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________________ चुलसीति-चोरग चुलसीति (चतुरशीति) प २।४०।१ सू २।३ चेडरूव (चेटरूप) उ ३।११४ चुलसीय (चतुरशीति) सू १।१२ चेडिया (चेटिका) उ ३।१४१ चुल्लमाउया (क्षुल्लमातृका) उ १।१२,४३,४४, । चेडी (चेटी) उ ११५४,५५,७६,८०,४।१२,१३ १४५,२१५,१७ चेतियखंभ (चैत्यस्तम्भ) सू १८।३ चुल्लहिमवंत (क्षुल्ल हिमवत्) प १६।३० ज ११४८; चेत्त (चैत्र) ज ७।१०४ उ ३।४० ४।४८ चेती (चैत्री) ज ७१३७,१४०,१४६,१५५ चुल्लहिमवंतकड (चुल्लहिमवत्कूट) ज ४।४४,४५, सू १०७,१६,२३,३६ ४८,५१,५२,७६,६६,२२६ चेदि (चेदि) प ११९३४ चुल्लहिमवंतगिरिकुमार (क्षुल्लहिमवगिरिकुमार) Vचेय (त्यज्) चेएइ उ० ४।२१ चेएसि उ ४।२२ ज ३।१३१ से १३४,१३६,४१५२ चेलपेला (चेलपेटा) उ ३३१२८ चूचुय (चूचुक ( ज २।१५ चेल्लणा (चेलना) उ १११०,३२ से ४१,४३,४४, चूडामणि (चूडामणि) प २।३० ३१ ज ३।३६, ४६,४८ से ५५,५७,५८,७० से ७४,८८,६५, १०६,११०,११३,११४ चूतलता (चूतलता) प १३३९।१ वेव (चैव) प ११११७ चूयमंजरी (चूतमञ्जरी) ज ३।१२,८८,२५८ चोइयमइ (चोदितमति) ज ३११३८ चूयवण (चूतवन) ज ४।११६ चोक्ख (चोक्ष) ज ३८२,१०६ उ ३।५१,५६ चूयवडेंसय (चूतावतंसक) प २।५०,५२ चोताल (चत्वारिंशत्) सू १२।१२,१६।१५।२ चूलासीइ (चतुरशीति ) सू १।८।२ चोत्तालीस (चत्वारिंशत्) सू १०।१३६ चूलियंग (चूलिकाङ्ग) ज २।४ चोत्तीस (चतुःत्रिंशत् ) प २।३६ ज ४।११० चूलिय (चूलिक) ज २।४ ; ४।२४२ सू १।२२ चेइय (त्य) ज १।३।२।३१,६७,७१२२४ च ७६ चोद्दस (चतुर्दशन ) प २२६; ज ११४८ सू श२,४,१८।२३ उ १६१,२,६,१७,१६, सू३।११०१६३ १४४;२।४,१६,३।४,६,२१,२४,२६,४६,८६, चोहसपूवि (चतुर्दशपूविन्) ज ११५ ६५,१५५,१५७,१६८,१७१:४।४,६,१३,१८, चोइसम (चतुर्दश) ज २१८८ २८:५३६ चोद्दसरयणीसर (चतुर्दशरत्नेश्वर) ज ३।१२६।३ चेइमखंभ (चैत्यस्तम्भ) ज २।१२०,४।१३३; चोद्दसविह (चतुर्दशविध) प २३।१६,२० ७।१८५ चोप्पाल (दे०) ज ४,१३७ आयुधशाला चेइयथूभ (चैत्यस्तूप) ज २११४,११५ चोप्पालग (दे०) ज २।२० वरण्डा चेइयरुक्ख (चैत्यरूक्ष,चैत्यवृक्ष) ज ४।१२६,१२७ चोय (दे०) ज ३।११।३ चेट्ठा (चेष्टा) ज २११३३ चोयपुड ('चोय'पुट) ज ४।१०७ चेड (चेट) ज ३।६,७७,२२२ चोयाल (चतुश्चत्वारिंशत्) प २।४०।३ ज ७७६ चेडग (चेटक) उ ११२२,१०७,१११,११५,११६, सू ११८ ११६,१२८,१३७,१४० चोयालीस (चतुश्चत्वारिंशत्) प १३५ ज ७८ चेडय (चेटक) उ ११२२,२५,२६,१०५ से १०७, चोयासव (चोयासव) प १७।१३४ १०६,११०,११३,११४,११६ से ११६,१२७, चोर (चोर) प १७।१३२ उ ३।१२८ १२६ से १३४,१४० चोरग (चोरक) प ११४४।३ असबरक, एक बढ़िया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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