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________________ दार-दाहिणिल्ल ६४५ दार (दार) उ ३।४८,५० २०१२ उ ३५१,५३,६२ दारग (दारक) उ ११५३ से ५५,५७ से ५६,६१ दाहिणअवर (दक्षिणापर) ज ३१८१ से ६३,७८,८६,८२,२।६३६२,६८,१०१, दाहिण उत्तराय।। (दक्षिणोत्तरायता) ज ४।१४१ १०६,१३०,१३१ दाहिणओ (दक्षिणतस् ) प २।४०।३ दारगरूव (दार रूप) उ ३।१२६१३४ दाहिणड्ढ (दक्षिणार्ध) प २।५० सू २।१८।१ दारय (दारक) ज ५१५७ उ ११५१.५४,५६,६० दाहिण डढच्छ (दक्षिणार्धकच्छ) ज ४।१६८ से से ६२,७६७६२।६१०,३।११४,१२३,१२४ दारियत्त (दारिकात्व) उ ३।१२५ दाहिणड्ढभरह (दक्षिणार्धभरत) ज ११६,२१ से दारिया (दारिका) उ ३१६२,६८,१०१.१०६.११४, २३,४५ से ४७,३।१,२०८,४।३५ उ ५।१० १२३,१२६.१२८,१३०,४।५,६,११ से १६,१८, दाहिणड्ढभरहकड (दक्षिणा भरतकूट) ज ११३४, १६,२० ४१,४५,४६ दारु (दारु) ज ३।३२ दाहिण दारिया (दक्षिणद्वारिका) सु १०।१३१ दारुग (दारुक) ज ३१७८ दाहिण द्वभरह (दक्षिणार्द्धभरत) ज १२० दालयित्ता (दारयित्वा) ज ४।३५ दाहिण पच्दशिम (दक्षिणपाश्चात्य) प ३।१७६, दालित्ताणं (दलयित्वा) प ११७४ १७८ ज ३।३०,३१,१७२,१७३;४।१६,१६३, दालिम (दाडिम) प १६।५५; १७।१३२ २०८,२०६,२२३,२२६.२३०:५।३६,४६ सू २०१२ दास (दास) ज २।२६।३।१०३ उ ११५४,५५,७६, दाहिण पच्चस्थिमिल्ल (दक्षिणपाश्चात्य) ज ४१२३८ दासी (दासी) प ११३७।५ काकजंघा, नीलाम्ला, दाहिण पडीण (दक्षिणापाचीन) सु १।१६ नीलझिटी दाहिणपुरथिम (दक्षिणपौरस्त्य) प ३।१७६,१७८ दासी (दासी) ज ३।१०३ ज ४।१६,१०६,२०३,२२२,२२७,२२८,५।३६, दाह (दाह) ज २०४३ दाहिण (दक्षिण) प २११०,३२,३३,३५,४३,५० ४६ सू २।१,२०१२ दाहिण पुरथिमिल्ल (दक्षिणपौरस्त्य) ज ४।२३८%3B से ५२,५४,५६,५८ से ६०३।१ से ३७,१७६, १७८ ज १।१८,२०,२३,२५,२८,३२,४६,४८, ५।४४,४६ सू १११६२।१।१२।३० ५१,२१६५,११३;३।१६,१२,३६.१३६,१३७, दाहिणभुयंत (दक्षिणभुज न्त) सू २०१२ १४६,१५०,१८६,२०४।४।१,३,१६,२३,२६, ६हिणवाय (दक्षिणवात) प ११२६ ३७,५५,६२,६५,८१,८४,८६,८८,६०,९८, दाहिणवेयालि (दक्षिण वेयाली') प १६।४५ १०३,१०३,१०८.१२६,१६२,१६७ से १६६ दाहिपिल्ल (दाक्षिणात्य) प २।३२,३३,३५,३६, १७२ मे १७४१७७,१७८ १८०.१८१,१८३, ३८,४३,४४,४७,३।१८ से २३;१६।३४ १८७,१८६ से १६१,१६४,१६६.२०१ से ज १।२६,५१,२।११६;३३१४ ज ११२६,५१; २०३,२०५,२१०,२१४,२२०२३८,२६२, २।११६,३३१४,१५,१८,३६,५१,५२,६१,८३, २६८,२७१,२७४५६,२१,३६.५३,५८; ८५,८८ से १०,६२,६३,१२६,१६२,२०६,२१६; ७।१०१,१०२,१२६ १७८ , १।१५ से १७, ४।१७४ से १७६,१८२,१८३,१८८,१६५, १६:२।१८।१,१०।७५,१३।७,८;१८।१४; २०१,२०२,२१२,२४८,२५१:५।१४,४२,४५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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