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________________ ६२८ V निव्वाण ( निर्वापय् ) णिव्वाविस्सति ज २।१४१ णिव्वाहि ज ५।२८ णिव्वावेंति ज २।११२ णिव्वावेह ज २।१११ fraasee (निर्वृतिकर ) ज २।६४; ३ | ३ ; ४।१४६ froaइकरण (निर्वृतिकरण ) प १।१।२ floatee (निर्वृतिकर) ज ४।१०७ णिसंत ( निशान्त) ज ५।२६ सिग्ग ( निसर्ग ) ११।१०१।२ णिसट्ठ (निःसृष्ट) ज ३।२५,३८,४६,४७,१३२ सिढ (निषेध) प १६।३० ज ४।६६ freढकूड (निषधकूट) ज ४।६६ पिसण्ण (निषण्ण) ज २२८८३६,८१,२२२ णिसम्म ( निशम्य ) ज ३१६ णिसह (निषेध) ज ४८१,८६,८७,६७, ६८, २०१ से २०३,२०६, २०७, २०६,२३८,२६२ णिसहकूड (निषधकूट) ज ४।२३६ णि सहद्दह (निषधद्रह ) ज ४।२०७ सिर ( नि + सृज् ) णिसिरइ ज ३।२४,२६, ३७,३६,४५,४७,१३१,१३३ णिसिरंति ३।१६२; ४।५,७; ५।५, ७ णिसिरति प११।७१,७२,८४,८५ णिसिरण ( निसृजन ) प ११।७१ णिसिरमाण ( निसृजत् ) प ११।७१ जिसीइत्ता (निषद्य) ज ३०४६ / णिसीय ( नि + षद् ) णिसीएज्ज प ३६।९१ णिसीयइ ज ३८, ४१, ४६, ५८, ६६,७४, १४७, २१५,२२२ णिसीयंति ज १।१३,३०,३३; २७४ २ ५।४२ णिसीयति ज ३।१८८ / सियाव ( नि + षादय् ) णिसीयावेंति ज ५।१४,१७ णिसोयवेत्ता (निषाद्य) ज५।१४ णिसेग (निषेक) प २३।६० से ६४,६६,६८,६६, ७३,७५ से ७७, ८१, ८३, ८५ से ६०, ६२, ६५, से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४,११६ से ११८, १२७,१३०,१३१,१३३,१७६, १७७, १८२,१८३,१८७ Jain Education International णिव्वाण णीलय णिस्संग ( निःसङ्ग ) ज ५५८ मिस्सग्गरुड ( निसर्गरुचि) प १११०१।३ णिस्सा ( निश्रा ) प १२०, २३, २६,२६,४८ णिस्साय ( निश्राय) ज ३।१०६ णिस्सील ( निःशील) ज २११३५ णिस्सेस ( निःश्रेयस् ) ज २०७१ हिट्टू ( निहृत्य ) ज ३।६ (हिण ( नि + हन्) हिणंति ज ५। १३ हिणित्ता ( निहत्य) ज ५।१३ हियरय ( निहत रजस् ) ज ५।७ णिहि (निधि) प १५।५५।२ ज ३।१६७।१३, १४, १६८ णि हिय ( निहित ) ज ३।११६,२२१ णिहिरयण ( निधिरत्न) ज ३।१६७, १७०, ७ २०१, २०२ fuge (स्निहूक ) प ११४८४१ √णी (नी) इ ज ७।१५६,१५७,१६१,१६५, १६६; ३।१६३ णेति ज ७ १५६ सू१०।६३ ति सू १०/६३ / णी ( गम् ) णीति ज ३ । १०६ णीइ (नीति) ज ३।१६७ जोगिया (नीनिका) प १।५१ णीम ( नीप ) प १३६३ णी (नीत ) प १५ । १०२ णीयतर ( नीचतर ) ज ४।५४ णीयागोय ( नीचगोत्र ) प २३।२२,५७,५८,१३२ णीय (नीरजस् ) प २।३०,३१,६३,३६।६३,६४ ज १।१८,२३, ३१; २।६ ; ५।५८ जीरागदोस (नीरागदोष) ज ५।५८ नील (नील) प १६ से ८२।३१,२।४०।११; ५।५,७१३१६; १७ ६४; २३|१०४; २८/३२, ६६ ज ३।३१;४।२६४ सू २०१२, ८, २०१८१३) नीलकणवीरय (नीलकरवीरक) प १७।१२४ नीलकूड ( नीलकूट) ज ४।२६३।१ बंधुजीवय (नीलबन्धुजीवक ) प १७।१२४ नीलय (नीलक ) प १७।१२६ सू २० २ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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