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________________ संलेहणा-सक्करप्पभा १०५६ संलेहणा (संलेखना) ज ३।२२४ उ २।१२,३।१४, ८३,१२०,१५०,१६१,१६६५२८,४३ संवच्छर (संवत्सर) प ४६५,६७,२३।७४,१८७ ज २१४,६६,६६;७।२०,२५,२६,३७,१०३, १०४,११२।२,३,११३,११४,१२६ वं २।३।५।३ सू १।६।३,१६,१३,१४,१६, १७,२१,२४,२७,२।३।६।१८।११०।१२४ से १२७,१२६।२,३,१३०,१३८ से १६१; । ११।१ से ६,१२।१ से ६,१० से १३,१६ से २८,३०; १३।२;२०।३ उ ३।१२६,१३४ संवच्छरण (संवत्सरण) सू १।६।३ संवच्छरिय (सांवत्सरिक) ज २।४;३।२१२,२१३, २१६;७।११०,१२७ सू १०।१२२,१२३ संवट्टकप्प (संवर्तकल्प) उ १।१३६ संवट्टग (मंवर्तक) ज २।१३१ संवट्टगवाय (संवर्तकवात) प ११२६ ज ५१५ संवड्ढ (सं-+ वृध्) संवड्ढे इ उ ११५८ संवड्ढे मि उ १२८३ संवड्ढे हि उ ११५७ संवड्ढमाण (संवर्धमान) उ ११५४ संवड्ढिज्जमाण (संवर्ध्यमान) उ ३।४६ संवत्त (संवृत्त) ज ३।१०६ संवद्धिय (संवद्धित) ज ३१३५ संवर (शंकर) प १६४ मृग की जाति संवर (संवर) प ११०१।२ संवाह (संवाह) प ११७४ ज २।२२ संविकिण्ण (सं विकीर्ण) प २।४१ ज ११३१ संविगिण्ण (संविकीर्ण) प २।३०,३१ संविणद्ध (संविनद्ध) ज ३।३१ संवुक्क (दे०) प १।४६ संवुड (संवृत) प ६।२० से २३ सू २०१७ संबुडजोगिय (संवृतयोनिक) प ६।२५ संवडवियड (संवत विवत) प ६।२० से २३ संवुडवियडजोणिय (संवृतविवृतयोनिक) प ६।२५ संवुत्त (मंवृत्त) ज ४।१३ संवुय (संवृत्त) ज ३।२२२ संसयकरणी (संशयकरणी) प १११३७।२ संसत्त (संसक्त) उ ३३१२० संसत्तविहारि (संसक्तविहारिन् ) उ ३।१२० संसार (संसार) प २०६४,६४।१ ज २०७० उ ३।११२ संसारअपरित्त (संसारापरीत) प १८।१०६,१११ संसारत्थ (संसारस्थ) प ३१८३ संसारपरित्त (संसारपरीत) प १८।१०६,१०८ संसारपारगामि (संसारपारगामिन्) ज २७० संसारसमावण्ण (संसारसमापन्नक) प १२१०,१४, १५,४६ से ५२,१३८ संसारसमावण्णग (संसारसमापन्नक) प १११३९; २२८ संसिय (संश्रित) ज ३।८१ उ ३३५५ संहित (संहित) प ११४७।३ संहिय (संहित) ज २०१५ सकथा (सकथा) उ ३.५१११ सकसाइ (सकषायिन्) प ३९८,१८३,१८१६४; २८।१३२ सकहा (दे०) ज २१११३ सकाइय (सकायिक) प ३१५० से ५३,६०,१८।२५; ३०,३१ सकिरिय (सक्रिय) प २२१७,८ सकोरंट (सकोरण्ट) ज ३१६,१८,७७,७८,६३, १८०,२२२ सक्क (शक्य) प १६४८।५७ ज २१६।१ सक्क (शक) प २।५०,५१ ज ११३१, २।८६,६०, ६३,९५,९७,६६,१०१,१०३,१०५,१०७,१०६, १११,११३,११८,३३११५,१२४,१२५; ४।१७२,,२२२,२२३।१,२३५,२४०,२४३; ५।१८,२० से २३,२७ से २६,३६,४१,४३, ४५ से ५०,६१,६२,६५ से ६६,७२,७३ उ ३।१२३,१५० सक्करप्पभा (शर्कराप्रभा) प १३५३;२।१,२०,२२; ३।१२,२२,२३,१८३;४७,८,९६।११,७४, ७५:१०११;२०१५१,५४:२११६७,३३४,१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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