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________________ महोरग-मायणि १०१७ महोरग (महोरग) प ११६८,७५,१३२, २।४५ उ ३३३४ ज ३।११५,१२४,१२५ माणकसाइ (मानकषायिन्) प ३।१८:२८।१३३ महोरगच्छाया (महोरगच्छाया) प १६।४७ माणकसाय (मानकषाय) प १४११ मा (मा) उ ११४१, ३।१०३,११२,४।११ माणसायपरिणाम (मानकषायपरिणाम) प १३१५ माइ (मात) उ ११४८; २२२,४।२८,२४३ माणकसायि (मानकषायिन् ) प ३९८ माइमिच्छद्दिट्ठि (मायिमिथ्यादष्टि) प १५४६; माणणिस्तिया (माननिश्रिता) प १११३४ १७।२२; ३४।१२; ३५।२३ माणमूरण (मानभञ्जन') ज ५१५८ माइमिच्छद्दिठिउववाग माणवग (माणवक) ज २११२०,३।१६७।१,६, (मायिमिथ्यादृष्ट्युपपन्नक) प १७।२७,२६ ३।१७८,४।१३५ सू २०१८ माइमिच्छद्दिट्ठीउववण्णग माणवय (मानवक) ज ४।१३३७।१८५ (माणिमिथ्यादृष्ट्युपपन्न क) प १७।२७ सू १८।२३, २०१८४ माइय (मात्रिक) ज २०१५ माणस (मानस) प ३५।११२,३५।६,७ ज ५।२६ माईवाह (मातृवाह) प ११४६ माणसंजलणा (भानसंज्वलना) प २३१७० माउय (मातक) ज ५६ से १२,१७,४६,७२,७३ माणसण्णा (मानसंज्ञा) प ८।१,२ माउलिंग (मातुलिङ्ग) प १।३६।१ माण सभुग्घाय (मानसमुद्घात) प ३६।४२,४६, ४८ से ५२ मालिंगाराम (भातुलिंगाराम) उ ३१४८,५५ माणि (मानिन्) ज ४११७२।१ सू २०६२ माउलिंगी (मातुलिङ्गी) प ११३७।१ माणिक्क (माणिक्य) ज ३।१०६ माउलुंग (मातुलिङ्ग) प १६।५५ : १७।१३२ माणिभद्द (माणिभद्र) प २१४५,२।४५।१ ज ११३; मागह (मागध) ज ५।५५,६१२ से १४ ७।२१४ च ७,६ सू ११२,४ उ ३।२।१,३।१६६ मागहकुमार (मागधकुमार) ज ३३१३१ मागहतित्थ (मागधतीर्थ) ज ३११४,१५,१८,२२; माणिभद्दक ड (माणिभद्रकूट) ज ११३४,४६ माणुरा (मानुष) प २।६४।१४ ज २।१५,६७; २६,५।५५ ३।६२,११६,४।१७७ सू १६।२२।२;२०१२ मागहतित्थकुमार (गधतीर्थकुमार) ज ३।२०, २६,२७,२८,३० माणुसखेत (मानुषक्षेत्र) सू १६।२१।१,२,१६।२६ मागहतित्थाधिपति (मारधतीर्थाधिपति) ज३।२५ माणुसणग (मानुषन्नम) रु १६।२२।२७,२६ मागहतित्थाहिवइ (मागधतीर्थाधिपति)ज ३।२६ मामलोय (मानुपलोक) सू १६।२१।६।२०१२ माघी (माघी) ज ७।१४० माणुसुत्तर (मानुषोत्तर) ज ७।५५,५८ सू१६।१६ माडंबिय (माउम्बिक) प १६।४१ ज २२५,३।६, माधुस्सग (मानुष्यक) उ ३।१३७ १०,७७,८६,१७८,१८६,१८८,२०६,२१०, माणुस्थय (मानुष्यक) ज ३।८२,१८७,२१८, २२१:४।१७७ सू२०१७ उ ११११,३४:५।२५ २१६,२१६,२२१,२२२ उ ११६२,३।११, माता (जात्रा) प २१६४ १०१:५।१० माढरी (माठरी) पश४८।४ माय (गा) माएज्जा प २१६४।१६ माढी (माठी) ज ३।३१ भायंजण (माताजन) ज ४।२०२ माण (मान) प १११३४।१,१४१४,६,८,१० से १४; मायकाइ (आयाकषायिन् ) प ३६८,१८१६५ मायणि (मादनि) उ ५।२।१ २२।२०,२३६,३५,१८४ ज २११६,६६,१३३; ३।६५,१३८,१५६,१६७।३,२२१ सू १२।१७।१ १. हे० ४।१०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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