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________________ १०३८ वय-वरुण १८८,१६१,१६६,२०६:५॥३,५,१४,२१,२२,२६ वरगंधघर (वरगन्धधर) सू १७१ २८,४६,५४,६६,७२ च १० सू १।५ उ ११४; वरगंधित' (वरगन्धिक) सू २०१७ ३।२६;४।१४।५।१५ वयाहि ज ५।२२ वरगय (वरगत) ज ३।६,१२,१८,२८,४१,४६, उ १११०७ ५८,६६,७४,७८,८२,६३,१३६,१४७,१८०, वय (वयस) ज २।३१ १८७,१८८,२१२,२१३,२१८,२१६,२२२; वय (व्रत) प २०।१७,१८,३४ उ ३१४८,५०,५५ ५।४७,६० वयंस (वयस्थ) ज २।२६ वरचंपग (वरचम्पक) ज ३।३ राजचंपक वयगुत्त (वचोगुप्त) उ ३६६ वरण (वरण) प ११६३।४ वयण (वचन) प १११८६ ज २११३३, ३।३,८, वरदत्त (वरदत्त) उ ५।२१,२२,२४,३१,४०,४१,४३ १३,१६,२४,३२।२,५३,६२,७०,७७,८४, वरदाम (वरदा मन्) ज ३।३०,३१,३३,३६,३६,४१; १००,१३१,१४२,१६५,१८१,१६२,२१३, ६।१२ से १४ ५११५,२३,२६,२७,६९,७३ उ १।३३,४५,१०८ वरदामतित्थकुमार (वरदामतीर्थकुमार) ज ३१३३, वयण (वदा) ज २।१५,१६,३२६,५।२१ ३६ से ४१,४३ उ १।१५,३५,३१६० वरदामतित्थाधिपति (वरदामतीर्थ धिपति) ज ३।३८ वयणमाला (वदनमाला) ज २१६५,३।१८६.२०४ ।। वरपसण्णा (वरपसन्ना) प १७।१३४ वयमाण (वदत्) प ११०२६,८७ वरपुरिसवसण (वरपुरुषवसन) प १७।१२७ वर (वर) प २।४०८,२।४६,३६।८३।२ वरबोंदिधर (वर'बोंदि'धर) सू १७११,२०११ ज १११६,३७,३८;२।१५,२०,६५,७१,८५, वरमल्लधर (वरमाल्यधर) सू १७:१;२०११,२ ६५,६६,१००,१२०, ३।३,६,७,१२,१८,२२, वरवत्थधर (वरवस्त्रधर) सू १७११,२०११,२ २४,२८,३१,३२,३५,४१,४६,५२,५८,६१, वरवारुणी (वरवारुणी) ११७१३४ ६६,६६,७४,७६,७७,७८,८२,८८,६३,१०७, वरसीधु (वरसीधु) प १७।१३४ १०६,१२४,१२५,१२८,१३१,१३७,१३८, वराडा (वराटक) प ११४६ १४१,१४७,१५१,१५२,१६३,१६४,१६८; वराभरणधर (वराभरणधर) सू १७।१ १७५,१७८,१८३,१८६,१८७,२०६,२१०, वराभरणधारि (वराभरणधारिन्) सू २०११,२ २१३,२१८,२२१,२२३,४।१०,११५,२१७; वराह (वराह) प ११६४,२।४६ उ २१३५ ५७,२१,४३,५६,५८,७।१७८ सू १६।११।१ वराहमंस (वराहमांस) सू १०।१२० वाराहीकंद उ १११,४१,४६,६४,६१,१२१,१३८,२।६; वराहरुधिर (वराहरुधिर) प १७।१२६ ३।५६,६४,६६,६८,७६,८१,५५,१३,१६, वरिट्ठ (वरिष्ठ) ज ३।८१,५।२१ २०,२५,२७,३१ वरिस (वर्ष) ज ३।१७५ वर (वरक) प ११४५।२ तृण धान्य, चीनाधान वरिसारत्त (वर्षरात्र) सू १२।१४ उ ५।२५ विर (वरय्) वरति सू १६।२२।१६ वरयंति वरुट्ट (वरुड) प ११६७ पिच्छिकार, बेंत का काम चं २।२ सू१।६।२ वरयति सू ७।१ करने वाला वरकणगणिहस (परकनकनिकष) प १७.१२७ वरुण (वरुण) प १५१५५।१ ज ७।१३०,१८६।३ वरग (वरक) ज २।३७ तृणधान्य उ ३३५४ वरग (वरक) उ ४६ वरगंध (वरगन्ध) प २।३०,३१,४१ १. अतोऽनेकस्वरात् इति इक प्रत्ययः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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