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________________ २६४ जंबुद्दीवपण्णत्ती महामहिमाओ करेंति, करेत्ता जेणेव साइं-साइं विमाणाई जेणेव साइं-साइं भवणाई जेणेव साओ-साओ सभाओ सुहम्माओ जेणेव सगा-सगा माणवगा चेइयखंभा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु जिण-सकहाओ पक्खिवंति, पविखवित्ता अग्गेहिं वरेहि मल्लेहि य गंधेहि य अच्चेति, अच्चेत्ता विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति ।। १२१. तीसे णं समाए दोहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं काले वीइक्कते अणंतेहि वण्णपज्जवेहि अणंतेहिं गंधपज्जवेहि अगतेहिं रसपज्जवेहिं अणंतेहिं फासपज्जवेहिं अणंतेहिं संघयणपज्जवेहिं अणंतेहिं संठाणपज्जवेहिं अणंतेहिं उच्चत्तपज्जवेहि अणंतेहिं आउपज्जवेहि अणतेहि गरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं उट्ठाण-कम्म-बलवीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहि अणंतगुणपरिहाणीए° परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमसुसमाणामं समा काले पडिज्जिसु समणाउसो !॥ १२२. तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, से जहाणामए आलिंगपुक्ख रेइ वा जाव' णाणाविहपंचवण्णेहि मणीहिं तणेहि य उवसोभिए, तं जहा- कत्तिमेहिं चेव अकत्तिमेहिं चेव ॥ १२३. तीसे णं भंते ! समाए भरहे वासे मणयाणं केरिसए आगारभावपडोयारे पण्णत्ते ? गोयमा ! तेसिं मणुयाणं छविहे संघयणे, छबिहे संठाणे, बहूई धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं, जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडि आउयं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइया णिरयगामी' •अप्पेगइया तिरियगामी, अप्पेगइया मणुयगामी, अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिझंति' 'बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वं ति° सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ।। १२४. तीसे णं समाए [भरहे वासे] तओ वंसा समुप्पज्जित्था, तं जहा–अरहंतवंसे चक्कवट्टिवंसे दसारवंसे ।। १२५. तीसे णं समाए [भरहे वासे] तेवीसं तित्थकरा, एक्का रस चक्कवट्टी, णव बलदेवा, णव वासु देवा समुप्पज्जित्था । १२६. तीसे णं समाए [भरहे वासे] एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहि ऊणियाए काले वीइक्कते अणंतेहिं वण्णपज्जवहिं' 'अणंतेहिं गंधपज्जवेहि अणतेहिं रसपज्जवेहि अणंतेहिं फासपज्जवेहिं अणतेहिं संघयणपज्जवेहि अणंतेहिं संठाणपज्जवेहि अणंतेहि उच्चत्तपज्जवेहि अणतेहिं आउपज्जवेहिं अणंतेहि गरुयलहुयपज्जवेहिं अणंतेहिं अगरुयलहुयपज्जवेहि अणंतेहिं उठाण-कम्म-बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपज्जवेहि अणंतगुण परिहाणोए परिहायमाणे-परिहायमाणे, एत्थ णं दूसमा णामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो !॥ १. सं० पा० ----वण्णपज्जवेहि तहेव जाव अणंतेहि उढाणकम्म जाव परिहायमाणे। २. जी० ३।२७७ । ३. पुवकोडी (अ,त्रि,प,ब)। ४. सं० पा०.-णिरयगामी जाव देवगामी। ५. सं० पा.-सिझंति जाव सव्वदुक्खाणमंतं । ६. सं० पा०-वण्णपज्जवेहिं तहेव जाव परिहाणीए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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