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________________ पाउभवित्त-पादुब्भ ५।७४ सू १।४ उ १।२४, ३४, ४०, ४३, ७४; ३।५७,६२,६५,६६,७२, ७५, ८१, १४३, १५६ पाउभविलए (प्रादुर्भवितुम् ) ३।११३ पाउया (पादुका) ज ३१६, १७८ ५।२१ पाउस (प्रावृप् ) ज ७।१२६ पाओ (प्रा) २१ १२।१४ उ५।२५ पाओगय (प्रयोग) उ २।११ पाओसिया ( प्रादोषिकी ) पागड (प्रकट) ज ३।३ चं १।३ पागभाव ( प्रकटभाव) ज २२६८ पागडिय ( प्रकटित) २४८, ४६ पागढि ( प्राकर्षिन् ) ज ५।५,४६ पागत ( त्राकृत) सू १६।२२।३ पासा (पाकशासन) प २५० ज ५।१८ पगार (प्रकार) प २१३०,३१,४१ ज ३११; ४।११४,११६,७११३३।२ २२४६, ५६ पगारच्छाया ( प्रकारच्छाया ) सू ६४ पाचारसंठिया ( प्राकार संस्थित) सू २०१४३ Nare ( पातय् ) पाडेइ उ ३५१ पाडेंति ज ५।१६ पाड (वन) उ११५१,७६ पाडल ( पाटल) ज ३।१२,८८५५८ चाहता (पाटा) १३७।५ पालिड (पाटलिपुट) ज ४।१०७ पक्कि (प्रत्येक ) ३|११८, ४।२२ पालि (तुम् ) उ ११५१,७६,७७ पाडयतिथ ( प्रात्यन्तिक) ज ५५७ पाडिया (प्रतिपद् ) सू २००३ पारिहारिय (प्रातिहारिक ) प ३६।९१ पाडेत्ता ( पातयित्वा ) ज ५।१६ उ ३।५१ पाढा (ठ) १४८४; १७ १३१ पा (ण) प २०६४; ३६।६२,७७ ज २।१३१; ३।१०८ से १११७ २१२ Jain Education International पाण (प्राण, पान ) ज २।४।१, २ पाण (पान) उ३।५०, ५५,१०१,११०,११४,१३४; ४।१६ ६८१ पाणक्य ( प्राणक्षय) ज २०४३ पाणत ( प्राणत ) प १।१३५ / पाणम ( प्र + अन्) पाणमंति ५ ७।१ से ४,६ पाणय ( प्राणत ) प २२४६, ५८, ५६, ५६२, ६३; ३।१८३४१२५८ से २६०६।३६,५६,६६; ७ १७; १५८८ २१ ७० २८१८४३३ ।१६; ३४।१६,१८ ज ५।४६ उ २।२२ पाणय ( पानक) उ३।११४;४।२१ पाणयग ( प्राणतज ) ज ५।४६ पाणयवडेंस (प्राणतावतंसक ) प २०५८ पाणावात किरिया ( प्राणातिपातक्रिया ) प २२ १ पाणाइवाय ( प्राणातिपात ) प २२९ से ११,२१ से २३ पाणाइवायकिरिया ( प्राणातिपातक्रिया ) प २२६, ४६,४७,५०,५२,५७,५६ पाणा इवायविरत ( प्राणातिपात विरत ) प २२८३, ८४, ६१ से ४,६६ पाणावायवेरमण (प्राणातिपात विरमण ) प २२|७७ से ७६ पाणातिवास किरिया ( प्राणातिपातक्रिया ) प २२६ पाणि (प्राणिन् ) ज ३१७८ पाणि (पाणि) ज ५।५ उ १।११ से १३,३०,३२; २७,४१८५११२,२५ पाणिग्गहण ( पाणिग्रहण ) उ५।१३ पाणिय ( पानीय) उ३।१३० पाणियग (पानीयक) ज २।१३१ पाणिलेहा (पाणिरेखा) ज २।१५ पाणी (पाणि) प १४० ४ पात ( प्रातस् ) सू १०५,१३६ पाती (पात्री) ज ३।११;५।५ पाद (पाद) प १७।१११ ज ४।१३ पादपीठ (पादपीठ) ज ३।१७८ उ१।११५ पादणपडीणायया ( प्राचीनापाचीनायता ) ज १।१८ √ पावुभ (प्रा + दुर् भू) दुब्भवंति प ३४।१६,२१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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