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________________ वीसइमं पाहुडं ७०३ ठाणं वृत्ति सूव० चव जं० पुव जं. हीव तिलोयपण्णत्ति विजिष्णु सदृश पुष्पवर्णः संधि दगपंचवण्ण तिलः तिलपुष्पवर्णक: ,, दक: दकवर्णः दकवर्णः कायः वन्ध्यः इन्द्राग्निः धूमकेतुः हरिः पिङ्गलः बुधः सूनकेतुः कलेवर अभिन्न ग्रन्थि मानवक कालक कालकेतु निलय अनय विद्युज्जिह्व " पिंगले शुक्र: बृहस्पतिः सिंह राहः अगस्तिः माणवकः . कामस्पर्शः धुरः प्रमुखः अलक निर्दु:ख काल महाकाल विकटः महारुद्र सन्तान विपुल संभव स्वार्थी विसंधी नियल्ले क्षेम जडियाइल्लए विसंधिकल्प: प्रकल्प: जटाल: अरुणः अग्निः काल: महाकालः स्वस्तिक: सौवस्तिकः वर्द्धमानक: प्रलम्बः नित्यालोकः नित्योद्योतः स्वयंप्रभः अवभास: श्रेयस्करः चन्द्र निर्मन्त्र ज्योतिष्माण दिशासंस्थित विरत वीतशोक निश्चल प्रलम्ब भासुर स्वयंप्रभ विजय वैजयन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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