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________________ उक्कोसमति-उच्छोल ८५३ उक्कोसमति (उत्कर्पमति) प ५।६४ उक्कोसमदपत्त (उत्कर्षमदप्राप्त) प १७।१३४ उक्कोसय (उत्कर्षक) प १५।६४,२१११०५ ज ७।२६ सू१।१६,१७,२१,२२,२४,२७,२।३; ३।२६।१८।१६।२२००३ उक्कोसा (उत्कर्षक) प १७।१४६ उक्कोसिया (उत्कर्षिक।) ज २०७४ से ८०;७।२८ सू १११४,२१, २१३, ४।९६१ उक्कोसोगाहणग (उत्कर्षावगाहनक) प ५।३० उक्कोसोगाहणय (उत्कर्षावगाहनक) प ५१२६, ३०,५०,५४,६६,८४,१०२,१५५,१५८,१६०, १६४,१६७,१७०,२३५ उक्खित्त (उत्क्षिप्त) ज ५१५७ उक्खेव (उत्क्षेप) ज ५।४६,६०,६६ उग्ग (उग्र) प श६५ ज २,१६५ उग्गच्छ (उद्गत्य) ज ७।१०१,१०२ सू ८१ उग्गतव (उग्रतपम् ) ज ११५ उग्गमण (उद्गमन) ज ७।३६ से ३८ सू २।३; ५७,५६,६२,८०,८४,८६,६६,१०१,१०३, ११०,११२,११४,११५,११६ से १२२,१२५, १२८,१३६,१४२,१४६,१४७,१४६,१५५, १५६,१६३ से १६५,१७२,१७५,१७८,२०३, २१२,२१६,२१७,२१६,२२१,२२६,२४२; ५।३८,४६,७२,७३,७।३७,३८,२०७ च २।५ सू १।६।५।६।२,३,१८।१ उच्चत्तच्छाया (उच्चत्वछाया) सू ६।४ उच्चत्तपज्जव (उच्चत्वपर्यव) ज २१५१,५४,१२१, १२६,१३०,१३८,१४०,१४६,१५४,१६०, उग्गममाण (उद्गच्छत् ) प ११४८।५२ उग्गय (उद्गत) ज ११३७, ३।२४ ; ४।२७,५।२८ उग्गवई (उपवती) ज ७।१२१ सू १०१६१ उग्गविस (उपविष) प १७० उग्गसेण (उग्रसेन) उ ५।१० उग्गह (अवग्रह) प १५।६८,७१,७२ उग्गा (दे०) जे २।१७ उग्घोस (उद्घोष) ज २१६५ उग्घोसेमाण (उद्घोसयत्) ज ३।२१२,२१३; ५।२२,२६ उच्च (उच्च) उ ३११००,१३३ उच्चंतय (उच्चंतग) प १७।१२४ उच्चत्त (उच्चत्व) प २१।४७।२ ज ११८ से १०,१६,२२ से २४,२७,३५,३७,३८,४०, ४२,४६,५१,२।६,१५,४५,५१,५४,५६,५८, ८६.१२३.१२८.१३८.१४०,१४८,१५१,१५७, १५६,४।१,९,१०,१४,३३,४५,४७ से ४६,५४, उच्चत्तुद्देस (उच्चत्वोद्देश) सू ६।२ उच्चागोय (उच्चगोत्र) प २३।२१,५७,५८, १३१,१५३,१८८ उच्चार (उच्चार) प ११८४ Vउच्चार (उत्-|-चारय) उच्चारेइ उ ३७६ उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपरिवणियासमिय (उच्चारप्रस्रवणश्वेल 'जल्ल' 'सिंघाण' परिष्ठापनिकासमित) ज २०६८ उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपरिटठावणियासमिय (उच्चारप्रस्रवणश्वेल 'सिंघाण' 'जल्ल' परिष्ठा पनिकासमित) उ ३६६ उच्चारतव्व (उच्चारयितव्य) सू १०।१३५ उच्चारेयव्व (उच्चारयितव्य) ज ७।१६८ सू १०।१३४ उच्चावय (उच्चावच) प ३४।२३,२४ उ ११५७, ८२,५१४३ उच्चाविय (उच्च:कृत्वा) प १७।१११ उच्छंग (उत्सङ्ग) उ ३१६८,११४ उच्छण्ण (उत्सन्न) ज २१८,६ उच्छण्णणाणि (उत्सन्नज्ञानिन्) प २३।१३ उच्छण्णसणि (उत्सन्नदर्श निन् ) प २३।१४ उच्छाह (उत्साह) सू २०१६।३,५ उच्छढसरीर (उत्क्षिप्तशरीर) ज ११५ उच्छोल (दे० उत।क्षालय) उच्छोलेंति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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