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________________ वाणारसी वास ४।१६८ से १७० १७५२,८२,८३ २०।१३ वाणारसी (राणसी) प १।९३।१२।२७ से २६,४६,४८,५०,५१, ६५, ६६, ६६, १००,१११ वाणिज्ज (वाणिज्य) ज २।२३ वातिय ( वातिक) उ ३।३५ वाबाध (व्यावाध) ज २१३६, ४१ वाम (बम) ज २०११३३४६ १२,२४४, ३७२, ४५२,८८, ११७, १३११४ ५।२१.५८ उ १।११५, ११६ : ३६२ वामण ( वामन ) प १५३५ २३।४६ वामणी (वानी) ज ३।११।१ वामभुवंत (भुजान्त) सू २०१२ वामेय ( ) प २०३१ ६ बाव (न) २२४६ २०६.१०,१३१,१३३६ ३।११,२४०३,३७११,४५०१. ११७,१३१०२, २११४।१६६५०३८.५० वाय (वाच) वाति ज ५।५७ वायंत ( वादयत्) ज ३।१७८ वायकर (वातकरक) ज ३|११३५।५५ बायमंडलिया ( वातमण्डलिका ) प ११२९ बायस (वास) प १७६ वायुदेवया (वायुदेवता ) सू १०१८३ वारि (वार) ज ३।२०१; ५५६ वारिसेणा (दारिषेणा ) ज ४ । २१० ; ५।६।१ वारुण (वरुण) ज ७।१२२२१०६४।२ वारुणी ( वारुणी ) ज ५।११।१ वारुणोदय ( वारुणोदक ) प ११२३ वाल ( व्याल) ज ३।२२२ उ३।१२८ बाल (बाल) ज ७११७५ वालग ( व्यालक ) ज ११३७ २।४१, १०१ ; ३।२० ; ४२७५॥२८ बालग्ग (बालाय ) ज २०६७।१७८ वालग्गपोइया (दे० ) ज २।२० बालग्गपोतिपासंटित (बालापोतिका 'संस्थित) सू ४१२,३ Jain Education International १०४१ वालपुच्छ ( व्यासपुच्छ) ज ७ १७८ वालिघाण (वालधान) ज ७२१७८ वालिहर ( वालिधर ) ज ७ १७८ वाली (पाली) ज ३।३० वालुंक ( वालुक ) प १।४८।४८ कपिथ की छाल वालुपप्पा (वालुकाप्रभा ) प १०५३ २०१,२०, २३;३११३,२१,२२,१८३४।१० से १२ ६।१२,७५,७६,१०११ २०११,३१२११६७ ३३।५ वाया (वालुका) प १।२०।१२।४८ ज ३।१११, ११३४।१३,२५,४६ सू २०१७ उ ३१५१,५६ वावण्ण ( व्यापन्न ) प १०१०१।१३ चावण्णय ( व्यापत्रक ) प २०१६१ वावहारिय (व्यावहारिक) ज २२६ वाविय ( व्यापित ) ज ३७६,११६ बावी (वापी) प २४,१३,१६ से १९.२८, ११९७७ ज १।३३; २०१२,१५४१६०, ११३३७।१३३।१ वास (वर्ष) प १२४६ २०१४१,२,४,६,२५,२७, २८,३०,३१,३३,३४, ३६, ३७, ३९, ४०, ४२, ४३, ४५, ४६, ४८, ४९, ५१, ५२, ५४,५६,५८, ६२,६४,६५,६७,६९,७१,७९,८१,८५,८७, ८८, १०, १४, १२५, १२७, १३४, १३६, १४३, १४५, १५२, १५४, १६५, १६७, १६८, १७०, १७१,१७३, १७४, १७६, १७७, १७६,१८०, १८२,१०३, १५, १०६,१६२७ से ४१: १६।३०:१६१२,६,६,१२,२०,२१,२८,३२. ३४,३५,४७,५०,५२,२०१६३२३।६० से ६४, ६६,६८,६६,७३ से ७८,८१,६३,८५ से १०, २,६५ से ६९,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११६ से ११८,१२७,१३०,१३१,१३३, १४७, १५८, १६, १७६, १७७,१८२, १८३, १८७, २८ १२५, ७४ से ८७, ६७ ज १।१८ से २३, ३४,३५,४७ से ५१:२११,४,६ से १५,२१ से ४५,५०,५२,५६ से २८,६५,०१,८८,१०, १२२,१२३,१२६ से १२८,१३० से १३४, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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