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________________ १०६२ सण्णिसीयित्ता-सत्तर सण्णिसीयित्ता (संनिषद्य) ज ३।१२ सण्णिहिय (सन्निहित) प २१४७।२ सण्ह (श्लक्ष्ण) प १११८,१६,२।३०,३१,४१,४८, ४६,५६,६३,६४ ज ११८,२३,३१,३५,५१, ३।१२,८८,१६४,४।२४,२५,२६.४६,६७, ८८,११०,१७८,२१३,४।१०; ५५८ सोहमच्छ (श्लक्ष्णमत्स्य) प ११५६ सहसण्हिय (श्लक्ष्णश्लक्ष्णिक) ज २१६ सत (सत्) सू १३।२ सत (शत) प २।४१ से ४३,४६,४८ से ५२,५८ से ६४,४।१८६,१८८,६१३४,३६,६७, १८।१६,२४,४६,५४,६०,६१,११६२०११३; २११६७,६८, २३।६३,६८,६६,७३,७५ से ७७,८१,८३,८५,८७,६०,६२,६६,६७,११२, ११४,११६,१२७,१६४,१६६३६।१७,३४, ४१ सू १११८ से २०,२४;२॥३,३।१६।१; ६।३;१०११२७,१६५,१२।२ से ६,१२,१३, ३०,१३।१ से ३,१४१७,१५।२ से ४,१७ से १६,२२,२५ से २६,३१,३२,३४ से ३७; १८११,४ से ६,१७,२०१६।१,४,५।३.१६७, ८,१०,१५॥१,२,४,१६।१८ से २०,२११४; १६।२२।३२ सतक्कतु (शतक्रतु) प २१५० सतक्खुत्तो (शतकृत्वस्) सू० १२।१२ सतत (सतत) प ७१ सतपोरग (शतपोरक) प ११४१।१ सतभिसत (शतभिषग) सू १०६४ सतभिसय (शतभिषग) सू २०१२ से ६,६,२१,२३, ३०,५८,७५,८१,६५,१२०,१३१ से १३५; १२।२५ सतरा (सप्तति) सू १९।११।१ सतवच्छ (शतवत्स) प १७६ सतवत्त (शतपत्र) प ११४८।४४ सतवाइया (शतपादिका) प ११५० सतसहस्स (शतसहस्र) प ११२०,४६,५०,७५,७६, ८१,२।२० से २७.२७।२,२६ से ३३,३६ से ३९,४०१२;२०४१ से ४३,४८ से ५३,५४, ५६।१,२।६३,६४,४११७१,१७३,१७७,१७६; ६।४१;२१६३,६६,७० सू १५।२,१८।२५; १६।५।१,३,१६।८।१,३,१६२१११,८, १६।२२।६ सतहा (सप्तधा) ज ५७२,७३ सता (सदा) सू १६११ सतीणा (दे०) प ११४५११ सतेरा (शतेग) ज ५११२ सत्त (सप्तन्) प ११४६ ज ११२० चं ३।३ सू १७ उ ३३१०१ सत्त (सत्त्व) प २०६४, ३६।६२,७७ ज २११३२; ३।३;७।२१२ उ ११३;३१५१ सत्तंग (सप्ताङ्ग) उ ३१५१ सत्तग (सप्तक) ज ७१३११२ सत्तट्ठि (सप्तषष्टि) सू १०।२ सत्तद्विधा (सप्तषष्टिधा) सू १०।१५२ से १६०, १६२,१६३,१११२ से६; १२१७,८,१६ से २८ सत्तट्ठिहा (सप्तषष्टिधा) म १२२ सत्तणउत्ति (सप्तनवति) सू १८।१ सत्तत्तरि (सप्तसप्तति) ज ३।२२५ सत्ततीस (सप्तत्रिंशत्) ज ४।५५ सत्तत्तीस (सप्तत्रिंशत् ) ज ४।१४२१२ सत्तधणु (सप्तधनुष्) उ ५।२।१ सत्तपएसिय (सप्तप्रदेशिक) प १०।१२ सत्तपदेस (सप्तप्रदेशिक) प १०।१४।५ सत्तभाग (सप्तभाग) ५ २३।६१,६४,६८,७३,७५ से ७७,८१,८३ से ८५,८६,६०,६२,६६, १०१,१११ से ११४,११७,१२१,१२२,१३०, १३४,१३५,१४०,१४२,१४३,१५२,१५३, १५५,१६०,१६४,१६७,१७१ से १७३ सत्तम (सप्तम) प ६१८०।२;१०।१४।३; ३६।८५, ८६ ज ७९७ सू १०७७,१२।१६।१३।१० उ २।२२ सत्तमी (सप्तमी) ज ७।१२५ सत्तर (सप्तदशन्) प १०।१४।४ से ६ ज ७।२०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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