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________________ णासा-णिज्जुत्त १२५ णासा (नासा) प २।३१ ज २।१५,१३३ णिगोद (निगोद) प ३।६२,८६,१८१३८ णिइय (नित्य) ज ७।२१० णिगोय (निगोद) प १८४५,५३ ज २११३३ णिउण (निपुण) ज २।१५३।६,२४,८७,१३८, णिग्गंथी (निर्ग्रन्थी) ज २१७२ २२२;५।५,२१,२८ सू २०१७ णिग्गय (निर्गत) ज १५४,३१६,१७,२१,३१,३४, णिओग (नियोग) ज २।१३३ ; ५।४३ १७७,२२२ णिओय (निगोद) प ३।६१,६३ णिग्गुंडी (निर्गुण्डी) प ११३७।३ इणिद (निन्द् ) णिदेहि उ ३।११५ णिग्गुण (निर्गुण) ज २११३५ णिब (निम्ब) प ११३५।१,१७।१३० णिग्याय (निर्घात) प ११२६ णिबछल्ली (निम्बछल्ली) प १७:१३० णिग्घायण (निर्घातन) ज २१७० णिबफाणिय (निम्बफाणित) प १७।१३० णिग्घोस (निर्घोष) ज ३।८८,१८०,१८३,५१५, णिबसार (निम्बसार) प १७।१३० २६,४६,४७,५६,६७ उ १११२१,१२२ १२५, णिकुरंब (निकुरम्ब) ज २।१० १२६,१३३,१३४,१३८,३।१११,४।१८; णिक्कंकड (निष्ककट) ज १८,२३,३१ ५१६ निक्कंकडछाया (निष्क ङ्कटछाया) प २।३१ ४१ णिचिय (निचित) ज ३।३; ५।५; ७।१७८ णिक्खमंत (निष्कामत् ) सू १६।२२।१४ णिच्च (नित्य) प २।२० से २७ ज ११११,२४, णिक्खमण (निष्क्रमण) ज ४।२७७ सू १३।१७ ४७, २।११,६७,१३३, ३।२२६; ४।२२,५४, णिक्खममाण (निष्क्रामत्) ज ३।२०३;७।१०,१६, ६१,६४,१०२,१६६,१६७,१७७,२०३,२१०, २० से २२,२६,२७,६६,७५,८१ च ४।२ २६४,२७३।५।२६, ७।२१०,२१३ सू १३१६,१२ सू १६।२२।१७ णिक्खित्त (निक्षिप्त) ज ३।२०,३३,५४,६३,७१, णिच्चमंडिया (नित्यमण्डिता) ज ४।१५७।१ ८४,१३७,१४३,१६७,१८२ णिच्चालोय नित्यालोक) सू २०१८ इणिक्खिव (नि+-क्षिप) णि क्खिवइ ज ३१६२; णिच्चुजोत (नित्योद्योत) सू २०१८ ५१६७ णिच्चुज्जोय (नित्योद्योत) सू २०६८।६ णिक्कुड (दे०, निष्कुट) प २।१० ज ३७६,७७, णिच्छिण्ण (निश्छिन्न) प २१६४।२२,३६।१४।१ १०६,१२८,१५१,१७० ; ५।२५ णिच्छीर (निःक्षीर) प ११४८३६ णिगच्छ (नि- गम्) णिगच्छइ ज २१६५; ३३१४, राणिच्छुभ (नि+क्षिप्) णिच्छुभइ प ३६।७३,७४ १७२,२०४,२२६ णिगच्छति ज ५१६३ णिच्छमति प ३६।५६,६१,६६,७०,७६ णिगच्छित्ता (निर्गत्य) ज २१६५ णिच्छूढ (निक्षिप्त) प ३६।६२,७७ णिगम (निगम) ज २।२२ उ ३।१०१ णिजुत्त (नियुक्त) प २।४१ णिगर (निकर) ज ३।१२,३५,८८,६५,१५६; णिज्जरा (निर्जरा) प १५॥४३ से ४७,४६३६७६ ४।१२५,५५८ से ८१ णिगरिय (निकरित, निगडित) ज ३।२४।३, णिज्जाणभूमि (निर्याणभूमि) ज ५१४६ ३७।१,४५।१,१३१।३ णिज्जाणमग्ग (निर्याणमार्ग) ज ५१४६ vणिगिण्ह (नि+ग्रह.) णिगिण्हइ) ज ३१२८ णिज्जिय (निजित) ज ३।१७५,२२१ णिगिण्हित्ता (निगृह्य) ज ३।२८ णिज्जुत्त (निर्युक्त) ज ३।१७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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