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________________ पम्हगावई-परक्कम ६७३ पम्हगावई (पक्षमावती) ज ४।२१२,२१२।१ पम्हल (पक्ष्मल) ज ३१६,२११,२१२:१५८ पम्हलेस (पद्मलेश्व) ५ १७.१६८ पम्हलेसट्ठाण (पझलेश्यास्थान) १७१४६ पम्हलेसा (पद्मश्या ), १७।१२१ पम्हलेस्स (पद्मले२५) प ३९६१३।२०१६।४६; १७।३५,५६,६४,६६ से ६८,७१.७३,७६ से ८१,८३,८४,११२,१६७,१८।७३;२८।१२३ पम्हलेस्सट्ठाण (पद्मलेश्यास्थान) प १७।१४६ पम्हलेस्ता (पद्मलेश्या) प १६।४६;१७।३५,३६, ५४,११७,११८,१२१,२२५,१२७,१२६,१३४, १३७,१४४,१५३ से १५५ पम्हलेस्सापरिणाम (पदमच्यापरिणाम) प १३१६ पम्हावई (पक्ष्मावती) ज ४।२०२।२,२१२ पय (पद) प ११०११७:२२।४५; २३।१४६; २८।१।२,२८।१२३,३६१६६,७२ ज ३।६,१२, ८८,१५५,१६७१७,५२१,५८,७।१५६ से १६७ उ ३३१०१,१३४ पयंग (पतङ्ग) प ११५१११ पयग (पतग, पदक) ज २।४१,२।४७११ पयडि (प्रकृति) ५२३।१११ पयणु (प्रतनु) ज २०१६ पयत (पतग,पदग) प २१४७१३ पयत (प्रत) ज ३।१२८८; १५८ पयत्त (प्रवृत्त) ज ५।२४,५७ पययपइ (पतगपति,पदगपति) प २१४७१३ पयर (प्रतर) प ११४८१६०; १२१८,२७,३६,३७ पयरग (प्रत रक) ज ३।१०६; ५।३८,६७ पयरय (प्रतरक) प ११।७५ पयराभेद (प्रतर भेद) प १११७५,७६ पयराभेय (प्रारद) प ११७३ पयला (प्रचला) प २३।१४ पयलाइय (दे०) प ११७६ पयलापयला (प्रचल प्रच) १ २३।१४ पयलिय (प्रचलित,प्रगलित) ३१६५२१ पयल्ल (प्रकल्प) सु २०१८,२०।८।५ पया (प्रजा) ज २१६४;३।१८५,२०६ पिया (प्र+जन ) पाएज्जा उ ३।१०१ पशामि उ ११७८,३६८ पयाहिइ उ ३।१३६ पयात (प्रयात) ज ३।१४,१५,३१,४३,४४,५१, ५२,६०,६१,६८,६६,१३०,१३१,१३६, १३७,१४०,१४१,१४६,१५०,१७३ पयाय (प्रथात) ज ३।३०,१४६,१६७,१७२ पयाय (प्रजात) उ ११५३ ; ३।१३४ पयायमाण (प्रजनयत्) उ ३।१२६ पयार (प्रचार) ज २११३१ पयालवण' (प्रयालवन) ज २१६ पयावइ (प्रजापति) ज ७।१३०,१८६।३ पयावइदेवया (प्रजापतिदेवता) मू १०१८३ पयाहिण (प्रदक्षिण) ज ११६२।६०३३५५५, ४४,४६ उ १।१६,२१, ३।११३,४।१३ पयाहिणावत्त (प्रदक्षिणावर्त) ज २।१५; ७।५५ पयोहर (पयोधर) ज २०१५ पर (पर) प १११०११४, २०६३, ३१३६,६।८०१२; १४।३,२२१४ से ६,२३।१३ से २३ सू १११६; ६।१;१३।१२, १४ से १७ पर (परं) प १११८६ परंगणय (पर्यङ्गत्) उ ३।१३० परंपर (परम्पर) प २०१६ से ८ ज ७।४२ परंपरगत (परम्परगत) प २१६४।२१ परंपरसिद्ध (परम्परसिद्ध) प ११११,१३,१६।३५, ३७ परंपरा (परम्परा) उ १११११,११२ परंपराघाय (परम्पराघात) प ३६।६४,७८ परंपरोगाढ (परम्पर वगाढ) प १११६३ परंपरोववण्णग (परम्परोपपन्नक) प १५१४६% ३४।१२ परक्कम (पराक्रम) प २३।१६,२० ज २१५१,५४, १२१,१२६,१३०,१३८,१४०.१४६,१५४, १.पिचालवण इति कल्पनापि जाते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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