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________________ ११००२ 'भद्दग-भव ७।११८ उ २।२, ३१६६ से १८,१००,१०१ ७५,८३,१००,१२०,१३१ से १३४,१८७ १०६ से ११२ भरह (भरत) प ११८८,१६।३०।१७।१६० भद्दग (भद्रक) ज २।१६ . ज १११८ से २०,२३,४६,४७,५१, २७ से भद्दमुत्था (भद्रमुस्ता) ज ११४८१६ १५,२१ से ४५,५०,५२,५६,५७,५८,६०,१२२, भद्दय (भद्रक) ज ३।१०६ उ ५।४०,४१ १२३,१२७,१२८,१३१,१३२,१३३,१३६, भद्दवत (भाद्रपद) सू १०।१२४ १४१ से १४७,१५०,१५६,१५७,१५६,१६१, भद्दवय (भाद्रपद) ज ७१०४,११३।१,११४ । १६४;३.१ से १३,१५,१७,१६ से २३, सू १०।१२६ उ ३।४० २५ से ३४,३६ से ४२,४४ से ५०,५२ से ५६, भद्दसालवण (भद्रशालवन) ज ४१६४,२१४,२१५, ६१ से ६७,६६,७७,८३,८४,६० से १४,६६, २१६,२२०,२२१,२२५,२२६,२३४,२६२ ६६,१००,१०१,१०३,१०६ से १०६,११५ से भद्दसेण (भद्रसेन) ज ५१५२ १२६,१३१ से १३५।१,१३७,१३८,१३६,१४१ भद्दा (भद्रा) ज ५।१०।१,५४६८,७।११८ सू १०१२, से १४८,१५० से १५४,१५७,१५८,१६०,' ६० १६३ से १७०,१७३,१७५,१७७,१७८,१७६, भद्दासण (भद्रासन) ज ३१३,५६,१७८,४।२८, १८१ से १६२,१६८,१६६,२०१,२०२,२०४ ११२,५१३६,४२ से २२६;४।१,४८,५३,१०२,१७२,१७४,१७७, भद्दिलपुर (भद्दिलपुर) प ११६३।३ २७७,५५५,६७,६,१२,१६ भमंत (भ्रमत्, भ्रम्यत्) ज ४।३,२५ भरहकूड (भरतकूट) ज ४।४४,४८ भमर (भ्रमर) प ११५१,१७।१२३ ज २।१२;३।२४ भरहवास (भरतवर्ष) ज २।१५,४।३५ भमरावली (भमरावली) प १७।१२३ भरहवासपढमवति (भरतवर्षप्रथमपति) भमास (दे०) प ११४१।१,११४८।४६ - ज ३।१२६।२।। भय (भय) प १११।१२।२० से २७,१११३४।१; भरहाहिव (भरताधिप) ज ३।१८,८१,६३,१२१११, २३।३६,७७,१४५ ज २१६६,७०,३१६२,१११, १३५।२,१६७।१४,१८०,२२१ ११६,१२१११,१२५,१२७ उ १८६,३।११२, भरिय (भत) ज २१६३।१७८ १५६४।१६ भरिली (भरिली) प ११५१ भयंकर (भयङ्कर) ज २।१३१ भरु (भरु) प १८६ भयग (भृतक) ज २१२६ भरेत्ता (भृत्वा) उ ३१५१ भयणा (भजना) प १४४८१५० भल्लाय (भल्लात) प १॥३५॥२ भयणिस्सिया (भयनिश्रिता) प ११३४ भल्ली (भल्ली) प १४०।४ भयभेरव (भयभैरव) ज २१६४ भव (भव) प २१६४।५,६३।११२,१०१५३।१; भयव (भगवत्) प १३१२ ज २१६०,५३,१४, १८११२,१८।६५,२३।१३ से २३ ज ३१२४, १६,१७,२१,६६ १३१ भयसण्णा (भयसंज्ञा) प ८।१,२,४,५,७,६,११ भव (भवत्) उ ३।४३ भिर (भृ) भरेइ उ ३।५१ ‘भव (भू) भवइ ज १।४७,२१६६ सू १११३ भरणी (भरणी) ज ७।११३।१,१२८,१२६,१३४।२ उ ११२० भवउ ज २१६४,१५७ भवंति १३५॥२,१३६,१४०,१४४,१४६,१५६, प ११४६ से ५१,६०,८०,८१,५।४३;१६।१५; १७५ सू १०११ से ६,११,२३,३५,६२,६६, २११८४;२३।१५२;३६।२०,८२,६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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