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________________ बीओ वक्खारी ३६५ १२७. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भक्स्सिइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा मुइंगपुक्खरेइ वा जाव' णाणाविहपंचवण्णेहि 'मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा-कत्तिमेहि चेव अकत्तिमेहिं चेव ॥ १२८. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स मणयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसि मणयाणं छविहे संघयणे, छविहे संठाणे, बहुईओ रयणीओ उड्ढे उच्चत्तेणं जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आउयं पालेंति,' पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणयगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वंति° सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ॥ १२६. तीसे णं समाए पच्छिमे तिभागे गणधम्मे पासंडधम्मे रायधम्मे जायतेए धम्मचरणे य बोच्छिज्जिस्सइ ।। १३०. तीसे णं समाए एक्कवीसाए वाससहस्सेहिं काले विइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं, अणंतेहिं गंधपज्जवेहिं अणंतेहिं रसपज्जवेहिं अणंतेहिं फासपज्जवेहि अणंतेहिं संघयणपज्जवेहि अणंतेहिं संठाणपज्जवेहि अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अणंतेहि आउपज्जवेहि अणंतेहिं गरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहि अगरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं उट्ठाण-कम्मबल-वीरिय-पुरिसक्कार-परकम्मपज्जवेहिं अणंतगुणपरिहाणीए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दसमदसमणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो !॥ १३१. तीसे णं भंते ! समाए उत्तमकट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे भविस्सइ ? गोयमा ! काले भविस्सई हाहाभूए भंभाभूए'कोलाहलभूए समाणुभावेण 'य णं खरफरुसधूलिमइला दुव्विसहा वाउला भयंकरा य वाया संवट्टगा य वाहिति । इह अभिक्खं धूमाहिति य दिसा समंता रउस्सला" रेणुकलुस-तमपडल-णिरालोया । समयलुक्खयाए य णं अहियं चंदा सीयं मोच्छिहिति, अहियं सूरिया तविस्संति। अदुत्तरं च णं गोयमा ! अभिक्खणं अरसमेहा विरसमेहा खा रमेहा खत्तमेहा" अग्गिमेहा विज्जुमेहा विसमेहा १. जी. ३।२७७ । ५. भागे (स)। २. सं० पा......णाणामणिपंच जाव कित्तिमेहिं । ६. सं० पा०-फासपज्जवेहिं जाव परिहायमाणे। ३. अत्र भविष्यदर्थे वर्तमानक्रियाप्रयोगः (ही); ७. उत्तिमट्ठपत्ताए (अ,ब); उत्तिमकट्ठपत्ताए अत्र पालयन्ति अन्तं कुर्वन्ति इत्यादौ भविष्य- (क,स)। कालप्रयोगे कथं वर्तमाननिर्देशः ? उच्यते, ८. हाहन्भूते (अ,क,ख,ब,स)। सर्वास्वप्यवसप्पिणीषु पञ्चमसमासु इदमेव ६. भंभन्भूए (भ० ७११७) । स्वरूपमिति नित्यप्रवृत्तवर्तमानकाले वर्तमान- १०. x (अ,त्रि,ब,पुव)। प्रयोगः (शावृ)। ११. रयोसला (अ,क,ब,स)। ४. सं० पा० --णिरयगामी जाव सव्वदुक्खाण- १२. खट्टमेहा (ख, पुवृपा, शावृपा)। मंतं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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