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________________ सात-सारइयबलाहक १०७५ सात (सात) प ३५।१।१,२,३५८,६ सातावेदग (सातवेदक) । ३।१७४ सातावेदणिज्ज (सातवेदनीय) प २३।१५,२६, १४६,१७६ साताव्यणिज्ज (सातवेदनीय) प २३।१५,३०,६३, १३५ सातासात (सातासात) प ३५८,६ सालासोक्ख (सातसौरा) सु २०१७ साति (सादि) प २३।४६ साति (स्वाति) सू १०।२ से ६,१७,२३,४८,६२, ७२,७५,८३.११३,१३१ से १३४; १८१७ सातिरेग (सातिरेक) प ४।३१,३३,३७,३६,१६८, २००,२०४,२०६,२२५,२२७,२२८,२३०, २३१,२३३,२३४,२३६,२४०,२४२७।२,६, ११:१५६४११८।१६,१६,३१,३६,४६,५४, ६१.७६,८५,८७,११३,११६२१३८,४१, ६३,६६,८७२८।२५,७६,७८,३६।६८ सू २।३।६।३; १२।१५ सादि (सादि) प १५॥३५ सादि (स्वाति) सू१०।१२० सादिय (सादिक) प २१६४ सादीय (सादिक) प १८७,१७,२६,५८,५६,६३, ६७७५ से ७७,७६,८२,८३,८८,६०,६२, १००,१०५,११२,११५,११८,१२१,१२४,१२७ साध (साध) साधेति सू१०।१२० साधेति सू१०।१२० साभादिय (स्वाभाविक) ज ३।२०६५।५६ साम (ज्यादा) प ११३७।४ साम (सानन्) उ १।३१ सामंत (मानन्त) उ ११३,३।२६ सामग (याक) प ११४५।२ खामण (सामान्य) सू १०७७ साना (श्रामण्य) उ २।१२,३११४,२१,१२०, १५०,१६१:४।२४।५।२८,३६,४१,४३ सामण्णओविणिवाइय (सामान्यतोविनिपातिक) ज १५७ सामण्णपरियाय (श्रामण्यपर्याय) ज २१८८; ३।२२५ सामल (श्यामल) ज ३।१०६ सामलता (श्यामालता) प ११३६।१ सामलया (श्यामालता) ज २।११ सामली (शाल्मली) ज ४।२०८ सामा (श्यामा) प २१४०।६;१७.१२४ सामाइय (सामायिक) प १११२४.१२५ उ २।१०, १२;३।१४,१५०,१६१,५।२८,३६४१ सामाइयचरित्तपरिणाम (सामाकिचत्रिपरिणाम) प १३।१२ सामाण (समान) प २१४६,४७,४७१२ सामाणिय (साम निक) प २१३० से ३३,३५; ४०१५,४१,४३,४८ से ५६ ज ११४५२१६०; ४।१७,११३.१५०,१५६; ११,५,६,१६,३६,४२. ४४,४५,४६,४६।२.५०,५१,५२।१,५३,५६, ६५,६७,७१५६,५६,१८५ सु१८१२३;१६॥२४, २७ उ ३१६,२५,९०,१५०,१५६,१६६; ४१५ सामि (स्वामिन्) ११४;३।८,१६,४३,६२,७०,७७, ८४,१००,१२६।२,१४२,१६५,१८१,१९२; ५१५५,५७,५८ चं ६ सु १४ उ ११६,३६,४० ४२,४५,९६,१०३,१०७,१०८,११० से ११२, ११४,११६,१२८,१३६२।६१२:३१५,२४, ८६.१५५,१६८,४।४ सामित्त (स्व वित्व) २।३०,३१,४१,४६ ज १।४५,३।१८५,२०६,२२१ : ५।१६ उ ५११० सामिय (रवारिक) ज ३८१ सामुदानिय (सामुदानिक) १५ से १७ सायं (सायं) सू २।१,१०५ १३६ सायावेदणिज्ज (सातवेदनीय) २३३१५ सायावेयणिज्ज (सातवेदनी) १ २३१४१ सार (सार) प ११७६ ज २६, २१६४,६६; ३।२,३,२४,३५ च ११३ उ १।१०,२६,६६; ५।११ सायर (सागर) सू १६।२२।२४ सारइयबलाहक (शारदिक्षयलाहक) प १७१२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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