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________________ ८३६ अवि-असंखेज्ज अवि (अपि) प १११३ ज ४।२०० स ११२५,५१ उ ११३१; ३।११; ४।६ ।४५ अविदमाण (अविन्दान) उ १२४१,४३ अविग्गह (अविग्रह) प ३६।६२ अविग्ध (अविघ्न) ज २१६४ अविणिज्जमाण (अविनीयमान) उ ११३५,४०,४३ अविणीय (अविनीत) ज ३।१०६ सू २०६६ अवितह (अवितथ) ज २१७८ उ ११२४,४२ ३।१०३ अवियाउरिया (दे० अविजनयित्री) उ ३३१३१ अवियाउरी (दे० अविजनयित्री) उ ३३९७ अविरत (अविरत) प ३३१८३ अविरत्त (अविरक्त) सू २०१७ अविरय (अविरत) प १११८६ अविरल (अविरल) ज २०१५ अविरहिय (अविरहित) प ६।१६,६२,६३, ११। ७०;२८।४,२६,५० सू १०।७७ ; १६।२२।१७ अविराहियसंजम (अविराधितसंयम) प २०१६१ अविराहियसंजमासंजम (अविराधितसंयमासंयम) प २०६१ अविसय (अविषय) प १११६७;२८११७,६३ ज ७/४६ अविसारय (अविशारद) प० १।१०१।११ अविसुद्ध (अविशुद्ध) प १७।१३८ अविसद्धलेस्सतराग (अविशुद्धलेश्यतरक) प १७१७ अविसुद्धवण्णतराग (अविशुद्धवर्णतरक) प १७।६, अवेदणा (अवेदना) प २।६४।१ अवेदय (अवेदक) प १८१६३; २८।१४० अवेदिय (अवेदित) प ३६१८२ अन्वय (अव्यय) ज ११११,४७,३।१६७,२२६; ४।२२,५४,६४,१०२७।२१० उ ३।४३,४४ अव्वहिय (अव्यथित) ज २१४६ अव्वाबाह (अव्याबाध) प २।६४।१४,२०,२२; ३६।१४।१ ज ५।२१ उ ३।३०,३५ अध्वोच्छिण्ण (अव्यवच्छिन्न) ज ३।३ अव्वोच्छित्तिणय (अव्यवच्छित्तिनय) सू १७११; २०११ अव्वोयड (अव्याकृत) प १११३७।२ अस (अस्) अत्थि प ११७५,८०,५१६६; १२।६१५।६५,६६:१७.३३;२८।१२३,१३६, १४१,१४२,१४५ ज ११४७ आसि ज ११४७ आसीप २०६४।५ सिया सू १०।२५ असइ (असकृत्) ज ७२१२ असंकिलिट्ठ (असंक्लिष्ट) प २।३१,१७।१३८ असंख (असंख्य) प ११४८६० असंखभाग (असंख्यभाग) प ११४८।६० असंखिज्जइभाग (असंख्येयभाग) प २३।१०१, १५१,१५७ असंखिज्जगुण (असंख्येयगुण) प १८१६३;२८।१४० असंखिज्जतिभाग (असंख्येयभाग) प २१४८ असंखिज्जसमइय (असंख्येयसामयिक) प १५६१ असंखेज्ज (असंख्येय) प १।१३,२०,२३,२६,२६, ४८,११४८1८,४०,५६२।१०,११,४१ से ४३, ४६,४८ ५०,५६,३११८०५।२,३,५,१२६, १२७,१४४,१४५,१५१,६।४२,६० से ६४,६८, १०।१६,१८ से २०,२३,२५,२८,३०,१११५०, ७०,७२,१२१७,८,१२,१६,२०,२४,२७,३१, ३२,१५।१२,२५,५८.१,१५८३,८४,८७,६१, ६२,६४ से ६६,१०३,१०४,११८,१२० से १२३,१२५ से १२८,१३५ से १३७,१४० से १४२; १७।१४१,१४३;१८।३,२६,२७,३७ अविसेस (अविशेष) प २१३,६,६,१२,१५ अविसेसिय (अविशेषित) ज ११५१ अविस्साम (अविश्राम) १ २१४८ अवीरिय (अवीर्य) ज ३।१११ अवे (अप-+ इ) अवेति प २८।१०५; ३४।१६ अवेद (अवेद) प २।६४।१ अवेदग (अवेदक) प ३६७१३।१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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