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________________ लेक्ख-लोभसमुग्धात १०३१ लेक्ख (लेख्य) १९९८ ५८ से ६१,६३;१०।२,३,५,१२१७,१०,२०%; लेच्छइ (लिच्छवि,लेच्छवि) उ १११२७ से १३०, १५।१।२,१५५४३,४५,५६,१६।३४,१८।३, १३२ २६,२७,३७,३८,३६७६,८१,८५ ज २१६५, ले? (लेष्टु) ज २१७०,७१; ३।३५,६५ ७१,३।३५,६५,१५६,१६७,४१२६०११ लेपार (लेप्यकार) प १६७ सू १६।२२ कलेस (लिश) लेसेंति प ३६।६२ लोगंत (लोकान्त) ५२१६४;११॥३०:२११८४,८६, लेसणया (श्लेषण) प १६६५३ ८१ ज ७।१,६८,१६८।१,१७२ लेसा (लेश्या) प ११११५, २।३०,३१,४६३।१।१; लोगणाली (लोकनाली, लोकनाडी) प ३३।१८ १७१४३ से ४५,४७,६६,६७,११४,१४७,१५६ लोगणाह (लोकनाथ) ज ५।५,२१,४६ से १५८,१६१,१७२ च २२ ज ३।६५,१५६, लोगपईव (लोकप्रदीप) ज २१ २२३,७।३८,५८ सू १।६।२१।७।१६।१ से लोगपज्जोयगर (लोकप्रद्योतकर) ज ५२१ ३;१६।२६,२०१२,३ लोगपाल (लोकपाल) प २।३० से ३३,३५,४६ से लेसागति (लेश्यागति) प १६।३८ ५१ ज २।९०,११८,११६५।१६,५०,५६ लेसापडियाय (लेश्याप्रतिघात) ज ७१३८ लोगमज्झ (लोकमध्य) ज ४२६० लेसापरिणाम (लेश्यापरिणाम) प १३१२ लोगमज्झावसाणिय (लोकमध्यावसानिक) ज ५१५७ लेसाहिताव (लेश्याभिताप) ज ७।३८ लोगसष्णा (लोकसंज्ञा) प ८।१,२ लेसुद्देस (लेणोद्देश) सू ६२ लोगहिय (लोक हित) ज ५।२१ लेस्सा (लेश्या) प २१४१,१६५०१७।१११,१७।७, लोगागास (लोकाकाश) प ११४८१५८; २।१० १७,१८,३०,३६ से ४१,८८,६७,११४,१२६, लोगाधिवति (लोकाधिपति) प २२५०,५१ १३६,१३७,१४७,१५६,१५७,१५६,१६० से लोगालोग (लोकालोक) प १०१५ १६३;१८।१।१२८।१०६।१ लोगाहिवइ (लोकाधिपति) ज २।६१,५।१८,४८ लेस्सागति (लेश्यागति) ११६।४६ लोगुत्तम (लोकोत्तम) ज ५१५,२१,४६ लेस्साणुवायगति (लेपानुपातगति) प १६।३८,५० लोण (लवण) प १२०११ लेस्सापरिणाम (लेश्यापरिणाम) प १३१६,१४,१६, लोद्ध (लोध्र) प ११३६।३ १८ से २० लोभ (लोभ) प १११३४।१।१४।४,६,८,१० से लेह (लेख) ज २।६४ उ १।११५,११६ १५,१७,२२।२०२३१६,३५,१८४ ज २।१६, लेहट्ठ (रेखास्थ) ज ७।१५८,१६१,१६४,१६७ १३३ उ ३।३४ सू १०।६५,६८,७१,७४ लोभकसाइ (लोभकषागिन ) प ३९८,१३।१४; लोअण (लोचन) ज २।१५ १८१६६,२८।१३३ लोइय (लौकिक) ज ७।११४ सू १०।१२४ लोभकसाय (लोभकषाय) ५ १४।१,२,३६६४६ उ ११९२ लोभकसायपरिणाम (लोभ कषायपरिणाम) प १३१५ लोउत्तरिय (लोकोत्तरिक) ज ७।११४ सू १०।१२४ लोभणिस्सिया (लोभनिश्रिता) प ११२३४ लोक (लोक) ज ३।१०६,१६७ लोभसंजलणा (लोभसंज्वलना) प२३१७२,१४० लोग (लोक) प ११४८१६०; २।१०,१६,३०,३२. लोभसण्णा (लोभसंज्ञा) प ८१,२ ३४,३५,३७,३८,४१ से ४३,४८,५० से ५२, लोभसमुग्धात (लोभसमुद्घात) प ३६१४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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