SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1068
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पेच्छिज्ज माण- पोलिंदो ४। १२३, १२४५।३३ पेच्छिज्जमाण (प्रेक्ष्यमान ) ज २२६५; ३३१८६, २०४ पेज (प्रेस) प ११।३४।१,२२।२० पेज्जणिस्सिया ( प्रेयनिश्रिता ) प ११।३४ पेढ (पीठ ) ज ४११४३, २०८ ५।१३ पेम्म (प्रेमन्) ज २।२७ पेरंत ( पर्यन्त ) ज १।१६; ३।१२६।४; ४।१४३, २४५, २४६, २५१,७१७८ पेलव (पेलव) ज ३।२११५।५८ पेस (प्रेष्य) ज २।२६ / पेस ( प्र + इष् ) पेसिज्जइ उ १।१२८ पेसेइ उ १।११० पेसेमि उ १।१०६ पेसेमो उ १।१२७ पसेह उ १।१०७ पेसेहि उ १।११५ पेसल (पेशल ) प १७।१३४ पेसितए (प्रेषितुम् ) उ १११०७ पेसिय (प्रेषित) उ १।११६,१२७ पेसुण्ण ( पैशुन्य ) प २२।२० V पेह ( प्र + ईक्ष ) पेहति प १५।५० पेहमाण (प्रेक्षमाण ) प १५।५० पेहुर्णामजिया ('पेहुण' मञ्जिका ) प १७।१२८ पोंडरीय ( पौण्डरीक ) प ११४६, ७९ ज ४१३, २५ पोंडरीयदल (पौण्डरीकदल ) प १७।१२८ / पोक्ख ( प्र + उक्ष्) पोक्खेइ उ ३।५१ पोक्खरत्थिभय ( पुष्करास्थिभाग) ज ४ ७ पोक्खरपत्त ( पुष्करपत्र ) ज ३।१०६ पोक्खरवर ( पुष्करवर ) सू १६।१५।१, २ पोक्खरवरदीव (पुष्करवरद्वीप) सू १९।१५ पोक्खल ( पुष्कर ) प १४६ पोक्खल स्थिभय ( पुष्करास्थिभाग) प ११४६ पोक्खलावतीचक्कवट्टि विजय (पुष्कल | वतीचक्रवर्ति विजय ) ज ४।१६७ पोग्गल ( पुद्गल ) प ११८४३।१।२,१२४,१७५, १७६,१८० से १८२, ५३१४०, १४३, १४५, १४७.१५०, १५४, २३३, २३४, २३६ से २३६, २४१,२४२; ६।२६;१५।४० से ४७,४६ : Jain Education International ६६१ १६।३३, ३४, १७/२, २५, २१।१।१, ६५, ६६; २३।१३ से २३:२८ २०, २२ से २४, ३२, ३४, ३६, ३० से ४२, ४४, ४५, ४८, ६६, ६८ से ७१, १०५ ३४ । १ । १,३४ ६, १६, २०, ३६।५६,६१, ६२,६६,७०,७३,७४,७६,७७,७६ से ८१; ज २६ ; ३ । १६२,५५,७३७।२११ सू ५।१; ७ १; १११ ; २०१२ पोग्गलगति (पुद्गलगति ) प १६।३८, ४३ पोग्गलत्थकाय ( पुद्गलास्तिकाण ) प ३।११४ ११५,१२०,१२२ पोगल परियट्ट (पुद्गल परिवर्त ) १८१३,२७,४५, ५६,६४,७७,८३,६०,१०८ पोच्चड (दे० ) उ३।१३० पोट्ट (दे० ) ज २|४३ पोट्टलिया (पोट्टलिका) ज ५।१६ पोट्ठवई (प्रोष्ठपदी) ज ७।१३६, १४२, १४८, १५१, १५.५ पोट्ठवती (प्रोष्ठपदी) सू १०७, ६, २१, २३, २६ पोट्ठवय (प्रोष्ठपद) सू १० ५,१२०,१५३ पोडइल ( पोटगल ) प १।४२।१ नल तृण पोत्तिया (दे० ) प ११५१।१ पोत्तिय (पौत्रिक) उ ३।५० पोत्थगग्गाह ( पुस्तकग्राह) ज ३१७८ पत्थरयण ( पुस्तक रत्न ) ज ४ । १४० पोत्थार (पुस्तकार ) प १६७ पोरग (पोर) व १४४ १ इक्षु पोराण (पुराण) प २८/२०,२६,३२,६६ ज १।१३,३०,३३,३६,४१२ पोरिसिच्छाया रुपीच्छाया ) सु १।६।३; ६।१ से ३ पोरिसी (पौरुषी) ज ७ । १५६ से १६७ से १०६४ से ७४ पोरिसीच्छाया ( पौरुषीच्छाया ) चं २३ पोरेवच्च (पौरपत्य पौरोवत्य ) प २।३० से ३३, ३५,४१,४८ से ५१ ज ११४५; ३।१८५.२०६. २२१५।१६ उ५।१० पोलिंदी (पौलिन्दी) ५१६८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy