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________________ ८६० ३०,३२,३४,३७,३६,४१,४५, ५३, ५६ ५६, ६१,६३,६८,७१,७४,७६,७८, ८३, ८६,८६, ६१६३,६७,१०१, १०४, १०७,१०६,१११, ११५, ११, १२, १३८, १५०, १५२, १५४, १६०,२०७, २११, २१४,२२८.२४२, २४४; १०।५३।१; ११।५५; १५३८, ४२, १५ ५५।२; १७।११४।१,१७।१३२ से १३४; २३।१५१६, १६,२०,१०,२८।२०,३२,६६,३६।८०, ८१ १।१३,२७,१६,१८,१२०,१४२१६४, २११, ३३, ७, ६,११,१२,२१,३४,७८, ८२, ८५,८८,१०६, १८०, १८७, २०६, २११,२१८, २२२४१८२,१०७, १०६, ५५, ७,२२,२६, ३२,५५,५८७।२०६ सू २०१७ उ १।३५; ३।५०,११०५।२५ गंध (गन्धतस् ) प १।५ से ६; ११।५६;२८1८, २०,२६,३२,५४,५६ गंधकासाइय (गन्धकासायिक ) ज ३६, २११,२२२; ५।५८ गंधचरिम (गन्धचरम ) प १०।४८।४६ गंध ( गन्धाट्टक) ज ५।१४ गंधणाम ( गन्धनामन् ) प २३३८,४८,१०६, १०७ गंधतो ( गन्धतस् ) प १७ से 8 गंधदेवी (गन्धदेवी ) उ४।२।१ गंधक्षुणि (गन्धाणि) ज २।१२ गंधपज्जव ( गन्धपर्यव) ज २१५१,५४,१२१,१२६, १३०,१३८, १४०, १४६, १५४, १६०,१६३ गंधपरिणाम (गन्धपरिणाम ) प १३।२१,२७ गंधमंत ( गन्धवत् ) प ११।५२,५५२८ ५,५१ गंधमायण (गन्धमादन) ज ४।१०२, १०४ से १०८, १६२,२०४,२१५ गंधमायणकूड (गन्धमादनकूट ) ज ४।१०५ गंधभूत (गन्धवतभूत ) प २३०, ३१, ४१ ज ३७,८८,१८४,१६३,५।५७ सू २०१७ भू (गन्धवर्तिभूत) ज ५७ गंध (वासा) ( गन्धवर्षा) ज ५५७ गंधव ( गन्धर्व ) प १।१३२,२०४१,४५,६८५ Jain Education International गंधओ-गच्छ ज ३।११५,१२४, १२५, ७।१२२।३ सू १०१८४/३ धन्वछाया (गन्धर्वछाया ) प १६।४७ गंधव्वलिवि (गन्धर्व लिपि ) प १६८ गंधवाणी (गन्धर्वानीक) ज ५।४१, ४४ गंधहत्थि ( गन्धहस्तिन् ) उ १।६६ से ६६, १०२ से ११६,१२७,१२८ गंधादेस (गन्धादेश ) प ११२०, २३, २६२६,४८ गंधावर ( गन्धापातिन् ) ज ४।२६६ गंधावेयपव्यय ( गन्धापातिवृत्तवैताढ्य - पर्वत) ज ४।२६२ गंधावति ( गन्धापातिन् ) प १६१३० गंधाहारग (गन्धारक ) प १८६ गंधिल (गन्धिल) ज ४।२१२,२१२।३ गंधिय (गन्धिक) प २ ३०, ३१, ४१ ज ३ ७, १२, ८८,२११,२२१,४।२६,५७,५८ उ ३।१३१ गंधिलाई (गन्धिलावती) ज ४।१०३, २१२, २१२।३ लावइकूड (गन्धिलावतीकूट) ज ४।१०५ गंधोदग (गन्धोदक ) ज ५।७ गंधोदय (गन्धोदक) ज ३६,२२२ गंभीर ( गम्भीर ) प ११५१२।२० से २७,३०,३१, ४१. ज २।१५,६८,३।३५,१३८।१,४१३,१३, २५५।२२ से २४७।१७८ सू २०१७ गंभीर मालिणी ( गम्भीरमालिनी) ज ४।२१२ गगण ( गगन) ज १।२६ : २२६८, ३११७८४१४६ गगनतल ( गगनतल ) प २०४८ ज ३।१७८५४३ उ ५१५ गग्गर ( गद्गद ) ज ७ १७८ गच्छ ( गम् ) गच्छ ज ३१८३,१७० उ १।५४ गच्छइ ज ४।२६८ २७४५।२२, २६७।२० से २५,७६ से ८४,६५६८ से १००,१३५; ७। १३५।१ २ ।१ सू १।६।१ गच्छं ज ३।१५४,१७० गच्छति प ६६,१०५, ११०,३६।८३ ज २४६,७३६ से ४८ गच्छति प १६।३४, ४१, ४२, ४४, ४५, ४७, ५१, ५४, ३६।८२,८३।१ स २२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003555
Book TitleUvangsuttani Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages1178
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size22 MB
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