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________________ पीइमण-पूच्छा १८५ ४७,४८,५६,५७,६४,६५,७२,७३,१३३,१३४, ३६०८१ ज ११७ सू १११४ १३८,१३६,१४५,१४६ पुक्खरद्ध (पुष्करार्ध) ५ १५५५१७।१६५ पीइमण (प्रीतिमनस्) ज ३।५,६,८,१५,१६,३१,५३, सू १६।२१।२,५ ६२,७०,७७,८४,६१,१००,११४,१४२,१६५, पुक्खरवर (पुष्करवर)सू १९१२ से १६:२१॥३,२८ १७३,१८१,१८६,१६६,२१३,५२२१,२७ पुक्खरवरदीवड्ढ (पुष्करवरद्वीपार्ध) ५ १६।३० उ ११२१,४२, ३३१३६ सु १६२१ पीइवद्धण (प्रीतिवर्धन) ज ७।११४।१ पुक्खरवरोद (पुष्करवरोद) सू १६।२८ से ३१ पीढ (पीठ) प ३६।११ उ ३।३६ पुक्खरसारिया (पुष्करसारिका) प १६८ पीढग्गाह (पीठग्राह) ज ३।१७८ पुक्खरिणी (पुष्करिणी) ५२१४,१३,१६ से १६, पीढमद्द (पीठमर्द) ज ३।६,७७ २८; १११७७;२११८७ ज १११३,३३,२।१२; पीण (प्रीणय ) पीणति ज ५१५७ ४।१४०,१५४,२२१ से २२४,२३५,२४३ पीण (पीन) ज २।१५ पुषखरोद (पुष्करोद) ज ५१५५ सू १६।२८ से ३१ पीणणिज्ज (प्रीणनीय) प १७।१३४ पीणित (प्रीणित) सू १२।२६ पुक्खल (पुष्कल) ज ४।१६६ पीतय (पीतक) सू २०१२ पुक्खलकूड (पुष्कलकूट) ज ४११६८ पीति (प्रीति) उ १११११,११२ पुक्खलचक्कवट्टिविजय (पुष्कलचक्रवर्ति विजय) ज ४।१६४,१६५ पीतिदाण (प्रीतिदान) ज ३।१५० पुक्खलविजय (पुष्कलविजय) ज ४।१६७ पीतिवद्धण (प्रीतिवर्धन) सू१०।१२४।१ पुक्खलसंवट्टय (पुष्कलसंवर्तक) ज २।१४१,१४२ पीय (पीत) ज ३।२४,३१ । पीयकणवीरय (पीतकरवीर) प १७।१२७ पुक्खलावइचक्कवट्टीविजय (पूष्कलावतीचक्रवर्ति पीयबंधुजीवय (पीतबन्धुजीवक) १७।१२७ विजय) ज ४।२०० पीयासोग (पीताशोक) प १७:१२७ पुक्खलाई (पुष्कलावती) ज ४।१६६ पीलु (पीलु) १ १।३५।१ पुक्खलावईकूड (पुष्कलावतीकूट) ज ४।१६६ पीवर (बीपर) ज २।१५,७।१०८ पुग्गल (पुद्गल) प २८॥३५ पीसिज्जमाण (विष्यमाण) ज ४।१०७ पुच्छ (प्रच्छ) पुच्छड चं ११४ उ २०१२ पीहगपाय ('पीहग'पान) उ ३३१३० पुच्छिज्जति सू १०।६२ पुच्छिस्सामि उ १११७,३।२६ पुंख (पुङ्ख) ज ३।२४ पुंज (पुञ्ज) प २।३०,३१,४१ ज २।१०,३।७,८८ पुच्छणी (प्रच्छनी) ५ १११३७।१ ४।१६६,५७ पुच्छा (पृच्छा) प २।४४;४१५० से ५४,५६ से ६४; पुंडरीका (पुण्डरीका) ज ५।११११ ६६,६७,६६,७०,७१,७३,७४,७६,७७,८०,८१ पुंडरीगिणी (पुण्डरीकिणी) ज ४।२००।१ से ८७.८६,६०,६२ से ६४,६६,६७,६६,१००, पुंडरीय (पुण्डरीक) प २।४८ ज ३।१०।४।४६,२७४ १०२,१०३,१०५ से ११२,११४ से १३०, पुक्कार (पुक्का रय) पुक्कारेंति ज ५१५७ १३२ से १३६,१४१ से १४८,१५० से १५७, पुक्खर (पुष्कर) प १५१५५।१ ज २१६८ १५६ से १६४,१६६,१६७,१६६,१७०,१७२, सू १६।२१।१ १७३,१७५ से १८२,१८४ से २०६,२०८, पुक्खरकणिया (पुष्करकणिका) प २।३०,३१,४१; २०६,२११,२१२,२१४ से २६३,२६५,२६६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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