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________________ ८८४ केवचिर-केवलिसमुग्याय १८,२३ से २५७।१,३ से २५,३२,५४,५७, केवल (केवल) प २०१७,१८,२६,३४ ज २०७१, ६०.६२.६४ से ७३,७६,७६ से ८२,८६ से ८५३।२२३७१३५।१,१८५ सू १८१२३ ६६,९८ से १००,१२७,१७० से १७२,१७४, केवलकाप्प (केवलकप्प) ३६।८१ ज ३१२६,३६, १८२,१८७,१६८,१६६,२०१ से २०७ ४७,५६,६४,७२,१३३,१३८,१४५,१७५, चं २।१३।२ १६६।११।७।२ उ ३।१६, १८५,१८८,२०९,२११ उ ३१७,६१ १२४,१६४ केवल (णाण) (केलज्ञान) प २६१७ केवचिर (झियच्चिर) प १८।१ से १०,१२ ग ३७, केवलणाण (केवलज्ञान) प२१६४५१३,५१२४, ४१ ४७,४६ से५१,५४ से ८२,८४ से ६०. १०२,१०७,११६ १७१११३;२०११८,३३; १३ से १११,११३,११४,११६,११७.११६, २६।२;३०१२ १२०,१२२,१२३,१२५ से १२७ ज ७.२१० केवलणाणारिय (केवलज्ञानार्य) प १९६ केवति (कियत्) प ७.१ से ४,६ से ८,१० से ३०; केवलणाणावरणिज्ज (केवलज्ञानावणी) २८।१।१,२८१४,२६,३८,५०,३६।६७,७१,७२, प २३।२५ केवलणाणि (केवलज्ञानिन ) प ३३१०१,१०३; केवनिय (कियत्) व ४।१ से ४६,५६ से ५८,६५, ५।१,११८,११६; १३।१६:१८१८२; ७२.७६,८८,९२,६८,१०१,१०४,११३,१३१, २८।१३६,१४०।३०।१६,१७ १४०,१४६,१५८,१६५,१६८,१७१,१७४, केवलदसण (केवलदर्शन) प ५१२४,१०२,१०५, १८३,२०७,२१०,२१३,२६४,२६७,२६६ १०७,११६; २६।३,१७,३०।३,१७ ५१४,६,६,११,१७,२३,२७,२६,३१,३३,३६, केवलदंसणावरण (केवल दर्शनातरण) प २३।१४ ४०,४४,४८,५२,८३,६२,१००,१०३,१०६, केवलदसणावरणिज्ज (केपलदर्शनावरणीय) ११०,११४,११८,१२८,२३१,२४१,६१,२, ५२३१२८ ४ से २३,२७,४३ से ४५,६० से ६४,६७,६८; केवलदंसणि (केवल दर्शनिन) प ३।१०४,५।१२०%; १२१७ से १०,१३,१५,१६,२०,२१,२३,२७, १८१८८;३०।१६ ३१.३२,१५७,८,१४,१५,२२,२३,२७,४०, केवलदिठ्ठि (केवलदृष्टि) प २।६४।१३ ४१,८३ से ८५,८६,६१,६४ से ६८,१००, केवलनाण (केवलज्ञान) प ५।१०५ १०३ से १०६,१०८,१०६,११३ से १२०, केवलनाणपरिणाम (केवलज्ञानपरिणाम) प १३१६ १२३,१२६,१२७,१२६,१३१,१३२,१३५, केवलनाणि (केवलज्ञानिन्) प ५११६ १३६ से १४१,१४३,१७१०६,१०८,११०, केवलयोहि (केवलबोधि) उ ५१४३ १४२,१४३ ; २०१६,१०,१२,१३, २३।६० से केवलि (केमिन) प १११०४,१०८,१२१,१२६% ६२; ३३।२,३,१०,१२,१३ १५ से १८; १८६४,६६,६७,६६,२०११७,१८,२२,२५,२८ ३४।१३,३६८ से २२,३० से ३४,४४ से २६,३४,४५; ३०।२५ से २८, ३६।८२,८३, ४७,५६,६६,७०,७३,७४ ज ७।१७३ ८३।२ ज २६६३,७१, ३।२२४,२२५ सू ११२०,२२,२३,२६,२८ से ३१; २३; उ ३।१०२,१३५,१४२ ३।१,४,५,८,१०,१२।२ से ११४।४,८, केवलिपरियाय (केलिप वि) ज २८८,३।२२५ १५।२ से ७,१८१४ से ६,९,१०,१२,१३,२०, केलिय (कै निक) ५ ३६।१।१ २५ से ३४,१६।४,५,७,८,१०,११,१४,१५, केवालिसमुग्घाय (केवलीसमुद्घात) प ३६।१,३,७, १८ से २१,२५,३०,३१,३४,३५,३७,३८ ११,१५ से १७,३१,३४,३५,४१,७६,८५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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