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________________ १८२ पादो-पास पादो (प्रातस्) सू २१ पारगामि (पारगामिन ) ज ३७० पादोसिया (प्रादोषिकी) प २२।१,४,५६ पारणग (पारणक) उ ३१५१,५३,५४ पामोक्ख (प्रमुख,प्रमुख्य) ज ११२६, २०७४,७७; पारस (पारस) प २८६ ४।१३७ उ ५।१०,१७,१६ पारसी (पारसी) ज ३।११।२ पाय (पाद) ज' ३।१२५,१२६,२२०,२२४;५१५,७। पारिणामिया (पारिणामिकी) उ ११४१,४३ सू २०१६।६ उ ११११,१३,३० से ३२,७१, पारिप्पव (पारिप्लव) ५ १७६ 1११४:४।८.२१:४१२ पारियावणिया (पारितापनिकी) प २२११,५,५०, पाय (प्रातस्) सू १०।१३६ । ५२,५६ पायचारविहार (पादचारविहार) ज २१३३ पारेत्ता (पारयित्वा) ज ३।२८ पायच्छित्त (प्रायश्चित्त) ज ३७७,८१,८२,८५, पारेवत (पारापत) प १६।५५; १७।१३२ १२५,१२६ सू २०१७ उ १२१६,७०,१२१; पारेवय (पारापत) प ११७६; ज ३।३५ ३।११०,११५,५।१७ पारेवयगीवा (पारापतग्रीवा) प १७१२४ पायत्त (पादात) ज ३।१७८ ‘पाल (पालय) पालयाहि ज ३।१८५ पालेंति पायत्ताणीय (पादातानीक,पादात्यनीक) ज ३३१७८ ज ११२२,५०,५८,१२३,१२८,४।१०१ पायत्ताणीयाहिवई (पादातानीकाधिपति, पाले हिंति जरा१४८ पादात्यनीकाधिपति)ज श२२,२३,२६,४८ पालइत्ता (पालयित्वा) ज १८८ से ५२,५३ पालंब (प्रालम्ब) ज ३१६,६,२२२,५।२१ पायत्तिय (पादातिक) उ १११३८ पालक्का (पालक्या) प ११४४।१।। पायदद्दरय (पाददर्द रक) ज ५१५७ पालण (पालन) ज ३।१८५,२०६ पायपीढ (पादपीठ) ज ३१६, ५॥२१ उ ११११५ पालय (पालक) ज ५२८,२६,४६।३ पायमूल (पादमूल) उ ३।१२५ पालियायकुसुम (पारिजातकुसुम) १ १७।१२६ पायरास (प्रातराश) उ ११११०,१२६,१३३ पालेत्ता (पालयित्वा) ज ११२२ पालेमाण (पालयत्) ए २।३०,३१,४१,४६ पायव (पादप) ज २१६५,७१, ३।१०४,१०५ उ १११,६१, ३१५६,६४,६६,६८,७१,७४,७६ ज ११४५,३।१८५,२०६,२२१,५।१६ पायवंदय (पादवन्दक) उ १७०,४।११ उ ११६५,६६,७१,६४,१११,११२,५।१० पायविहारचार (पादविहारचार) उ ३।२६ पाव (प्र-आप्) पावे प २१६४।१५ पायसीस (पादशीर्ष) ज ४।१३ पाव (पाप) प १११०१।२,१११८६ पायहंस (पादहंस) प ११७६ पावयण (प्रवचन) उ ३।१०३,१३६,४।१४।५।२० पायाल (पाताल) १२।१,४,१०,१३ पाववल्ली (पावकवल्ली) प११४०१२ पायावच्च (प्राजापत्य) ज ७१२२२ सू १०८४१२ पावा (पावा) प ११६३१५ पायीण (प्राचीन) ज २।५३ पास (दृश) पासइ प १७।१०८ से ११०%, पायोवगय (प्रायोपगत) ज ३।२२४ ३०।२८ ज २१७१,६०,६३,३१५,१५,२६,३१, पार (पारय् ) पारेइ ज ३१२८,४१,४६,५८,६६, ३६,४४,४७,५२,५६,६१,१०६,११६.१३१, ७४,१३६,१४७,१८७ १३७,१४१.१७३,५॥३,२१,२८,६३ उ १११६; पारगत (पारगत) प २।६४।२१ ३७,४।१३,५।२२ पासउ ज ५२१ पासंति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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