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________________ बलविहीणया-बहबीया ९६५ बलविहीणया (बलविहीनता) प २३।२२ ६१,६३,६४,३।१८३९।२६,१११२२१७) बलाग (बलाक) ज ३।३५ १३६; २२।१०१,३६८२ ज ११४५; बलागा (बलाका) प १७६ २।११,१२,५८,६५,८३,८८,६०,१२३, बलावलोय (बलावलोक) ज ३।८१ १२८.१३३,१३४,१४५,१४८,१५१,१५७; बलाहगा (बलाहका) ज ५।६।१ ३१६,११,२४,३२।१,८१,८७,१०३,१०४ बलाहया (बलाहका) ज ४।२१०.२३८ १०५,११७,१७८,१८५,१८६,१८८,२०४, बलि (बलि) प २।३१,३३,४०१७ ज २।११३, २०६,२१६,२१६,२२१,२२२.२२५,४।२,३, ११६; १५१ उ ३१५१,५६,६४ २५,२८ से ३०,३४,६०,१४०,१५६,२४८, बलिकम्म (बलिकर्मन्) ज ३।५८,६६,७४,७७,८२, २५०,२५१,२५२,५११,५,१६,४३,४६,४७, ८५,१२५,१२६,१४७ सू २०१७ उ १।१६, ६७,७।११२।१,२,७।१६८,१८५,१६७,२१३, ७०,१२१, ३।११०,५।१७ २१४ च २।४ सू १।६।४; २।१; १०।१२६।१, बलिपेढ (बलिपीठ) ज ४।१४० २; १४।१ से ८१८।२३; १९।१६, २०१७ बलिमोडय (दे०) प ११४८४७ उ१।१६,४१,४३,५१,५२,७६,७७,६३,६८; बव (बव) ज ७/१२३ मे १२५ २।१०,१२,३।११,१४,२८,५५,८३,१०१,१०६, बहल (बहल) ज ३।१०६ १०६,११४,११५,११६,१२०,१३० से १३२, बहलतर (बहलतर) प ११४८१३० से ३३ १३४,१५०,१६१,१६६४।२४,५७,१० बहलिय (बहलीक) प १८६ बहुआउपज्जव (बह वायु:पर्यव) ज ११२२,२७,५० बहली (बहली) ज ३।११ बहुउच्चत्तपज्जव (बहुच्चत्वपर्यव) ज ११२२,२७,५० बहव (बहु) ज १।१३,३१,२७,१०,२०,६५,१०१, बहुग (बहुक) प २।४६,५०,५२,५३,५५,६३ १०२,१०४,१०६,११४ से ११६,१२०,३।१०, बहुजण (बहुजन) ज ३।१०३ ८६,१०३,१७८,१८५,२०६,२१०,४।२२,८३, बहुणाय (बहुज्ञात) उ ३३१०१ ६७,११३,१३७,१६६,२०३,२६६,२७६,५।२६, बहुतराग (बहुतरक) प १७।१०८ से १११ ७२ से ७४ सु १८।२३ उ ३।४८ से ५०,५५, बहुतराय (बहुतरक) प १७।२,२५ ६२,१२३, ५।१७ बहुपडिपुण्ण (बहुप्रतिपूर्ण) ज २१८८; ३।२२५ बहस्सइ (बृहस्पति) सु २०१८,२०१८।४ उ ११३४,४०,४३,५३,७४,७८,२।१२,५।२८, बहस्सइदेवया (बृहस्पतिदेवता) मु १०।८३ ३६,४१ बहस्सति (बृहस्पति) प २।४८ बहुपढिय (बहुपठित) उ ३।१०१ बहस्सतिमहग्गह (बृहस्पतिमहाग्रह) सू १०।१२६ बहुपरियार (बहुपरिचार) उ ३३६६,१५६:५।२६ बहिं (बहिरा) प २।४८ बहुपरिवार (बहुपरिवार) उ ३।१३२ बहिता (बहिस्तात्,बहिस्) सू १६।२२।२७ बहुपुत्तिय (बहुपुत्रिक) उ ३।६०,१२० बहिया (बहि-तात्,बहिस्) ज १।३; २१७१;७।५८ बहुपुत्तिया (बहुपुत्रिका) उ ३।२।१,९०,६२,६४, सू १।२६।१,३; १६।२२।१ उ १।२;३।२६, १२०,१२५;४।५ ४६,४८.५०,५५,१४५, ५॥५,३३ बहुप्पयार (बहुप्रकार) ज २।१३१ बहु (बहु) प १।४८।५४; २।२० से २७,३० से ३५, बहुबीयग (बहुबीजक) प १।३४,३६ ३७ से ३६,४१ से ४३,४६,४८ से ५५,५८ से बहुबीया (बहुबीजक) प १।३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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