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________________ चोवट्टि-छप्पण्ण १०७ १३११४ घास जो रेशम रंगने के काम आता है २१६,२२१,२२२,२२४,२२५,२२८,२३०, चोवछि (चतुष्षष्टि) प २।३१ २३२,२३४,२३७,२३६,२४२ से २४४ चोवत्तर (चतुस्सप्तति) ज ७८० छट्ठाणवडिय (षट् स्थानपतित) प ५१५.७।११५, चोव्वीस (चतुर्विंशति) ज ७।१०६ चोसट्ठि (चतुष्षष्टि) ज २०६४ छठ्ठी (षष्ठी) प २।२७।२ ज ७/१२५ छण्ण (छन्न) ज ३।३ छण्णउइ (षण्णवति) प २।४०।११२।३२ ज २१६; छ (षष् ) प ११६४।१ ज १।१८ चं ३।३ सू ११७ ३१७८ उ ५१२५ छण्णउत (षण्णवति) सू १६।२१ छउमत्थ (छद्ममस्थ) प १११०११४,१४१०४ से १०७; छण्णउति (षष्णवति) सू २।३ ११७ से १२०,१२६,३।१८३,१५।४४,४५; छण्णउय (षण्णवति) सू १६।११।३;२११७ १८।६४,६५,६७,६८,३६।८०,८१ छत्त (छत्र) प २।४८,६४,१११२५ ज २।१५,२०; छउमत्थपरियाय (छद्मस्थपर्याय) ज २८८ ३।३,६,१८,३१,३५,७७,७८,६३,१७८,१८०, छक्कग (षट्क) ज ७१३१।१ छक्खुत्तो (षट् कृत्वस्) सू १२।१० २२२,५१४३,५५,५७ सू १२।२६ उ १।१६; ४।१३,१८ छगल (छगल) प २०४६ छज्ज (राज्) छज्जइ ज ३।२४।४,३७।२,४५।२, छत्तहत्थगय (हस्तगतछत्र) ज ३।११ छत्तछाया (छत्रछाया) प १६।४७ छट्ठ (षष्ठ) प ३।१८,१८३,६।८०।२; १०।१४।४ छत्तरयण (छत्ररत्न) ज ३।११७।१,११८,११६, से ६,१२।३२; १७१६५; ३३।१६,३६।८५,८७ १२१,१७८,२२० ज २१६५,८५,७।६७,११७।१ सू १०७७; छत्तरयणत्त (छत्र रत्नत्व) प २०१६० १३१८ उ २।१०,२२,३।१४,५०,५५,८३,१५० छत्तल (षट्तल) ज ३१६३,१३५,१५८ १६१,१६७,१७०।४।२४।५।२८,३६,४३ छत्ताइच्छत्त (छत्रातिच्छत्र) ज ४।३०,४६,५१४३ छट्ठक्खमण (षष्ठक्षपण) उ ३।५० से ५४ छतागारसंठित (छत्राकारसंस्थित) सू ११२५,४।२ छट्ठभत्त (षष्ठभक्त) प २८।४७ ज २।५२,१६१ । छत्तातिच्छत्त (छत्रातिच्छत्र) सू १२।२६,३० छठाणवडित (षट् थानपतित) प ५१५,७,१०,१२ छत्ताय (छत्राक) प ११४७ कुकुरमुत्ता, धनिया, १४,१६,१८,२०,२४,२५,२८,३०,३२,३४, सोया, जाल बबूर का वृक्ष ३७,३८,४१,४२,४५,४६,४६,५३,५६,५६, छत्तार (छत्रकार) प ११९७ ६०,६३,६४,६८,७१,७४,७५,७८,७६,८३, छत्तालीस (षट्चत्वारिंशत्) सू १२।२५ ८४,८६,८६,६०,६३,६४,६७,१०१,१०२, छत्तीस (षट्त्रिंशत् ) प २।४०।४ ज ३।३ १०४,१०५:१०७,१०८,१११,११२,११६,१२६, सू १०।१६६ १३१,१३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७, छत्तोह (छत्रौघ) प ११३६।३ १५०,१५१,१५४,१६३,१६६,१६६,१७२, छप्पएसिय (षट् प्रदेशिक) प १०।११ १७४१७७,१८१,१८४,१८७,१६०,१६१, छप्पण्ण (षट्पञ्चाशत् ) प ११८४ ज ४।८६ १६३,१६४,१६७,१६८,२००,२०१,२०३,२०४, सु३११ २०७,२०८,२११,२१२,२१४,२१५,२१८, छप्पण्ण (दे० षट् प्राज्ञक) ज २०१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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