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________________ १०६० सक्करप्पभा पुढविणेरइय-सट्टाण सक्करप्पभापुढविणेरइय (शर्कराप्रभापृथिवीनरयिक) सचित्तजोणिय (सचित्तयोनिक) प ६।१६ प २०१५२,५५ सचित्ताहार (सचित्ताहार) प २८।१,२ सक्करा (शर्करा) प ११२०११,१७४१३५ सच्च (सत्य) प १११०१।१० उ ११२४ ज २।१७,६८,४।२५४ सच्चमासग (सत्यभाषक) प १११६० सक्कार (सत्कार) ज २२५; ३।२१७ उ ११६२; सच्चमण (सत्यमनस्) प १६।१ से ३,७,८,१०, ५१७ ११,१५,१८ से २१ सिक्कार (सत्कारय्) सक्कारेइ ज ३।६,२७,४०, सच्चमणजोग (सत्यमनोयोग) प ३६।८६ ४८,५३,५७,६५,७३,६१,१२७,१३४,१३६, सच्चवइजोग (सत्यवाक्योग) प ३६।६० १४६,१५१,१५२,१८६,२१६ उ १।१०६; सच्चा (सत्य) प १११२,३,३२,३३,४२ से ४६,८२, ३।११० सक्कारेंति उ ५।३६ सक्कारेज्ज ८४,८५,८८,८६ ज २०६७ सकारेमि उ १३१७ सच्चामोस (सत्यामृषा) प १११२,३,३५,३६,४२, सक्कारणिज्ज (सत्कारणीय) सू१८।२३ ४३,४५,४६,८२,८४,८५,८८,८६ सक्कारवत्तिय (सत्कारप्रत्यय) ज ५।२७ सच्चामोसमासग (सत्यामृषाभाषक) प ११।६० सक्कारिय (सत्कारित) ज ३८१ सच्चामोसमण (सत्यामृषापनम् ) प १६।१,७ सक्कारेत्ता (सत्कार्य) ज ३।६ उ ३५० सच्चामोसमणजोग (सत्यामृषामनोयोग) प ३६८९ सक्कुलिकण्ण (शष्कुलिकर्ण) प ११८६ सच्चामोसवइजोग (सत्यामृषावाल्योग) ३६।६० सक्कोस (सक्रोश) ज ११२३,३५ सच्चित्त (सचित्त) प २८।११ सखिखिणी (सकिकिणी) ज ३।२६,३०,३६,४७, सच्छंद (स्वच्छन्द) प २१४१ ५६,६४,७२,११३,१३३,१३८,१४५,१७८ सच्छंदमइ (स्वच्छन्दमति) उ ३।११६४।२२ सग (स्वक) प २११६२,६३, ३३।१६,१७ सच्छीर (सक्षीर) प ११४८।३६ ___ ज २११२०,३८१,८६,१०२,१५६,१६२ सग (शक) प १८९ सजोगि (सयोगिन् ) प ३।६६,१८३; १८।५५; सगंथ (सग्रन्थ) ज २०६६ २८।१३८,३६।६२ सगड (शकट) ज २।१२,३३,७१७६३१ सजोगिकेवलि (सयोगिकेदलिन् ) प १११०८,१०६, सगडवूह (शकटव्यूह) उ १११३७ १२१,१२२ सगडुद्धिसंठिय (शकट 'उद्धि' संस्थित) सू १०३७ सजोगिभवत्थकेवलि (सोगिभवस्थकेवलिन) सगडुद्धी (शकट 'उद्धि') ज ७।१३३।१ प १८।१०१,१०२ सगडुद्धीमुहसंठिय (शकट 'उद्धि' मुखसंस्थित) सज्ज (सज्ज) ज ३।१७८ ज ७।३१,३३ सज्जाय (सर्जक) प ११४८।४६ पीत शालवृक्ष सगडद्धीसंठिय (शकट'उद्धि' संस्थित) ज ७।३२।१ सज्जाव (सञ्जय) सज्जावेंति उ १११३५ सगल (शकल) प ११४७।२२।३१ ज ७।१७८ सज्जावेत्ता (सञ्जयित्वा) उ ११३५ सू ८।११३।३ सज्झाय (स्वाध्याय) उ ३।३१ सगोत (सगोत्र) सू १०६२ से ११६ सट्ठ (षष्ठ) ज ३।१७८ सू श२१ सचित्त (सचित्त) प ६।१३ से १७ ज २०६६ सट्ठाण (स्वस्थान) प २२१,२,४,५,७,८,१०,११, सचित्तकम्म (सचित्तकर्मन) सु २०७ उ २१८ १३,१४,१६ से ३१,४६ ; ५।३५,४२,४६,५४, सचित्तजोणि (सचित्तयोनि) प ६।१६ ५७,६०,६४,६९,७५,७६,६०,६४,६८,१०८, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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