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________________ पढमं पण्णवणापयं संठाणपरिणता वि २० ॥ जे रसओ अंबिलरसपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता विदुभिगंधपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता विरुयफासपरिणता व लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि ठाणपरिणता वितंससंठाणपरिणता वि चउरंस संठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २० । जे रसओ महुररसपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोणपरिणता विहालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधतो सुब्भिगंधपरिणता विदुब्भिगंध परिणता वि, फासतो कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता' वि लहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि fraफासपरिणता विलुक्खफासपरिणता वि, संठाणतो परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वितंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठापरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २०११०० ॥ ८. जे फासतो कक्खडफासपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुभगं परिणता विदुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महररसपरिणता वि, फासतो गरुयफासपरिणता विलहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता विलुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडल संठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता २३ । जे फासतो मउयकासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता व हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणया वि, गंधओ सुभिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता व अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ गरुयफासपरिणया वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता विलुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडल संठाणपरिणया विवट्टसंठाणपरिणता वितं संठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणया वि २३ । जे फासतो गरुयफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुभिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिल रसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफास १. गुरु (ग, घ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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