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________________ १०६० हंस-हरिकंतदीव हंस (हंस) प ११२०१४,७६ ज २।१२,१५ उ ५५ हत्थिणिया (हस्तिनिका) प १११२३ हंसगम्भ (हंसगर्भ) ज ५१५ हत्थितावस (हस्तितापस) उ ३१५० हंसलक्खण (हंसलक्षण) ज २१६६ हत्यिमुह (हस्तिमुख) प १।८६ हंसस्सर (हंसस्वर) ज २।१६:५२५२ हत्थिरयण (हस्तिरत्न) ज ३।१५,१७,२०,३१,३३, हक्कार (हाकार) ज २६० ५४,६३,७१,७७,६१,६२,१४३,१५१,१६६, हक्कार (आ+कारय) हक्कारेंति ज ५१५७ १७३,१७५,१७७,१७८,१८२,१८३,१८६, हठ (हृष्ट) ज २।४,१४६,३।५,६,८,१३,१५,१६, १६६,२०२,२०४,२१४,२१७,२२० उ १११२३, २६,३१,४२,५०,५२,५३,५६,६१,६२,६७, १३१ ६६,७०,७५,८४,६१,१००,११४,१३७,१४१, इत्थिरयणत्त (दस्ति रत्तत्व हत्थिरयणत्त (हस्तिरत्नत्व) प २०५६ १४२,१४८,१५०,१६५.१६६,१७३,१८१, हत्थिसोंड (हस्तिशौण्ड) प ११५० १८६,१६२,१६६,२०८,२१३,५५,१५,२१, हदमाण (हदमान) उ ३।१३० २३,२७ से २६,४१,५५,५७,७० उ ११२१, हम्ममाण (हन्यमान) उ १११३० ४२,४५,१०८,३।१३,१०१,१०३,११३,१३४, हम्मिय (हर्म्य) ज २।२० १३६,१४७,१६०,४।११,१४,२०,५।१५,३८ हम्मियतलसंटित (हर्म्यतलसंस्थित) सू ४।२ हडप्पग्गाह ('हडप्प'ग्राह) ज ३।१७८ हय (हय) प २।३०,४६ ज २।६५,३।३,१५,१७, हढ (हठ) प ११४६,११४८६६,११६२ २१,२२,३१,३४,३६,७७,७८,६१,१०८ से हणमाण (घ्नत्) ३।१३० १११,१७३,१७५,१७७,१८५,१८७,१६६, हणुगा (हनुका) ज २०१५ २०६,२१८ उ १११२३,१३८,५।१,७,१८ हत्थ (हस्त) प २१३०,३१,४१,४६ ज २१६५; . हय (हत) ज २१६० से ६२, ३।२२१७१८४ ३।६,२४।४,३७४२,४५२,१०६,१३११४,१८६, उ १।२२,१४०,३।१२३,१२६ २०४।५।२१,७/१२८,१२६।१,१३३।२,१३६, हयकण्ण (हयकर्ण) प ११८६ १४०,१४६,१६४ सू १०१२ से ६,१६,२३, हयच्छाया (हयच्छाया) प १६।४७ ४६,६२,७१,७५,८३,१११,१२०,१३१,१३२, हयपोसण (हयपोषण) ज ३।३ १५६१२।२४ उ १८८,८६३३५१,५६,९८; हयरूवधारि (हयरूपधारिन्) ज ७१७८ ४।२१ से २३ हयलाला (हयलाला) ज ३।२११;५।५८ हत्थग (हस्तक) ज ४।३०,५१५ हयवति (हयपति) ज ३।१२६।२ हत्थगय (हस्तगत) ज ३१९,२१,३४,८५ से ८७; हयहेसिय (यहेसित) ज ३।३१,५१५७,७।१७८ ५।८ से ११,५७ हर (ह) हरेज्जा ज १६ हत्थसंठिय (हस्तसंस्थित) सू १०।४६ हरओ (हरतस्) ज ४।१४० हत्थि (हस्तिन) प ११६५; १२२१ ज २।३५, हरडय (हरीतक) प ११३५२२ ६५,३३३१,६८,१६७,१७८,५॥५७ उ १२१२१, १३१,११८ हरतणुय (हरतनुक) प ११२३,१।४८१६ हत्थिखंध (हरितस्कन्ध) ज ३।१८,७८,६३,१८०, हरि (हरित्) ज ३।३५,४।८४,९०६।२१ २१२,२१३ सू २०१८,२०१८।४ हत्थिणपुर (हस्तिनापुर) उ ३।१७१ हरिकंत (हरिकान्त) प २।४०१६ हत्थिणाउर (हस्तिनापुर) उ ३१७१ हरिकंतदीव (हरिकान्तद्वी।) ज ४७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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