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________________ अप्प - अब हा २३,२६, २०१७ उ १११६,४२, ६३, ३।२६, १४१, ४।१२ अप्प (अल्प ) जवासा प १।४०।४ अप्पकपय ( आत्मकल्पित) उ १।४६ अप्पकम्मतराग (अल्पकर्मतरक ) प १७३, १६ अप्प चक्खाण (अप्रत्य। ख्यान ) प १४।७ अपचक्खाण किरिया (अप्रत्याख्यान क्रिया ) प २२६४,६६,७४, १७, १०१ अप्पच्चक्खाणवत्तया ( अप्रत्याख्यानप्रत्यया) प २२६४ अबुझमाण (अप्रतिबुध्यमान) ज ३।२०४ अपsिहय ( अप्रतिहत ) ज ३८१,८८, १०६,१५१; ५।२१ अप्पणया (आत्मन् ) प २८/२०,३२,६६ अप्पतराय (अल्पतरक ) प १७ २, २५ अप्पतिट्ठिय (अप्रतिष्ठित ) प १४ | ३ अप्पत्त (अप्राप्त) सू १६।२२।१७ अप्पत्थियपत्यय ( अप्रार्थितप्रार्थक ) ज ३।१०७ अप्पबहु ( अल्पबहु ) प १७।११४।१; २१ । १ । १; ३४।१।२ ज ७ । १६८।२ अप्पमेय ( अप्रमेय ) ज ५।५८ अप्पवस (आत्मवश ) उ३।११८ अप्पवेदणतराग (अल्पवेदनतरक) अप्पसत्य ( अप्रशस्त ) प १७ १३८ १३२, ३४।१३ अप्पसरीर ( अल्पशरीर ) प १७/२, २५ अपसोय (अल्पशोक ) उ १।६३ अप्पयगति ( अप्रतगति) ज २६८ अप्पा बहु ( अल्पबहु ) प ६।१२३; १५।१।१ अप्पा बहुग (अल्पबहुक ) प १७३६,७० अप्पाबहुय (अल्पबहुक) प० १० २८, ११।८०; १५।१८, १६, १५।५८ ।१; १७ ७७ अप्पिच्छ (अल्पेच्छ ) ज २।१६ अपsar (अल्प ) प १७८४ से ८७,८६ १७६, २७ २३।११६, ज० ७ १८१ १८ ।१६ अप्पिण ( अर्पय् ) अप्पिणइ उ० ११११८ Jain Education International अप्पिणामि उ० १।११७ अपणित्ता ( अर्पयित्वा ) ज ३२८१ अप्पिय (अप्रिय ) ज २।१३३ ८२६ अपितरिया (अप्रियतरका ) प १७।१२३ से १२५, १३० से १३२ अप्पियत्त (अप्रियत्व ) प० २८|१४ अप्पियस्सर (अप्रियस्वर) ज २।१३३ अप्पुस्सुय (अल्पोत्सुक्य ) ज ३।२६, ३९, ४७, १३३ अप्पेस (अप्रेष्य) प० २१६०,६३ अप्फुण्ण (दे ) उ १।२३,६१ अप्फोड ( आ + स्फोट ) - अप्फोडेंति ज ५७ अप्फोडिय (आस्फोटित ) ज ३।३१, ७ १७८ अष्फोया (आस्फोता) मल्लिका, अपराजिता प १।४०।३ अफासाइज्जमाण ( अस्पृश्यमान ) प २८ ।४०, ४१, ४३,४४,६६,७० अफुण्ण (दे० ) प ३६ ५६, ६०, ६६ से ६८,७०,७१, ७३ से ७५ असमाण (अस्पृशत् ) प १३।२३ अफुसमागति (अस्पृशद्गति ) प १६।३८, ४०; ३६।६२ अफुसित्ता (अस्पृष्ट्वा ) प १६॥४० अबंधग ( अबन्धक ) प ३।१७४; २२/८४; २६६ अबंध ( अबन्धक ) प २२८३, ८४, ८६ २६।८ से १० अबल ( अबल) ज ३।१११ अब (बहुश्रुत ) सू २० हार अबाधा (अबाधा ) सू २८/२० अबाहा (अबाधा ) प २१६४; २३।६० से ६४,६६, ६८,६६,७३ से ७७,८१,८३,८५ से ६०, ६२, ६५ से ६६,१०१ से १०४,१११ से ११४, ११६ से ११८,१२७,१३०,१३१,१७६, १७७, १८२,१८३,१८७,१६० ज १।१७ ; ३१; ४।११०,११६,१४१, १४२,२०६, २०७३ ७५, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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