SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1006
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ णीललेस-२ इय ६२१ णीललेस (नीलबेश्य) प १७।८३,६२,६४,६५, णेग (नैक) प २८।४०,४३,६६ ज ३।३,३२ १०२,१०३.१०८,१६८,१८१७० अंगम (नगम) प १६।४६ णीललेस्टठाण (नीललेश्यास्थान) प १७४१४६ णेदव्व (नेतव्य) सू ६।१८।१६।३।१०।२३,२५; णीललेसा (नीललेश्या) प १७।१२१,१२४; १३॥ १८॥१,१६।१,३५,२०१८ २८।१२३ णेतु (नेतृ) सू १०।६३ णीललेस्स (नीलले श्य) प ३१६६;१३।१४;१७।३१, णेत्त (नेत्र) प १५७७,८२ ५६,५७,५६,६१६४,६६ से६८,७१ से ७४, णेत्तविण्णाणावरण (नेत्रविज्ञानावरण) १२३।१३ ७६,८१ से ८५,८७,१००,१०३,१०६ से १११, णेत्तावरण (नेत्रावरण) प २३।१३ जेद्दर (दे० नेहुर) प ११८६ णीललेस्सठाण (नीललेश्यास्थान) प १७।१४६ म (नेम) ज १।११ जीललेस्सा (नील लेश्या) प १६।४६; १७।३६, णेमि (नेमि) ज ३१३०,६५,१५६,१७८ ११५ से १२२,१२४,१२६,१३१,१३६,१४४, णेमिपास (नेमिपाव) ज ३।२२ १४५,१४८ से १५२ णम्म (नेम) ज ४।२६ णी दलेलाप र नाम (नीलरियापरिणाम) प १३१६ णेय (ज्ञेय) प २११५३ ज ३७७,१०६,१२६, जीवंत (नी वत) प१:३० ज ४९८,१०३, ७।१२७११,१६७।१ च ५२ सू १६२ १०८११०,१४०२,१४१ से १४३,१६२,१६५. यतिया (नवतिकी) प १७।२५ १६७,१७३ से १७६,१७८,१८० से १८२, यव्य (नेतन्य) प ४१५५; ५।१६१८।३।११।८१ १८४,१८५,१८७,१८८,१६०,१६१,१६३, १५।१०२,१०८,१४३, १७।८८, २११५२; १६४,१६६,१६७,१६६,२००,२२५।१,२२७, २२१७६;३६।२२,२६,३२,४६ ज १।१२ से २६२ से २६५ १४,२५,४६,२।४,६,४६,५६,६४,१३६,१५९% णीलसुत्तय (नीलसूत्रक) प १७।११६ ३१६४,१५०,१५१,२१७,४।१०,४७,५३,५६, णीली (नीली) ज ३।२४ ६०,६४,७६,८४,६०,६२,६६,१०६,१४१, णीलुप्पल (नीलोत्पल) प १७१२४ १४७,१६०,१६३ से १६५,१७३,१७४,१६७, णीसंद (निप्यन्द) 7१११३ च १११ २०७,२१०,२३८,२४३,२६२,२६८,२७४, णीसल्ल (निःशल्य) ज ५१५८ २७७,५१५३; ६५, ७।३५,५०,५८१३०, कणीसस (निर ! ३) णीससंति प १७।२,२५; १३१.१३५.१५५,१७६ सू ७.१,६२,१०॥२२ २८.२१,३३,३८,६७ णेयु (नेतृ) सू १९ णीसास (निःशास) ११६ रइअत्त (नैरकत्व) प १५६४ शोहम्ममाया (निहलामान)ज ३।३१ णरत्य (नाशिक) प २।२०,२१,३।१६,२२,४।३; णीहारिक (निति ) २०१२ १०।३२ से ३८,४० से ४२,४४ से ५२; णीहु (स्निह) प ११४८१? ११।४४,८०,१२।२,११ से १३,१५,३६; णणं (नन) ११:१:१७१४,६५,६९ से १०४, १३।१४,१६ से १६; १४।२,३,५,७,९,११ से ११५,११८,१२०,१२२,१४८,१४६,१५१,१५४; १५,१८,१५।१७,१८,३५,४६,४८,५६,६२, ६३,६५,६६,७१,७५,७८,८२,८३,६१,६४ से णेउर (दे०) प ११४६,५१ ६७,१००,१०२,१०७,१०८,११८ से १२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy