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________________ ६७० पणिहाय ( प्रणिधाय ) प १७।१०६ से १११ ज ४।५४,८०७ २७,३० ११४, २४ पणुवीस ( पञ्चविशति ) प ४।२७३३।७ पणुवी सइम (पंचविंशतितम ) प १० | १४ | ३ पण्णट्ठ (प्रणष्ट) ज ३।३ पण्णट्ठ (पञ्चषष्टि) ज ७।१५,९६ पण्णठि (पञ्चषष्टि) ज ४।१६५ १०/१५२ पण्णत्त (प्रज्ञप्त ) प १।१ ज १७ से १।१४ उ १।४ पण्णत्तर (पञ्चसप्तति) ज ४।४५ पण्णत्तरि (पञ्चसप्तति) ज ४।१४२ पण्णति (प्रज्ञप्ति ) सू २०१२।१२।१६० पण्णर ( पञ्चदशन् ) प १०।१४ ४, ५ पण्णरस (पञ्चदशन् ) प ११७४ ज १२३ पण्णरसद (पञ्चदशन् ) १९।२२।१२ पण्णरसति ( पञ्चदशन् ) सु २०१३ पण्णरसम (पञ्चदश) ज ७।६७ सू १०1७७; १२६१३।१,१०६ १४३,७११।२२, २०१३ पण्णरसविह (पञ्चदशविध ) प १२८८१६।१,२, ८,१८,१६ पण्णरसी (पञ्चदशी) सू १० १० १३०१ १४१३,७ पण्णरसीदिवस (पञ्चदशीदिवस) ज ७।११६ १०१३ यू १०/६५ पण्णरसीराइ ( पञ्चदशीरात्रि ) ज ७।११६ पण्णरसीराति (पञ्चदशीरात्रि) १०६७ √ पण्णव (प्र + ज्ञापय् ) पण्णवेइ ज ७।२१४ उ १८ पण्णवेहिंति सू १६।२२।३ पाणवणा (प्रज्ञापना) प ११११२, ४,४६,१३८ २८।६८ से १०१ उ ३।१०६ पण्णवणी (प्रज्ञापनी ) प ११०४ से १०,२६ से २६, ३७/१,८७ पण्णवित्त (प्रशप्तुम्) उ३।१०६ पणवीस (पञ्चविंशति ) प २२७१४ पणा (दे० ) प २/४०१३ ज ५४९ पणा (प्रज्ञा) पण्णावए ज ७।१६९ पण्णावग ( प्रज्ञापक) ज ३६५, १५६ Jain Education International हायपत्तिय पण्णास ( पञ्चाशत ) प २१५५ ज ११२३ १२/३, ८ उ५।१३ पण्य (प्रस्नत) उ३।१० / पतणतण ( प्र + तनतनाय्) तणतणाइस्सइ ज २११४१,१४५ तणतणावंति ज ३०११५ ५।७ पतणतणाइत्ता ( प्रतनतना ) ज २११४१ पतर (सर) १२११२,१६ पतव ( प्र + तर ) पतवंति ज ५।५७ / पताव ( प्र + तापय् ) पतायेंति सू ३१ पतिट्ठिय ( प्रतिष्ठित ) प १४ | ३ पतिसम ( प्रतिसम ) ज ३।६२,११६ पत्त ( प्राप्त ) प २२६४।२०, ६६८,२११७२,२३।१३ से २३,३६।९४११ ज २६५३२६,३६,४७, १२२,१२६,१३३४७३२६५,६८,१०१, १२२,१५०,१६१६४२५५४२३,२८,३१,३६, ४१ पत्त (पत्र) प १३४,३६,४७११,१२४८९,१६,२६, ३६,४५,४७,४६,५१,६३२२८,९,१२,१५, ६८, १४५, १४६; ३।११।३३।१२,८८, १८ १०६४१२,२५५४५५८३७११७८३३।५०, ५.१,५५ पत्त ( प्राप्त, पात्र) १।१२८ पत्तउर ( पत्तूर ) प १|३७|३ पत्तकयवर ( पत्रकच वर ) ज २१३६ पत्तच्छण्ण (पत्राच्छन्न) ज २।१२ पत्त (दे०) ज ५।५. पतपुर (पत्रपुट) ज ४।१०७ पत्तल (पत्र) ज २१५२०१०६७ १७८ ११ पत्त (वासा) (पत्रवर्षा) ज ५५७ पत्तविच्छु (पत्र) ११५१ पत्तामोड (पत्रामोट) उ ३।५१ पत्तासव (पत्रासव ) प १७।१३४ पताहार (पत्राहार) प १।५० ३।५० पत्तिय (पत्रित) उ ३४६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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