।५।६।११,१८,२४;१२।६,३६; १८३;४७६,८०,८२,८३,८५ से ८७,५॥३, १३।२०।१५।३५,४८,८७,६६,१०४,१०७, १५,१६,६।१६,६२,६२,१०२ १११,१२४;१६।६,१६,१७।२६,३०,३२,३४, ५२,७७,८१,८३,६८,१०५,१६।४२०।१३, वाउकाय (वायुकाय) सू २०११ १६,२५,३०,३५,३७,४८,५४,६१,२११५५,६१, वाउकुमार (वायुकुमार) प १।१३१, २।४०।१, ७७,६०,२२।३१,३६,७५,८८,१००।२४।८; ६,११:५।३।६।१८ ज २।१०७,१०८ २८७२,११७,११६; २६।१५,२२,३११४; वाउक्कलिया (वातोत्कलिका) प ११२६ ३२।५; ३३।१४,२२,३०,३४,३७, ३४।४,१०, वाउक्काइय (वायुकायिक) प ११२७, २।११; १६,१८,३५।१५,२१,३६।२५,४१,७२ १२।३,४,२३,१५।२६,८५,१३७; १६१५,१२; ज १११३,३०,३३,३६; २०६४,६५,६६,१०० १७।६१,१०३,१८।२६,३४,३८,४०,४२,५२; से १०२,१०४,१०६,११०,११३ से ११६, २०१३१,४५,२१।२६,४०,५०,५७,६४,२२।३१, १२०,४।२,२४८,२५० से २५२,५।४७, ३४।३; ३६।६,३८,५६,७२,७५ ५३,५६,६७,७२ से ७४ सू २०१७ वाउकाइयत्त (वायुका यिकत्व) ज ७।२१२ वाणमंतरत्त (वानव्यन्तरत्व) प ३६।२२,२६ वाउक्काय (वायुकाय) ज २।१०७,१०८ वाणमंतरी (वानव्यन्तरी) प ३।१३६,१८३; बाउन्माम (वातोद्भ्राम) प १।२६ १. भावादिमः इति सूत्रेण इमः , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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