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________________ चंदचार-चक्कवट्टि ६०१ चंदचार (चंद्रचार) सू१०।१२१,१२२ चंदण (चन्दन) प ११२०॥४१॥३६॥३,११४६; २।३०,३१,४१ ज २१७०,६५,६६,६६,१००; ३।६,१२,८२,८८,१३३,२०६,२११,२२१, २२२,५।१४ से १६,५५,५६,५८ चंदणकयचच्चाय (चन्दनकृतचर्चाक) ज ३।२०६ चंदणपुड (चन्दनपुट) ज ४।१०७ चंदणा (चन्दना) उ ३।१७१ चंदद्दह (चन्द्रद्रह) ज ४।१४२।३,२६२ चंदपण्णत्ति (चन्द्रप्रज्ञप्ति) ज ७।१०२ चंदपव्वय (चन्द्रपर्वत) ज ४।२२२ चंदप्पभ (चन्द्रप्रभ) प १।२०।४ ज २।१३; ३।१२,८८,५।५८ चंदप्पभा (चंद्रप्रभा) प १७।१३४ ज ७।१८३ सू१८१२१,२०६ चंदमंडल (चन्द्रमण्डल) ज ३।६५,११७,१५६, १७८,७६१ से ७३,७६,७८,६७,१७७ सू १०७६,७७ चंदमग्ग (चन्द्रमार्ग) चं ५।२ सू १।६।२; १०७५ चंदमस (चन्द्रमस्) चं २।४; सू १।६।४; १३११,१७ चंदमा (चन्द्रमस्) ११६,१३।१,१७ चंदमास (चन्द्रमास) सू १२।१० से १२ चंदलेस्सा (चन्द्रले ) सू १६।१,२ चंदवडिसय (चन्द्रावतंसक) सू १८।२२,२३ उ ३।६,१४ चंदविमाण (चन्द्रविमान) प ४।१७७ से १८२; ६।८५ ज ७१७३,१७४,१७६ से १७८,१८८ सू १८।१,८,९,१४,२७,२८ चंदसंवच्छर (चन्द्र पंवत्सर) ज ७।१०६,१०७ सू १०११२७;११२ से ६,१२।१,३,१० से चंदिम (चन्द्रमस्) प २०४८ से ५१,६३ ज ७.५५, ५८,१६८,१८०,१८१,१६७ सू ३।१६।१; १५।११७।१;१८।२,३,१८,१६,३७, १६१, २६; २०११,७ उ २।१२,५१४१ चंदिमसूरियसंठिति (चन्द्रमरसूर्यसंस्थिति) सू ४।१,२ चंदिमा (चन्द्रिका) ज ७/१०२ चंदोतारायण (चन्द्रावतारायन) उ ३३१५७ चंप (चम्पक) प १७।२७ चंपकवण (चम्पकवन) ज ४।११६ चंपग (चम्पक) ज २११०,३।१२,८८ उ ११२३, ६१ चंपगजाति (चम्पकजाति) प ११३८।३ चंपकवडेसंय (चम्पकावतंसक) प २१५०,५२ चंपछल्ली (चम्पकछल्ली) प १७।१२७ चंपभेद (चम्पक भेद) प १७१२७ चंपयकुसुम (चम्पककुसुम) प १७।१२७ चंपयलता (चम्पकलता) प ११३६।१ चंपा (चम्पा ) प ११६३।१; १७१२७ उ ११९,१०, १२,१६,६३,९५,६७,६८,१०५,१०६,११०, ११६,१२२,१२५,१४४,१४५; २।४,५,१६,१७ चंपापुड (चम्पकपुट) ज ४।०७ चक्क (चक्र) ज २११५,३।३,३५,६५,१५६, १६७।११,१२ सू ३।२ चक्कद्धचक्कवालसंठित (चक्रार्धचक्रवालसंस्थित) सू ११२५,४।२ चक्कपुरा (चक्रपुरा) ज ४।२१२,२१२।४ चक्करयण (चक्ररत्न) ज ३।४ से ६,६,१२,१४, १५,१८,२२,३०,३१,३६,४३,४४,५१,५२, ६०,६१,६८,६६,६३,६६,१०६,१३०,१३१, १३६,१३७,१४०,१४१,१४६,१५०,१६३, १७२,१७३,१७५,१७८,१८०,२२० चक्करयणत्त (चक्ररत्नत्व) प २०१६० चक्कवट्टि (चक्रवर्तिन् ) प ११७४,६१,६।२६ ज २।१८,६३,१२५,१५३;३।२,३,२६,३६, चंदाभ (चन्द्राभ) ज २।५६,६२ चंदायण (चन्द्रायण) सू १३।१०,१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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