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________________ ९१२ जसधर-जहण्णोगाहणग १८४ जसधर (यशोधर) ज ७।११७।१ ७३ से १६;३३।२ से १३,१५ से १७,३६।८ जसभद्द (यशोभद्र) ज ७।११७।१ सू १०।८६।१ से १०,१७,१८,२०,३०,३४,४४,६१,६६,६८, जसम (यशस्वत्) ज २१५६,६१ ७०७२ से ७४,७६,६२ ज २१४४,४५,५८, जसवई (यशस्वती) ज ७।१२१ सू १०६१ १२३,१२८,१४८,१५१,१५७;४।१०१,७।२८, जसोकित्ति (यशःकीर्ति) प २३।१६,२०,१५३ ५७,६०,१८२,१८७ से १९६,२०६ सू १।१४; जसोकित्तिणाम (यशःकीर्तिनामन्) प २३।३८, १८।२०,२५ से ३४;१६।२,२०७३ १२७,१८८ जहण्णग (जघन्यक) प १७।१४४,१४६:२३।१५२, जसोधर (यशोधर) सू १०।८६।१,८८।१ जशोहरा (यशोधरा) ज ४।१५७।१।५।६।१; जहण्णगुण (जघन्यगुण) प ५।३६,३७,५८,५६,७३, ७।१२०११ ७४,८८,८६,१०६,१०७,१८६,१६०,१६२, जस्संठित (यत्संस्थित) सू ४।३ १६३,१९६,१६७,१६६,२००,२०२,२०३, जह (यथा) प १११।३ उ १।१०६ २०६,२०७,२१०,२११,२१३,२१४,२१७, जहण (जघन) ज २०१५ २१८,२२०,२२१,२२३,२२४,२४१,२४२ जहण्ण द्वितीय (जघन्मस्थितिक) प ५।२३,३४,५५, जहण्ण (जघन्य) प ११७४, २१६४।८;४।१ से ५४, ५६ से ६७,६६ से ८६,६१ से १३३,१३५ से ५६,७०,७१,८५,८६,१०३,१०४,१७३,१७४, १७६,१७७,१८०,१८१,१८३,१८४,१८६, २६६,२६८,५१४०,४१,४४,४५,७७,७८,६२, १८७,२३८,२३६ ६३,६६,६७,११०,१११,११४,११५,१५३, जहण्णठितीय (जघन्य स्थितिक) प ५१५६ १५४,१५६,१५७,१५६,१६२,१६३,१६५,१६६, १६८,१६६६।१ से १८,२० से ४५,६०,६१, जहण्णपएसिय (जघन्यप्रदेशिक) प ५२२८ ६४,६६ से६८,१२०,१२१,१२३;७२,३,६ से जहण्णपदेशित (जघन्यप्रदेशिक) प ५१२२८ २६१११७०,७१:१२।६,१३।२२।२,१५॥४० से जहण्णपदेसिय (जघन्यप्रदेशिक) प १२२७ ४२,१७४१४६१८१२ से ४,६,८ से १०,१२,१४ जहण्णपय (जघन्यपद) ज ७।१६८,१६६,२०२, से १६,१८ से २४,२६ से २८,३० से ३६,४१ २०४,२०६।१२।३२ से ५४,५६,५७,५६ से ६७,६६ से ७४,७६ से जहण्णमति (जघन्यमति) प ५१६२,६३ ८१,८३ से ८५,८७,८६ से ११,६३,६५,९६, जहण्णय (जघन्यक) प १५६४१७।१४४; ६८,१०३,१०४,१०५,१०७,१०८,११०,११३, २१११०५२३।१६३ ज ७।२६ सू१।१४,१६, ११४,११६,११७,११६,१२०,२०१६ से १३, १७,१६,२१,२२,२४,२७,२।३।३।२;४।७,६; ६१,६३,२११३८,४० से ४२,४८,६३ से ७१, ६।१८।१६।२ ७४,८४,८६,८७,६० से ६३;२३।६० से ७६, जहण्णक्कोसग (जघन्योत्कर्षक) प १७।१४६ ८१,८३ से ६२,६५ से ६६,१०१ से १०४, जहण्णुक्कोसय (जघन्योत्कर्षक) प १५।६४; १११ से ११४,११६ से ११८,१२७,१२६, २१११०५ १३१,१३३ से १३५,१३८,१४०,१४२,१४३; जहण्णोगाहणग (जघन्यावगाहनक) प ५१२७,२८, १४७,१५१ से १५३,१५५,१५७,१५८,१६० ४८,४६,५२,५३,६७,६८,८२,८३,१००,१०१, से १६२,१६४ से १७३,१७६,१७७,१८२,१८३ १५३,१५४,१६२ १६३,१६५,१६६,१६८, १८६ से १८८,१६० से १९३;२८।२५,४७,५०, १६६,२३३,२३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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