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________________ सत्तरसम लेस्सापयं २३३ रस-पदं १३०. कण्हलेस्सा णं भंते ! केरिसिया आसाएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामएणिबे इ वा णिबसारे इ वा णिबछल्ली इ वा णिबफाणिए इ वा कुडए इ वा कुडगफले इ वा कुडगछल्ली इ वा कुडगफाणिए इ वा कडुगतुंबी इ वा कडुगतुंबीफले इ वा खारत उसी इ वा खारतउसीफले इ वा देवदाली इ वा देवदालिपुप्फे इ वा मियवालुंकी इ वा मियवालुंकीफले इ वा घोसाडिए इ वा घोसाडइफले इ वा कण्हकंदए इ वा वज्जकंदए इ वा, भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणठे, समठे, कण्हलेस्सा णं एत्तो अणिद्रुतरिया चेव' 'अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव अमणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता । १३१. णीललेस्साए पुच्छा। गोयमा ! से जहाणामए-भंगी ति वा भंगीरए इ वा पाढा इ वा चविया' इ वा चित्तामूलए इ वा पिप्पलीमलए इ वा पिप्पली इ वा पिप्पलिचुण्णे इ वा मिरिए इ वा मिरियचुण्णे इ वा सिंगबेरे इ वा सिंगबेरचण्णे इ वा, भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणठे समठे, णीललेस्सा णं एत्तो' •अणि?तरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव अमणामतरिया चेव आसाएणं पण्णत्ता। १३२. काउलेस्साए पुच्छा। गोयमा ! से जहाणामए-अंबाण वा अंबाडगाण वा माउलुंगाण" वा बिल्लाण वा कविट्ठाण वा भव्वाण वा फणसाण वा दालिमाण वा पारेवताण वा अक्खोडयाण" वा चाराण वा बोराण वा तेंदुयाण वा अपिक्काणं अपरियागाणं वण्णेणं अणुववेताणं गंधेणं अणववेताणं फासेणं अणववेताणं, भवेतारूवा? गोयमा ! णो इणठे समठे, एत्तो" •अणि?तरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुण्णतरिया चेव अमणामतरिया चेव काउलेस्सा आसाएणं पण्णत्ता॥ १३३. तेउलेस्सा णं पुच्छा । गोयमा ! से जहाणामए-अंबाण वा जाव तेंदुयाण वा पिक्काणं परियावण्णाणं वण्णणं उववेताणं पसत्थेणं" 'गंधेणं उववेताणं पसत्येणं फासेणं उववेताणं पसत्थेणं, भवेतारूवा ? गोयमा ! णो इणठे समठे एत्तो इद्रुतरिया चेव कंततरिया चेव पियतरिया चेव मणुण्णतरिया चेव मणामतरिया चेव तेउलेस्सा आसाएणं पण्णत्ता ॥ ३४. पम्हलेस्साए पच्छा । गोयमा ! से जहाणामए-चंदप्पभाइ वा मणिसिलागार इ वा वरसीधू इ वा वरवारुणी इ वा पत्तासवे इ वा पुप्फासवे इ वा फलासवे इ वा १. सं० पा०-अणिट्टतरिया चेव जाव अमणाम- भट्ठाण (पु); एतत् पदं मलयगिरिवृत्ती तरिया। नास्ति। २. अस्साएणं (पु) सर्वत्र । ७. अक्खोलाण (पु)। ३. चचिया (क); वछिया (ख); मलयगिरि- ८. पोराण (ख); चोराण (ग,पु)। वृत्तौ एतत् पदं नास्ति व्याख्यातम् । ६. अपक्काण (क,ख,घ)। ४. सं० पा०-एत्तो जाव अमणामतरिया। १०. सं० पा०-एत्तो जाव अमणामतरिया। ५. माउलिंगाण (घ)। ११. सं० पा०-पसत्थेणं जाव फासेणं जाव एत्तो। ६. भद्दाण (क)x (ग); भज्जाण (घ); १२. मणिसलागा (क); मणिसिला (ख,ग,घ)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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