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________________ वहिदसावय वहिदा ( वृष्णिवणा) वत्त ( वर्तय) वत्तस्सामि प ३६।६२ वत्तमंडल ( वृत्तमण्डल) ज ३११७८ वक्तव्य ( वक्त ) ज ४४२६६,७११४१ से १४५, १५० से १५२, १५४,१०६ १०।२० से २२ २५. वत्तव्वया ( वक्तव्यता ) प २०४०, ४४, ५ । १५२, २०५,२४४; १११८०१५१६ ज ३१५०. १६१,२७७४१५.३,६४,७५,७६,८३,८९,९०, १२,१०,११५,१२६,२००,२०५, २०७,२०८, २४०,२४६,२६२,२६८, २७७ ७ १०२ वथ (वस्त्र) प २३०, ३१, ४१, ४० से ५४; १५५५१२१७।११६३१६,११,१२,२६, ३९.४७,५६,६४,७२,७८८१८५११२,१३३, १३८, १४५,१६७१६,१६०,२२१ २०७ उ १।१६, ३५, ३१५१,५३,६३,६७,७०, ७३,११० ११५, ६५।१ से ३ ३१६३ वर्तति वत्यधर (वस्त्रधर ) ज २।२१:५१४८६ वत्थव्व ( वास्तव्य ) ज ५।१ से ३,५ से ७ त्यारण (वस्थारोहण, वस्त्रारोपण) ज ३११२,८८ वरिय ( वस्ति) ज २।१५ ३०११७ किम् (वस्तिकर्मन् ) उ३।१०१ वत्थिपुडग (दे० ) उ १।४४ से ४६ वत्थिभाग ( वस्तिभाग) ज ३।११६ वत्थु ( वस्तु ) प १४१५ ज ३ | ३२७ । १०१.१०२ सू १०१११५।१,३७ थुपरिच्छा (दस्तु परीक्षा) ज ३।३२ वत्युपस (वस्तुप्रदेश ) ज २०३२ वस्थुल (वास्तुक ) प ११३७४२३८१२४४११ ज २।१० वय (वत्) वय ३७७ वदंति सू २०२ वह ज ३।११३३४७२४१२४ वदामो सू ५।१ वदिस्पति ज २०१४६ वदेज्जा सू ६।१२ Jain Education International वदिता (उदित्वा) ज ३।१२५ बद्ध (व) ज ३२५ वद्धमाण ( वर्धमान ) प २।३० ज ३ | ३२ माग (वर्धक ) ज २१६४,३१३, १२, १७८; ४।२८: ५।३२७।१३३२ २०१८ २०१६१६ माणगठिया ( वर्द्धमानकरां स्थित ) सू १०.४१ वद्धमाणय ( वर्धमानक) ज ३।१८५ वद्वाव (वर्धय्) वद्भावेइ ज ३१५, २६,३६,४७, ५६,६४,७२,१०,१३३, १४५,१५१.१५७ उ १।११० वद्धति ज ३।११४,१२६,१३८, २०५,२०६१।१२२:५।१७ बद्धावेहि १०३७ उ १।१०७ वावेता (वर्धा) ज ३५ उ १।१०७ वध ( वध ) उ ३१४८, ५० वप्प ( वप्र ) ज ४३,२५,२१२,२१२३, २५१ गाव (कावती) ज ४।२१२०३ पावई (वप्रावती) ज ४।२११ पण (दे०) वमण (वमन) उ३।१०१ २४,१३,१६ से १९,२० For Private & Personal Use Only वममाण (त्रमत् ) उ ३।१३० वमिय ( वमित, वान्त) उ३।१३०,१३१,१३४ वम् धर्मन्) ज ३३१ यषिय ( दमित) ज ३४७७,१०७, १२४ ११३८ वय (च्) बुच्चइ चं २१ वोच्छं प २२६४|१८ चं ११३ (द) या ज ७।३१ सू १०१०पर्यंत ज २२६।१,६४ वयह उ ३।१०३:४११४ बामि उ १७६ मोसू १।२० व्यासी ज ११६; २०६४,९०,६५,६७,१०१, १०५, १०७,१०९, १११.११४:३०५,७,१२,१८,२१,२६,२८,३१ से ३४,३६,४१,४७,४६,५२,४६,५८,६१,६४, ६६.६९,७२ ७४,७६,७७,८३,१०,११,९९, १०५,१०७,११३ से ११५,१२४, १२५, १२७, १२०, १३३,१३८, १४१.१४५, १४.१.१५४, १५७, १६४, १६८, १७०,१७३, १७५, १००, १८५, www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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