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________________ १०५० वीइभय-वुच्च वीइभय (बीतिभय) प १६३।४ वीरियंतराइय (वीर्यान्तरायिक) प २३६५६ वोइय (बीजित) ज ३।६,२२२ वीरियंतराय (धीर्यान्तराय) प २३।२३ वीइवइत्ता (व्यतिव्र) ज १११६,४६,४१५२ वीवाह (विवाह) ज २।१३० । उ ५।४१ वीस (विस) प २२० से २७ वीईवयमाण (व्यतिव्रजत्) ज २१६०,३।२६,३६, वीस (विंशति) प २।२४ ज ११२३ सू ७।१ ४७,५६ ६४,७२,१३३,१४५,५१४४,४७,६७ उ ५।२८ वीचि (वीचि) ज २११५,३८१ वीस (विंशतितम) प १०।१४।४ वीणग्गाह (वीणाग्राह) ज ३।१७८ वीसइ (विंशति) ज ३।१०६ च २।५ २ १।६।५ वीतराग (टीत राग) प १११०७ से ११०,११५, वीसइअंगुलवाहाक (विशत्यंगुलबाहुक) ज ३।१०६ ११७ से १२३ बीसति (विंशति) प २३७५ वीतरागसंजय (वी। रागसंगत) प १७।२५ वीसतिम (विंशतितम) सू १२।१७ वीतसोग (वीतशोक) सू २०१८ धीसधा (विंशतिधा) सू १२।३० वीतिमिर (वितिमिर) । २०६३ वीससा (मिस्रसा) १६५५; २३।१३ से २३ वोतिवयमाण (व्यतिव त्) ज ३।११३; ५।४४ वीससेण (विश्वसेन) ज ७।१२२।२ सू १०।०४।२ वीतीवय (वि:-अति-व्रज) वीतिवथति वीसहा (विंशतिधा) सू १०।१४२,१४७ भू२०१२ वीसायणिज्ज (विस्वादनीय) प १७।१३४ वीसुत (विश्रुत) ज ३।३५,११६ वीतीवतित्ता (अतिव्रज्य) प २१६३ वीहि (व्रीहि) प ११४५।१ ज २।३७ वीयणी (बीजनी) ज ३।३ वुच्च (वच्) बुच्चइ प ५७,३४,१०१,११६,१६६; वीयराग (पीतराग) प ११००,१०४ से १०७, ११।३,४१,१७१२,१३,२०,२७,११६,११६, १०६ से १११,११५,११६,११८,१२१ से १२३ १५२,१५५,२०१३६ ज ११४५,४७, २।४।१; वीयराय (वीतराग) प १।१०२ से १०४,११६, ३।१,६८,२२६,४।२२,३४,५१,५४,६०,६१, ११७,११६,१२०,१२२ ८०,८५,८६,६७,१०२,१०७,११३,१५६,१६१, वीयसोय (बीतशोक) ज ४।२१२,२१२१२ १६६,१७७,२०८,२११,२६१,२६४,२७०, सू २०१८७ २७३,२७६,७।१६६,१८५,२०६,२१३,२२६ वीर (वीर) ज ३१६,१०३,१०८ से १११,२२२ उ ३।३८ वुच्चंति प २२१४५;३०।१७ वुच्चति चं ११ उ ११२२,१४०, १५,१० प ५।३,५,७,१०,१२,१४,१६,१८,२०,२४, वीरंगय (वीराङ्गद) उ ५।२५,२७ से ३० २८,३०,३२,३७,४१,४५,४६,५३,५६,५६, वीरकण्ह (कीरकृष्ण) उ ५।१० ६३,६८,७१,७४,७८,८३,८६,८६,६३,६७, वीरण (वीरण) प ११४१११ १०४,१०७,१११,११५,१२७,१२६,१३१, वीरवर (वीरवर) सू २०६६ १३४,१३६,१३८,१४०,१४३,१४५,१४७, वीरसेण (वीरसेन) उ ५।१० १५०,१५४,१५७,१६३,१६६,२०३,२४२; वीरिय (वीर्य) प २३।६ ज २१५१,५४,७१,१२१, १०१३;११४३,३६,४१,१५।४५,४८,६८; १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, ... १७१२,४,६,६,११,१६,१७,२०,१०७,१०६, १६३, ३।३,१२६,१८८,७१७८ सू २०११, १११,११६,११६,१५०,१५५, २०१३६,५१; २०६।३,५ २२१८,४५,२३।१६०।२६।१७,१६ से २१% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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