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________________ २२ पुंगवेद (नपुंसकवेद ) प १८/६२२३३६,८२, १४३, १४८, १५० णपुंसगवेदग (नपुंसकवेदक ) १३।१४,१५,१८ पुंगवेद (नपुंसक वेदक ) प २८।१४० पुंगवेय (नपुंसकवेद ) प २३।१४५ नपुंसगवेयपरिणाम (नपुंसक वेदपरिणाम ) प १३ | १३ णरवरिंद ( नरवरेन्द्र ) ३।१३५।२ णरवति (नरपति) ज ३११२६।२ पुंसय ( नपुंसक ) प ३।१८३ णरवसभ (नरवृषभ) ज ३११८, ६३, १८० णरसीह ( नरसिंह) ज ३११८,६३,१८० भ ( नभ) ज २।६५ सू २०/२ रिंद (नरेन्द्र ) ज ३६,६,१८,३२१,२,६३,११७, १२६।१,१८०,२२१,२२२ ।४१।१ णभसूरय ( नभः शूरक) सू २०१२ ( मंस ( नमस्य् ) नमसइ ज २६०५।२१,५८,६८ णमंसति उ १।२१ णमंसामि उ १।१७ सण ( नमस्यन) उ १।१७ णमसमाण ( नमस्यत् ) ज ११६ : २ ६० ३ । २०५, २०६५।५८ णमंसित्ता ( नमस्यित्वा) ज २।६० उ १।२१ मि (नमि) ज ३ | १३७ से १३६ णमिय (नत ) ज २।१५ णमो (नमस्) ज १।१, ३।२४११, १३१ मोत्थु ( नमोस्तु ) ज ५।५,२१,४६,५८,६५ जय (नय ) प १६।४६ णय ( नत ) ज ४|१३ णयगति ( नयगति) प १६३८, ४६ जयट्ठया (नयार्थता) सू १२/१३ पुंगवेद-व णरवइ ( नरपति) ज ३६, १७, १८, २१, २४४, ३१२८,३०,३४,३५,३७२, ४१, ४५२,४६,८८, ६१ से ३,१०६,१३१४, १३६, १४१, १७७, १८०, १८३,२०१,२१४,२२२ Jain Education International जल ( नल ) प ल (नड,नल ) प ११४१।१,१।४८।४६ ६ ११।७५ लिण ( नलिन) ज २१४४१३, २५, २१२,२१२।१ च १।१ लिगंग ( नलिनांग ) ज २१४ forकूड ( नलिनकूट ) ज ४।१६० से १९३ लिणा ( नलिना) ज ४। १५५।१,२२२।१ व ( नवन् ) प ११५१ ज १।२० सू १०।२ जव ( नव ) प २१५० ज ५।१८ चं ११ णवइ ( नवति) ज ४।२१३ णवग ( नवक ) प १८१ उमंगुलपरिणाह ( नवनवतत्यङ्गुलपरिणाह ) ज ३।१०६ णवणवति ( नवनवति) ज ४।२१३ वहिति ( नवनिधिपति) ज ३।१२६१२, १७५ वोइया ( नवनीतिका ) प ११३८ । ३ ज २।१० णवणीत ( नवनीत ) सू १०।१२०, २०७ वणीय ( नवनीत ) प ११।२५ ज ४।१३ वम ( नवम ) प १७।६६ ज ७।११४।२ सू १० ७७, १२४।२; १३।१० नवमालिया ( नवमालिका) ज ३।१२,८८, १०६; यण (नयन ) प २ ३१ ज २११५,६०,१०३,१०६, १०८,१३३,३३,६, ३५, १०६, १३८ ५।२१ raणमाला (नयनमाला ) ज २२६५; ३।१८६,२०४ जयर (नगर) ज ५।७०,७२ उ३।१०१ जयरी (नगरी) १।३।६ ज ११२, ३७।२१४ विहि ( नवविधि ) प ११०१६ पर (नर) ज १ ३७; २।१०१,१३३,३१६२,११६, १७८, १८६,२०४ ४।२७५।२८ ५।५८ परकंता ( नरकान्ता ) ज ४।२६६, २६८,२६६२; ६।२१ मिक्स (नवपक्ष ) ज २६४ पर (नरक) प २२० से २७ ज २।१३५ से १३७ पदमिया ( नवमिका) ज ५।१०।१ रात (नरकवास ) प २।२६ पवमी (नवमी) ज ७११२५ परदार्याणिय (नरदापनिक) प ११६६ ran ( नवक ) प २११४०,४३,४४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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