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________________ णक्खत्त-णपुंसगवयण ६२१ णक्खत्त (नक्षत्र) प २।२० से २२,४६,५१; ज १२२६;४।१७२ १५॥५५॥३ ज ११२४ ; २६५,७१,८८,१३८, णग्गोह (न्यग्रोध) प ११३६।२ ज २०७१ ३।२०६,२२५;७।१,५५,५८,६५,६६,१००, जग्गोहपरिमंडल (न्यग्रोधपरिमण्डल) प १५॥३५; १०३,१०४,१११,११२।१,२,११३,१२६, २३।४६ ज ७१६७ सू १०७४ १२८,१२६।१,१३० से १३३,१३४।२,३,४, Wणच्च (नत्) णच्चंति ज ३।१०४,१०५,५१५७ १३५१४,१३८ से १४५,१४७,१४८,१५०, णच्चण (नर्तन) प २।४१ १५१,१५२,१५६ से १६७,१७०,१७५, णिज्ज (ज्ञा) णज्जइ ज ३।१०५ १७७१३,१७८।२,१८०,१८१,१६७ च ५।४ णट्ट (नाट्य) प २।३१,४१ ज २१३२,३१८२, सू १०१ से ५,८ से २५,२७ से ३१,३३ से १६७।१०,१८५,१८७,२०६,२१८,५१,१६, ४२,४४,४६ से ५६,६१ से ७५,७७ से ८३, ५७,७१५५,५८,१८४ सू १८।२३;१६।२३,२६ १२ से १०७,१०६ से १२०,१२२,१२३,१२८, णट्रमालग (नाट्यमालक) ज ३,१५०,१५१ १२६।१,२,१३० से १३५,१५२ से १६६, णट्टमालय (नाट्यमालक) ज ११२४,४६, ६।१६ १७१ से १७३।११।२ से ६;१२।१६ से २८, गट्टमाल (नाट्यमाल) ज २८ ३०१३।११,१४,१५॥१,२,४,६ से ६,११, पट्टविहि (नाट्यविधि) ज ३।१६७।१०,५१५७,५८ १२,१४ से १६,१६२२,२५,२८,३४,३७; णट्टाणीय (नाट्यानीक) ज ५१४१,४४ १८४,७,१८,१६,३७,१६१६१,०२,८१२, णद्वरय (नष्टरजस्) ज ५७ ११॥३,१५॥३,१६,१६।२११४,७,२२।३,२२,३१, णडपेच्छा (नटप्रेक्षा) ज २१३२ १६।२३,२६; २०१७ उ ५।४१, णत (नत) सू २०१७,२०६६ णक्खत्तमंडल (नक्षत्रमण्डल) ज ७८५ से ६४,९७, णतंभाग (नक्तंभाग) सू १०॥४,५ ११३ सू १०।१२६,१३० णत्तु (नप्त) ज २।१३३ णक्खत्तमास (नक्षत्रमास) स् १२।२,१२ णत्थि (नास्ति) प १७५,८०,२।५२,६४।१८; णक्खत्तविजय (नक्षत्रविजय) सू १।६।४।१०।१३२, ५।४३,६६,८०,६६,१८०,१२।६,११,२१,२८; १३।१६,१५८७,६४ से १०१,१०३ से १०६, णक्खत्तविमाण (नक्षत्रविमान) प ४।१६५ से २०० १०८ से ११०,११२ से ११७,११६ से १२३, ज ७।१६३,१६४ सू १८१८,१२,१६,३३,३४ १२५,१२६,१२८ से १३२,१३८ से १४१, णक्खत्तसंठिति (नक्षत्रसंस्थिति) मु १०।२७ १४३१७७०;२११६२ से १०१,२२१४२; णक्खत्तसंवच्छर (नक्षत्रसंवत्सर) ज ७।१०३,१०४ २३।१३७,१३६,२८।१४२,१४५;३०।१७; सू १०।१२५,१२६,१२६,१२१२ ३६१८ से ११,१५ से २३,२५,२६,२८,३०, णख (नख) सू २०१२ ३१,३३,३४,४४ सू १।१३,१४,१०।२२,२५ णखीमंस (नखीमांस) सू १०।१२० कंथारी की जड णगर (नगर) प २१४१ से ४३,२।६४।१७; मणद (नद्) रणदंति ज ५१५७ णदी (नदी) प १११७७ ज २।३१ ज १।२६,२।२२,६६,७०,१३१,३।१८,३१,५२, णदीबहुल (नदीबहुल) ज १।१८ ६१,६६,८१,१३१,१३७,१४१,१६४,१६७।२, १८०,१८५,२०६५।५,४४ णपुंसग (नपुंसक) प १६६,७६,१११५ से १०,२५ णगरणिद्धमण (नगर णिद्धमण') प ११८४ से २८ णगरावास (नगरावास) प २।४१,४२,४६ णपुंसगवयण (नपुंसकवचन) प ११२६,८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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