SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४२ बास-विउल १३८ से १५०,१५४,१५६,१५७,१५६,१६१, वासहरकूड (वर्षधरकट) ज ६१११ १६४; ३।१,३,२६,३२,३६,४७,५६,६४,७२, वासहरपव्वय (वर्षधर पर्वत) प २११,१६।३० ७७,७६,१०३,१०६,११३,१२४,१२६,१३३, ज १।१८,४८,५१:३।१३१;४।१,२,४४,४५, १३५।२,१४५,१६७,१७५,१८५,१८८,२०६, ४८,५४,५५,६१ से ६३,७६ से ८१,८६,८७, २२१,२२५,२२६;४।१,३५,४२,५५,५६,६१, ९६ से १८,१०२,१०३,१०८,११०,१४३, ६२,७१,७७,८१ से ८३,८५,८६,६४,६८, १६२,१६६,१७३ से १७६.१७८,१८०.१८४, १६ से १०३,१०८,१६२,१६७।७,१६६ १७२ १६०,२०० से २०६,२०८,२०६ २६२ से २६४ से १७४,१७८,१८१,१८२,१८५,१८७,१६३, २६८ से २७०,२७३ से २७६,५।१४,१५; १६४,१६६,१९६ से २०३,२०५,२०६,२१३, ६।१०,१८ २६२,२६५,२६६,२७१ से २७३,२७७; वासावास (वर्षावास) ज २१७० ५१५५, ६।६।१,६।६,१२,१३,१४,१६७।१५६ वासिउं (वर्षितम) ज ३।११५ से १५.६,१८७ से १६० सू ४।३।६।११०।६३ वासिकी (वार्षिकी) स १२११८ से २३ से ६६८।१,१८।२५ से ३०,२०१७ उ ११६, वासिठ्ठ (वाशिष्ठ) ज ७।१३२।२ सू १०।१५ १४१,१४७ , २।१२,१३,२२,३।१४,१६,१८, वासित्ता (वर्षयित्वा) ज ५७ २१,८३,८६,१०४,११८,१२५,१५०,१५२, वासी (वासी) ज २१७० १५७,१६१,१६५,१६६; ४।२४,२६,२८; वासुदेव (वासुदेव) प ११७४,६१; ६।२६,२०।१।१ ५।२४,२८,३६,४१,४३ ज २।१२५१५३;७२०० उ ५९.१५,१७ से वास (वर्ष) वर्षा ज ३।११५,११६,५७; १६ ७११२।३,४ सू १०।१२६।३.४ वासुदेवत्त (वासुदेवत्व) ५ २०१५६ विास (वृष) वासंति ज ३।१८४,५७,५७ वाहण (वाहन) ज २१६४,३३१७,२१,३१,३२, वासति सू १०।१२६।३ वासह ज ३।१२४ ८१,१०३,१०६,१७७,५।१८,२२,२६ वासिस्सइ ज २।१४१ से १४५ वासिहिति उ ११६६,९४,९६,११५,११६ वाहि (व्याधि) ज २।१५,१३१,१३३ ज २।१३१ वाहिनी (वाहिनी) उ३।११०,४।१६,१८ वासंतिय (वास न्तिक) ज २।१० वि (अपि) प १३५ ज १११६ सू श६ उ ११७ वासंतिलता (वासन्तीलता) प ११३६१ विइक्कंत (व्यतिक्रान्त) ज २१७१,१३८,१४० वासंती (वासन्ती) प १३८।२ ज २०१५ विउक्कम (वि। उत्क्र म) विउक्कमंति वासघर (वासगृह) ज ३।३२ सू २०१७ उ ११३३; प६।२६ २।२८ विउट्ट (वि- वृत) उट्टहि उ ३।११५ वासपुड (वासपुट) ज ४।१०७ विउट्ट (निवृत्त) ज ४.३६,६६,६१ वासमाण (वर्षत्) ज ३।११६ विउल (विपुल) प २२३०,३१,४१ ज ११५; वासयंत (वासयत्) ज २१६५ २।६४,६५,६१,१२०,३३,६,७,१०३ १८५, वासरेणु (वासरेणु) ज २१६५ २०६५।२६,५४,७१७८ उ १११७.६३; वासहर (वर्षधर) प १५॥५५॥२ ज २।६५,३।१३१: २।११, ३।७:५०,५५,६१६८.१०१,१०६ ४।१०३,१०८,११०,१४३,१६२,१६७,१८१, १०७,११०.१२६,१३१,१३४,१३६,१४६; १८२,१८४,१६०,२००६।१०.१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy