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________________ ८८ पण्णवणासुतं अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ॥ १६५. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वाउकाइया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ॥ १६६. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वाउकाइया अपज्जत्तया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड़लोए असंखेज्जगणा, अहेलोए विसेसाहिया ।। १६७. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वाउकाइया पज्जत्तया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोयतिरियलोए विसेसा हिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ॥ १६८. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोयतिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ।। १६९. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया अपज्जत्तया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया । १७०. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया पज्जत्तया उड्डलोय-तिरियलोए, अहेलोय-तिरियलोए विसेसाहिया, तिरियलोए असंखेज्जगुणा, तेलोक्के असंखेज्जगुणा, उड्डलोए असंखेज्जगुणा, अहेलोए विसेसाहिया ॥ * १७१. खेत्ताणवाएणं सव्वत्थोवा तसकाइया तेलोक्के, उड्डलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणा, अहेलो य-तिरियलोए संखेज्जगुण, उड्डलोए संखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए असंखेज्जगुणा ॥ १७२. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्योवा तसकाइया अपज्जत्तया तेलोक्के, उड्डलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणा, अहेलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणा, उड्डलोए संखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगुणा, तिरियलोए असंखेज्जगुणा ॥ १७३. खेत्ताणवाएणं सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तया तेलोक्के, उडलोय-तिरियलोए असंखेज्जगणा', अहेलोय-तिरियलोए संखेज्जगुणा, उड्डलोए संखेज्जगुणा, अहेलोए संखेज्जगणा, तिरियलोए असंखेज्जगुणा ।। बंध-पद १७४. एतेसि णं भंते ! जीवाणं आउयस्स कम्मस्स बंधगाणं अबंधगाणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं सुत्ताणं जागराणं समोहयाणं असमोहयाणं सातावेदगाणं असातावेदगाणं इंदियउवउत्ताणं नोइंदियउवउत्ताणं सागारोवउत्ताणं अणागारोव उत्ताण य कतरे कतरेहितो इति पदं शुद्धं न प्रतिभाति । १. संखेज्जगुणा (क,ग); 'इमानि पंचेन्द्रियसूत्रवद् भावनीयानि' इति वृत्त्युल्लेखेन 'संखेज्जगुणा' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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