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________________ ८२० अणगघाइज्जमाण-अणाहारग अणागार (अनाकार) प २१६४।१२; २६।११; ३०२६ से २८ अणागारपस्सि (अनाका रदर्शिन ) प ३०।१५ से१८ २०,२२,२३ अणागारपासणता (अनाकारदर्शन, पश्यत्ता) प३०१७ अणागारपासणया (अनाकारदर्शन, °पश्यत्ता) प३०।१,३,५,७,१२,१३ अणागारोवउत्त (अनाकारोपयुक्त) प ३३१०६, १७४; १३।१४; १८।६३; २६।१६ से २१ अणागारोवओग (अनाकारोपयोग) प १३१८,२६।१ ३,५,७,८,१०,१३,१४ अणाघाइज्जमाण (अनाघ्रायमाण) प २८।४४,७० अणाढाइज्जमाण (अनाद्रियमाण) उ ३१६२ अणाढायमाण (अनाद्रियमाण) उ ३।५६,६१,७७, अणग्घाइज्जमाण (अनाघ्रायमाण) प २८१४३, ४४,६९,७० अणग्घिय (अनधित) ज ३।६२, ११६ अणतिवर (अनतिवर) ज ३।११६ अणदब्भवाह (अदभ्रवाह) ज ३।१०६ अणभिग्गहिय (अनभिग हीत) प १११०१।११ अणभिग्गहिया (अनभिगहीता) प १११३७।२ अणरिह (अनह) उ ११४०,४३ अणव (ऋणवत्) ज ७।१२२।३ सू१०१८४।३ अणवकंखमाण (अनवकाङ्क्षत्) ज ३।२२४ उ० २।११ अणवगल्ल (अनवकल्प) ज २।४।१ अणवहित (अनवस्थित) सू ६।१०।८।१०; १३।१७,१६।२२।१०,२७ अणवठ्ठिय (अनवस्थित) प ३३।३५,३६ ज ७।३१,३३ सू ४।३ से ७ अणवष्णिद (अणपन्निकेंद्र) प २१४६ अणवण्णिय (अणपन्निक) प २४१,४६ अणवण्णियकुमारराय (अणपन्निककुमारराज) प २०४६ अणवन्निय (अणपन्निक) प २१४६,४७।१ अणवरय (अनवरत) ज २१६४ ; ३॥१८५,२०६ अणसण (अनशन) उ २११२; ३३१४,८३,१२०, । १५०,१६१,५।२८,३६,४१,४३ अणस्साइज्जमाण (अनास्वाद्यमान) प२८।४३,४४ ६६,७० अणह (अनघ) सू २०१७ अणह (दे०अक्षत) ज ३८१ अणाईय (अनादिक) प १८।१३,१०५ अणाएज्जणाम (अनादेयनामन्) प २३।१२६ अणागतद्धा (अनागताध्वन्) २०६४ ; ३६।६३ अणागय (अनागत) ज २१६०; ३।२६,३६,४७, ५६,१३३,१३८,१४५, ५॥३,२२; ७।३६,५२ अणागयद्धा (अनागताध्वन्) प ३६।१४ अणागयवयण (अनागतवचन) प १११८६ अणाढिय (अनादत) ज ४।१५०,१५६,१६०; ७.२१३ उ ३।२,१७१ अणाणत्त (अनानात्व) प २।३,६,६,१२,१५ अणाणुगामिय (अनानुगामिक) प ३३।३५ अणाणुपुव्व (अनानुपूर्व्य) ज ७।४७ अणाणपुव्वी (अनानुपूर्वी) प १११६८२८१८, ६४ अणादि (अनादि) सू ११६,११११ अणादीय (अनादिक) प १८।२५,५५,५६,६४,६८ ७७,८३,८६,६०,१११,१२२,१२३,१२६, १२७ अणादेज्ज (अनादेय) ज २११३३ अणादेज्जणाम (अनादेयनामन् ) २३।३८ अणाभोगणिव्वत्तिय (अनाभोगनिर्वर्तित) प १४।६% २८।४,५०, ३४१५ अणारिय (अनार्य) ज २१४३ अणालोइय (अनालोचित) उ ३।८३ १२०४।२४ अणावुट्ठिबहुल (अनावृष्टिबहुल) ज ११८ अणासाइज्जमाण (अनास्वाद्यमान) प २८१४०, ४१,४४,७० अणाहारग (अनाहारक) ३३१०७, २८।१०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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